गुजरात राज्य के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे विश्वप्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग हैं। यह ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर में स्थापित है। पहले इस क्षेत्र को प्रभासक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता था।
हमारे पुराणों के अनुसार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का पहला ज्योतिर्लिंग है।
इसकी कथा इस प्रकार है।
दक्ष प्रजापति की कई कन्याये थी उनमें से रोहिणी और रेवती का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। किंतु चंद्रमा का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से रेवती अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा-कथा अपने पिता प्रजापति दक्ष को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया।
किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः दक्ष ने कुपित होकर चंद्रमा को ‘क्षयग्रस्त’ हो जाने का शाप दे दिया। शाप के कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए। उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का उनका सारा कार्य रूक गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई।
उनकी प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गए। सारी बातों को सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- ‘चंद्रमा अपने शाप-विमोचन के लिए अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभासक्षेत्र में जाकर महामृत्युंजय मंत्र से भगवान् शिव की आराधना करें। भगवान महादेव की कृपा से शाप नष्ट हो जाएगा और ये रोगमक्त हो जाएंगे।
उनके कथनानुसार चंद्रदेव ने महर्षि मार्कंडेय द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र से भगवान् महादेब की आराधना की इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर देते हुए कहा- ‘चंद्रदेव! तुम शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी।
कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।’ चंद्रमा को मिलने वाले इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे। सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं में सुधा-वर्षण का कार्य पूर्ववत् करने लगे।
शाप मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान् से प्रार्थना की कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदा के लिए प्राणों के उद्धारार्थ यहाँ निवास करें। भगवान् शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहाँ रहने लगे। चंद्रमा का एक नाम सोम भी है, उन्होंने भगवान् शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी।
अतः इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है
भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम में अरब सागर के तट पर स्थित आदि ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर स्थित है। यह तीर्थस्थान देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है और इसका उल्लेख स्कंदपुराणम, श्रीमद्भागवत गीता, शिवपुराणम आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है। वहीं ऋग्वेद में भी सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख है।
यह लिंग शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार आक्रमणकारियों ने इस मंदिर पर 6 बार आक्रमण किया। इसके बाद भी इस मंदिर का वर्तमान अस्तित्व इसके पुनर्निर्माण के प्रयास और सांप्रदायिक सद्भावना का ही परिचायक है। सातवीं बार यह मंदिर कैलाश महामेरु प्रसाद शैली में बनाया गया है। इसके निर्माण कार्य से सरदार वल्लभभाई पटेल भी जुड़े रह चुके हैं।
सोमनाथ मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इसका 150 फुट ऊंचा शिखर है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था।