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कांच हीं बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय : छठ विशेष भाग – 3

by bnnbharat.com
November 9, 2021
in क्या आप जानते हैं ?, वैदिक भारत, सनातन-धर्म, संस्कृति और विरासत
कांच हीं बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय : छठ विशेष भाग – 3
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छठ गीतों के मधुर स्वर लहरियों के साथ छठ पर्व का अनुष्ठान शुरू हो चुका है .छठ सूर्य अराधना का अद्भुत और अद्वितीय पर्व है.
देश के अन्य भागों में लोग डूबते सूर्य को प्रणाम नही करते लेकिन हम बिहार वासी डूबते सूरज को भी वही मान-सम्मान देते हैं जो प्रातःकालीन असंख्य किरणों से जगमगाते सूर्य को.

छठ व्रत सूर्य को ही समर्पित है .सूर्य आरोग्य-निकेतन हैं .ऊर्जा के अनंत श्रोत हैं,सूरज हैं तो जीवन है ,सूरज हैं तो पृथ्वी की हरीतिमा है ,सूरज हैं तो हमारी निर्मल काया है .सूरज उगते और डूबते दोनों रूप में मनोहारी है .जीवन के आपा-धापी में हम सूर्योदय और सूर्यास्त के सौन्दर्य और उर्जा का कहाँ अनुभव कर पाते हैं ?


सच पूछिए तो छठ पर्व के संध्या और सुबह में असीम इंतजार के बाद हमें यह अद्वितीय रूप देखने को मिलता है .
गंगा तट हो या गांव- घर का पोखरा तालाब सब जगह तो सामुहिक भाईचारा ही काम आते हैं .एक साथ इतने बंधु बांधव कहाँ मिल पाते हैं ? या फिर इतने सारे लोग भी कहाँ एक जगह समय बिताते है ? लेकिन यह पर्व असंभव को संभव कर देता है .सामूहिक उत्तरदायित्व और समाजवाद का सुन्दरतम रूप हमें छठ पर्व में ही देखने को मिलता है .बिहार और उससे सटे झारखंड और पूर्वी उत्तरप्रदेश के जिलों में मनाया जाने बाला यह पर्व किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा .देश-और विदेश में भी यह त्यौहार घर की खुशबू और माटी की खुशबू महसूस कराता है .अपना घर ,अपनी ताल तलैया ,छठ का दउरा ,केले का घवद ,टिमटिमाते दीपक और नाक पर सिन्दूर लगाये माँ –चाची ,छठ के गीत सब आँखों के सामने नाचने लगते हैं .बाजार की चहलपहल देखते ही बनती है .कई चीजें खरीदनी होती हैं .


मौसमी फल, केला ,गुड़ के बने ठकुआ .हाँ गन्ना जरूर चाहिये .ये सभी सामान एक तरह से जाड़े के स्वागत के प्रतीक हैं .इन सभी वस्तुओं से सूरज को हम अर्घ्य देते हैं और आगामी शीत ऋतू का सामना करने की भी तैयारी करते हैं .अर्घ्य देने से आज के दिन यहाँ जात पात का कोई बंधन नहीं .कोई दुराव नहीं .बड़प्पन को लेकर कोई आग्रह-दुराग्रह नहीं .सभी जाति के लोग एक ही घाट पर छठ मनाते हैं .सामाजिक सद्भाव कही से भी नहीं दरकता .जल उठाइए और अरघ दीजिए कोई मंत्र नहीं कोई पुरोहित नहीं
समय बदल रहा है लेकिन हमारे इस पर्व का रूप कमोवेश वही है ,शुचिता के मामले में ,स्वच्छता के मामले में भाईचारे के मामले में ,समाज को एक सूत्र में पिरोने के मामले में ।
आइये हम अस्ताचलगामी और उदयीमान सूर्य को नमन करें और आनंद उल्लास के साथ जीवन के अरुणिम सुबह की प्रतीक्षा करें .

मगध से छठ की शुरुआत : छठ विशेष भाग -1

भारत के 12 अर्क (सूर्य मंदिर)और सूर्य पूजा : छठ विशेष भाग -2

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