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लाल, बाल, पाल की तिकड़ी के मशहूर नेता लाला लाजपत राय : पुण्यतिथि पर विशेष

by bnnbharat.com
November 17, 2021
in इतिहासनामा, जीवनी, समाचार
लाल, बाल, पाल की तिकड़ी के मशहूर नेता लाला लाजपत राय : पुण्यतिथि पर विशेष
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में से एक और लाल, बाल, पाल की तिकड़ी के मशहूर नेता लाला लाजपत राय का जीवन आज भी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है. उन्होंने न सिर्फ आजादी की लड़ाई के दौरान नेतृत्व किया बल्कि अपने जीवन उदाहरणों से उस आदर्श को स्थापित करने में सफलता पाई, जिसकी कल्पना एक आदर्श राजनेता में की जाती है.

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के मोगा में एक साधारण परिवार में हुआ था. उनके पिता लाला राधाकृष्ण एक अध्यापक रहे. इसका प्रभाव लाजपत राय पर भी पड़ा. शुरूआती दिनों से ही वे एक मेधावी छात्र रहे और अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वकालत की ओर रुख कर लिया. वे एक बेहतरीन वकील बने और कुछ समय तक वकालत भी की, लेकिन जल्दी ही उनका मन इस काम से उचट गया. अंग्रेजों की न्याय व्यवस्था के प्रति उनके मन में रोष पैदा हो गया. उन्होंने उस व्यवस्था को छोड़कर बैंकिंग का रूख किया

उन्होंने अपनी आजीविका चलाने के लिए बैंकिंग का नवाचार किया. उस समय तक भारत में बैंक कोई बहुत अधिक लोकप्रिय नहीं थे, लेकिन उन्होंने इसे चुनौती की तरह लिया और पंजाब नेशनल बैंक तथा लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना की. दूसरी तरफ वे लगातार कांग्रेस के माध्यम से अंग्रेजों की खिलाफत करते रहे. अपनी निर्भिकता और गरम स्वभाव के कारण इन्हें पंजाब केसरी के उपाधी से नवाजा गया. बाल गंगाधर तिलक के बाद वे उन शुरूआती नेताओं में से थे, जिन्होंने पूर्ण स्वराज की मांग की. पंजाब में वे सबसे लोकप्रिय नेता बन कर उभरे.

आजादी के प्रखर सेनानी होने के साथ ही लाला जी का झुकाव भारत में तेजी से फैल रहे आर्य समाज आंदोलन की तरफ भी था. इसका परिणाम हुआ कि उन्होंने जल्दी ही महर्षि दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर इस आंदोलन का आगे बढ़ाने का काम ​हाथ में ले लिया. आर्य समाज भारतीय हिंदू समाज में फैली कूरीतियों और धार्मिक अंधविश्वासों पर प्रहार करता था और वेदों की ओर लौटने का आवाहन करता था. लाला जी ने उस वक्त लोकप्रिय जनमानस के विरूद्ध खड़े होने का साहस किया. ये उस दौर की बात है जब आर्य समाजियों को धर्मविरोधी समझा जाता ​था, लेकिन लाला जी ने इसकी कतई परवाह नहीं की. जल्दी ही उनके प्रयासों से आर्य समाज पंजाब में लोकप्रिय हो गया.

उन्होंने दूसरा और ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में कि​या. अभी तक भारत में पारम्परिक शिक्षा का ही बोलबाला था​. जिसमें शिक्षा का माध्यम संस्कृत और उर्दू ​थे. ज्यादातर लोग उस शिक्षा से वंचित थे जो यूरोपीय शैली या अंग्रेजी व्यवस्था पर आधारित थी. आर्य समाज ने इस दिशा में दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालयों को प्रारंभ किया, जिसके प्रसार और प्रचार के लिए लाला जी ने हरसंभव प्रयास किए. आगे चलकर पंजाब अपने बेहतरीन डीएवी स्कूल्स के लिए जाना गया. इसमें लाला लाजपत राय का योगदान अविस्मरणीय रहा.

