नई दिल्ली: यूं तो भारत में बहुत सारे शिव मंदिर हैं. कई मंदिर ऐसे हैं, जिनका संबंध पौराणिक समय से है. इनमें से एक भारत के दक्षिण भाग के कर्नाटक राज्य में उत्तर कन्नड़ जिले की भटकल तहसील में ही मुरुदेश्वर मंदिर स्थित है. यहां पर भगवान शिव का आत्म लिंग स्थापित है. जिसका संबंध रामायण काल से माना जाता है. यह मंदिर अरब सागर के बहुत ही शांत और सुंदर तट पर बना हुआ है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार रामायण काल में रावण ने भगवान शिव से अमरता का वर पाने के लिए तपस्या की थी. तब भोलेनाथ ने रावण के तप से प्रसन्न होकर उसे एक शिवलिंग दिया था, जिसे आत्मलिंग कहते हैं. भगवान शंकर ने रावण को कहा था कि यदि वह अमर होना चाहता है तो इस शिवलिंग को लंका जाकर ही स्थापित करें क्योंकि इसे जिस स्थान पर रख दिया जाएगा यह वहीं स्थापित हो जाएगा. देवता रावण को अमर होता नहीं देखना चाहते चाहते थे. तब भगवान विष्णु ने छल से रावण से वह शिवलिंग धरती पर रखवा दिया, जिसके कारण वह वहीं पर स्थापित हो गया. जब रावण को इस छल का पता चला तो उसने गुस्से में आकर शिवलिंग को नष्ट करने की कोशिश की. इस कोशिश में शिवलिंग पर ढका हुआ वस्त्र उड़ कर मुरुदेश्वर क्षेत्र में आ गया. जिसके कारण इस स्थान को तीर्थ क्षेत्र माना जाने लगा.
भगवान शिव की आदमकद प्रतिमा
मंदिर परिसर में भोलेनाथ की भव्य प्रतिमा स्थापित है. इस प्रतिमा की ऊंचाई करीब 123 फीट है. अरब सागर में इसे बहुत दूर से देखा जा सकता है. इसके निर्माण में 2 वर्षों का समय लगा. इसे संसार की दूसरी सबसे ऊंची प्रतिमा माना जाता है. इस प्रतिमा का निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि इस पर दिन भर सूर्य की किरणें पड़ने से यह चमकती रहती है. मंदिर के मुख्य द्वार पर 2 हाथियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं.
प्राकृतिक सुंदरता
जिस पहाड़ी पर यह मंदिर बना है वह तीनों अोर से अरब सागर से घिरी हुई है. यहां की प्राकृतिक सुंदरता सबका मन मोह लेती है. चारों तरफ हरियाली अौर समुद्र बहुत ही सुंदर और आकर्षक लगते हैं.