क्या है भूतपूर्व सैनिकों की नाराजगी की असली वजह ?
के के अवस्थी“बेढंगा”
BNN DESK: हाल ही में चीन के सरकारी पत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक सर्वे के माध्यम से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए ये बताया कि चीन के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों की पसंद है, भारत के प्रधानमंत्री एवं उनकी नीतियाँ . ये सर्वे चीन के सरकारी पत्र ने उस समय जारी किया जब भारत और चीन के मध्य सीमा विवाद ने विश्व स्तर पर तूल पकड़ा हुआ है और साथ ही भारत ने कई चीनी कंपनियों पर बैन लगते हुए एक प्रकार से चीन पर आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक की है .
चीन के अगर चरित्र की बात करे तो चीन कभी भी बिना फायदे के कुछ भी नहीं करता, फिर प्रशन यह उठता है कि एसे समय जब भारत खुल कर चीन एवं उसकी नीतियों का विरोध कर रहा है तो चीन उसको दरनिकार करते हुए ठीक उसके उलट एसा क्यों कर रहा है ? तो उसका उत्तर है, चीन की हुवावे कम्पनी जो 5G लाने वाली है और लगभग 20 वर्षो से भारत के साथ व्यापार कर चीन को आर्थिक लाभ पंहुचा रही है . अगर ध्यान से देखें तो चीन के सरकारी पत्र ग्लोबल टाइम्स ने अपनी कम्पनी हुवावे के लिए PR एक्सरसाइज करते हुए यह कदम उठाया है . वर्तमान में चीन की अर्थव्यवस्था को भरी नुकसान तो हुआ ही है साथ ही विश्व स्तर पर, उसकी विस्तारवादी नीति के कारण कई देशो ने चीन एवं उसकी कम्पनियों को बैन करना शुरू कर दिया है . अगर इस सर्वे को सच भी मान ले तो ग्लोबल टाइम्स के अनुसार यह सर्वे केवल चीन के चार बड़े शहरों के मात्र 2000 लोगों पर किया गया था . अब सोचने वाली बात यह है कि दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश में सिर्फ 2000 लोगों पर किया गया सर्वे कितना यथार्थ होगा . यह तारीफ़ सिर्फ भारत को दिग्भ्रमित करने की एक विषैली चाल के आलावा कुछ नहीं . इसके पीछे का एकमात्र उद्देश्य हुवावे को भारतीय बाजार में मजबूत करना मात्र है . कोरोना महामारी और गलवान घटी की हिंसा के बाद सबसे बड़ा आर्थिक खमियाजा हुवावे को ही भुगतना पड़ा है . जहाँ भारत ने पहले ही हुवावे को निकालने की बात कर चुका है वहीँ अमेरिका, यू के, ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड ने भी इसे बैन कर दिया है .कई देश इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा बता रहे है . इसीलिए चीन भारत की तारीफ कर अपनी आर्थिक क्षति व छवि को बचाकर भारत की ओर से निरंतर हो रही आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक को रोकने का प्रयास करना चाहता है .
15 जून 2020 को हुई गलवान घटी की झड़प में जहाँ भारत के 20 योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए थे वहीँ चीन क 40 से अधिक सैनिक भी मारे गये थे . भारत ने जहाँ अपने वीर सपूतो को सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी वहीँ चीन सरकार ने अपने जवानो की मौत को स्वीकारा तक नहीं . भारत एल ए सी पर मजबूती से चीन को जबाब तो दे ही रहा है साथ ही साथ भारत ने चीन के खिलाफ आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चाबंदी भी शुरू कर दी है, वहीँ दूसरी ओर चीन की कम्यूनिष्ट सरकार अपने देशवासियों को सच तक बताने में लाचार दिख रही है . अपनें ही सैनिको की मौत को अपने ही देश को ना बताने तथा अपने सैनिको की अन्त्योष्टि पर उनको सैन्य सम्मान के साथ विदाई न से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के भूतपूर्व सैनिकों व मौजूदा सैनिकों के भीतर कम्युनिष्ट चीन सरकार के खिलाफ एक विद्रोह की चिंगारी प्रस्फुटित हो चुकी है . पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के भूतपूर्व सैनिक जगह-जगह अपना विरोध प्प्रदर्शन कर रहे है . कम्युनिष्ट पार्टी के एक पूर्व नेता के पुत्र जियालिन यांग के एक लेख के अनुसार, पूर्व व मौजूदा सैनिक चीन सरकार के खिलाफ कभी भी सशत्र विद्रोह कर सकते है .
सिटिजन पॉवर इनिसिएटिव फॉर चाइना नामक संगठन के संस्थापक व अध्यक्ष यांग ने वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक लेख में कहा कि, बीजिंग को यह डर है कि अगर वह यह मान लेता है कि गलवान में भारत की अपेक्षा उसके सैनिक अधिक मारे गये है तो देश में अशांति फैल सकती है और कम्युनिष्ट पार्टी की सत्ता खतरे में पड सकती है .