शिक्षा के क्षेत्र में उनकी दूसरी महत्वपूर्ण उपलब्धि लाहौर का डीएवी कॉलेज रहा. उन्होंने इस कॉलेज के तब के भारत के बेहतरीन शिक्षा के केन्‍द्र में तब्दील कर दिया. यह कॉलेज उन युवाओं के लिए तो वरदान साबित हुआ, जिन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान अंग्रेजों द्वारा संचालित कॉलेजों को धता बता दिया था. डीएवी कॉलेज ने उनमें से अधिकांश की शिक्षा की व्यवस्था की.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ना लाला जी के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी. 1888 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन इलाहाबाद में हुआ और यह पहला अवसर था जब लाला लाजपत राय को इस संगठन से जुड़ने का अवसर मिला. अपने शुरूआती दिनों में ही उन्होंने एक उत्साही कार्यकर्ता के तौर पर कांग्रेस में पहचान बनानी शुरू कर दी. धीरे—धीरे वे कांग्रेस के पंजाब प्रांत के सर्वमान्य प्रतिनिधि मान लिए गए. 1906 में उनको कांग्रेस ने गोपालकृष्ण के साथ गए शिष्टमंडल का सदस्य बनाया. संगठन में उनके बढ़ते कद का यह परिचायक बनी. कांग्रेस में उनके विचारों के कारण उठापटक प्रारंभ हुई. वे बाल गंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल के अलावा तीसरे नेता थे, जो कांग्रेस को अंग्रेजों की पिछलग्गू संस्था की भूमिका से ऊपर उठाना चाहते थे.

कांग्रेस में अंग्रेज सरकार की खिलाफत की वजह से वे ब्रिटिश सरकार की नजरों में अखरने लग गए. ब्रिटिशर्स चाहते थे कि उन्हें कांग्रेस से अलग कर दिया जाए, लेकिन उनका कद और लोकप्रियता देखते हुए, यह करना आसान नहीं था. 1907 में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में किसानों ने अंग्रेज ​सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया. अंग्रेज सरकार ऐसे ही मौके के तलाश में थी और उन्होंने लालाजी को न सिर्फ गिरफ्तार किया, बल्कि उन्हें देश निकाला देते हुए बर्मा के मांडले जेल में कैद कर दिया गया, लेकिन सरकार का यह दांव उल्टा पड़ गया और लोग सड़कों पर उतर आए. दबाव में अंग्रेज सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा और लाला जी एक बार फिर अपने लोगों के बीच वापस आए.

1907 आते—आते लाला जी के विचारों से कांग्रेस का एक धड़ा पूरी तरह असहमत दिखने लगा था. लाला जी को उस गरम दल का हिस्सा माना जाने लगा था, जो अंग्रेज सरकार से लड़कर पूर्ण स्वराज लेना चाहती थी. इस पूर्ण स्वराज को अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम और प्रथम विश्व युद्ध से बल मिला और लाला जी भारत में एनीबेसेंट के साथ होमरूल के मुख्य वक्ता बन कर सामने आए. जलिया वाला बाग कांड ने उनमें अंग्रेज सरकार के खिलाफ और ज्यादा असंतोष भर दिया. इसी बीच कांग्रेस में महात्मा गांधी का प्रादुर्भाव हो चुका था और अंतरराष्ट्रीय पटल पर गांधी स्थापित हो चुके थे. 1920 में गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में उन्होंने बढ़—चढ़ कर हिस्सा लिया. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन तबियत बिगड़ जाने पर उन्हें रिहा कर दिया गया. इसी बीच उनके संबंध लगातार कांग्रेस से बिगड़ते रहे और 1924 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर स्वराज पार्टी में शामिल हुए और केन्द्रिय असेम्बली के सदस्य चुने गये. यहां भी जल्दी ही उनका मन उचट गया और उन्होंने नेशलिस्ट पार्टी का गठन किया और एक बार फिर असेम्बली का हिस्सा बने.

भारत की आजादी की लड़ाई एक बड़ा वाकया उस वक्त घटित हुआ, जब भारतीयों से बात करने आए साइमन कमीशन का विरोध का फैसला गांधी द्वारा लिया गया. साइमन कमीशन जहां भी गया, वहां साइमन गो बैक के नारे बुलंद हुए. 30 अक्टूबर 1928 को जब कमीशन लाहौर पहुंचा, तो लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक दल शांतिपूर्वक साइमन गो बैक के नारे लगाता हुआ अपना विरोध दर्ज करवा रहा था. तभी अंग्रेज पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया और एक युवा अंग्रेज अफसर ने लालाजी के सर पर जोरदार प्रहार किया. लाला जी का कथन था— मेरे शरीर पर पड़ी एक—एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में कील का काम करेगी.

सिर पर लगी हुई चोट ने लाला लाजपत राय का प्राणान्त कर दिया. उनकी मृत्यु से पूरा देश भड़क उठा. इसी क्रोध के परिणामस्वरूप भगतसिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव ने अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या की और फांसी के फंदे से झूल गए. लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन सेनानियों में से एक रहे जिन्होंने अपना सबकुछ देश को दे दिया. उनका जीवन ढेर सारे कष्टों और संघर्ष की महागाथा ​है, जिसे आने वाली पीढ़ीया युगों तक कहती—सुनती रहेंगी.

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