चीन में इसको लेकर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के भूतपूर्व सैनिकों में शी जिनपिंग और उनकी कम्युनिष्ट पार्टी के खिलाफ बढ़ता विरोध, विद्रोह का रूप कभी भी ले सकता है . पीपुल्स लिबरेशन आर्मी हमेशा से कम्युनिष्ट पार्टी के साथ खड़ी रही है या कहें पीपुल्स लिबरेशन आर्मी कम्युनिष्ट पार्टी की मजबूती का असली आधार है . एसे में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के भूतपूर्व सैनिकों की सामूहिक व सशत्र कार्यवाही की सक्षमता को जिनपिंग सरकार हलके में नहीं ले सकती .
क्या है भूतपूर्व सैनिकों की नाराजगी की असली वजह ?
चीन में भूतपूर्व सैनिको की संख्या लगभग 5 करोड़ 70 लाख है जो अपने आप में एक बहुत बड़ी संख्या है . जिस प्रकार चीन ने अपने सैनिको की मौत को सम्मान नहीं दिया और उनकी संख्या तक को बताने से इंकार कर दिया उससे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के भूतपूर्व सैनिकों व मौजूदा सैनिको के हृदय पर गहरा कुठाराघात हुआ . चीन के सोशल मिडिया प्लेटफोर्म विबो पर कई दिनों तक यह ट्रेंड किया और इस पर तंज कसे गये या कहे एक तरह से सैनिको का देशव्यापी अपमान हुआ . इस पर जियानली यांग ने अपने एक लेख में कहा,
“जिन लोगों ने कोरियाई युद्ध व चीन वियतनाम युद्ध में अपनी सेवाएँ दी वो अब आये दिन चीन की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करते है . उन्हें चीनी सरकार ने आज तक वो सम्मान नहीं दिया जिसके वो योग्य है .”
चीन के पूर्व सैनिको के विरोध का एकमात्र यही कारण नहीं है, इसने तो बस चिंगारी को आग बनाने का काम किया है . पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के भूतपूर्व सैनिकों के विद्रोह का कई मूल कारण है उनमें उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद अच्छी स्वाथ्य सेवाओं का ना मिलना, पेंशन व जीवनयापन के लिए योग्य नौकरी का ना मिलना आदि प्रमुख है जिसके लिए वे चीन सरकार का काफी समय से विरोध कर रहे थे . चीन की सरकार ने उनकी समस्याओं को पूरा करना तो दूर ध्यान देने योग्य भी नहीं समझा . जियानली यांग के एक लेख के अनुसार,
“ चीन में इन पूर्व सैनिको की हालत उन पशुओं की तरह हो गयी है, जिन्हें वृद्ध होने पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है .”
चीनी प्रवक्ता ने जब इस पर मिडिया द्वारा पूछे गये सवाल पर जानकारी तक देने से मन कर दिया तब पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के भूतपूर्व सैनिकों के हृदयों में जलती विद्रोह की ज्वाला न सिर्फ दीर्घ प्रज्वलित हुई अपितु उसने अपनी विकरालता के संकेत भी दे दिए .
चीन में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी हमेशा कम्युनिष्ट पार्टी के साथ एक मजबूत स्तम्भ की तरह खड़ी रही है . पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ही असल में कम्युनिष्ट पार्टी के शासन का मूल आधार है .एसे में अगर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के भूतपूर्व सैनिकों व मौजूदा सैनिको द्वारा विद्रोह होता है तो उसका सीधा सा मतलब है कम्युनिष्ट पार्टी व जिनपिंग सरकार का अंत . अगर चीन सरकार अपने पूर्व सैनिको को संतुष्ट करने में असफल रहती है और स्थिति को नियंत्रित नहीं कर पाती तो जिनपिंग के साथ पूरी पार्टी का अस्तित्व खतरे में आ सकता है . चीन इससे ध्यान भटकाने के लिए एलएसी पर निरंतर कार्यवाही कर रहा है ताकि उसकी सरकार बच सके परन्तु भारत ने उसके मंसूबों पर पानी फेरने के साथ ही अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ विश्व को एक कर दिया . इस कारण चीन बौखलाया हुआ है, और साथ ही उसे ये डर भी सता रहा है कि वर्तमान में एल ए सी पर भारत की मजबूत सामरिक नीति व स्थिति से निरंतर पिटने पर कहीं उसे अपने ही सैनिको के विद्रोह के कारण अपनी सरकार न गवानी पड़े , इसीलिए चीन न ही एलएसी पर पीछे हटना चाहता है और न ही भारत के साथ अपना व्यापार ख़त्म करना चाहता है . इस असमंजसपूर्ण स्थिति का उत्तर तो भविष्य ही देगा परन्तु सही मायने में जिनपिंग की सरकार बड़ी मुश्किल में फँसती हुई नजर आ रही है .