उपेंद्र सिंह, रांची
नीतीश कुमार के फैसले से उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड यानि जदयू बिहार से बाहर एनडीए का हिस्सा नहीं है. भविष्य में तय समय पर होने वाले 4 राज्यों में जदयू अकेले लड़ने का मन बना कर चुनावी जंग में उतरेगी. जदयू पार्टी अपने इस निर्णय पर अडिग है कि दिल्ली, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव अकेले ही लड़ेगी, इसके पीछे का एक बड़ा कारण जदयू को उसके मनमुताबिक मोदी मंत्रिमंडल में विशेष तरज़ीह नहीं मिलना भी है .
साथ ही एक कारण पार्टी का अपना अलग राष्ट्रीय वजूद कायम करना भी है. जदयू की यह विशेष रणनीति झारखंड में अपने कार्यकर्ताओं को बिदकने से बचाने की मुहिम के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें विधानसभा चुनाव के बाद 81 में कुछ सीटें हासिल कर सत्ता में हिस्सेदारी की राणनीति के रूप में भी देखा जा सकता है.
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कई दलों से जुड़ने और अलग हो जाने वाले नेता को झारखंड जदयू का कमान थमा दिया गया है. ना चाहने पर भी,सालखन मुर्मू को पार्टी की कमान देकर आदिवासियों पर पकड़ बनाने और अल्पसंख्यक वोटों को रिझाने की कवायद भर मानी जा रही है.
यहां हासिये पर आ चुकी पार्टी के अकेले लड़ने का एक बड़ा कारण ये भी रहा है कि जदयू का वजूद खत्म होता चला गया है. इस दल के अध्यक्ष तक भागे क्योंकि जदयू पार्टी को मजबूत जनाधार वाले विधानसभा सीटों का त्याग करना पड़ा है. साथ ही कार्यकर्ता भी दूसरे दलों में चले गये. जदयू का वजूद ऐसा घटा कि विधानसभा चुनाव में शून्य पर आउट होने की स्थिति बन गयी है.
बिहार के तर्ज पर जातीय समीकरण का जदयू करेगी प्रयोग
सुशासन बाबू नीतीश कुमार और दल के वरिष्ठ नेताओं की सोच के अनुरूप बिहार की तर्ज पर पार्टी झारखंड में भी जातीय समीकरण को ही आधार बनाकर चुनावी दाव खेलने वाली है. इसके लिये सीटों की पहचान भी कर रही है. पार्टी उन सीटों पर खास ध्यान दे रही है, जहां पर पूर्व में समता पार्टी का जनाधार रहा साथ ही कुर्मी जाति बहुल इलाकों पर भी विशेष फोकस है, जदयू के उत्साहित नेताओं को उम्मीद है कि अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड तक में पार्टी के विधायक हैं. झारखंड में भी तो कमोबेश सत्ता तक में साझेदार रही है इसलिए उसे जनाधार खड़ा कर जनादेश अपने पक्ष में करना मुश्किल नहीं होगा. जदयू के चुनाव लड़ने के फैसले के साथ ही जनता दल यू अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के लिए नेताओं की खोज में जुट गयी है. जनाधार के अनुसार विधानसभा चुनाव लड़ने का टिकट भी दे दिया जाएगा फिलहाल वैसे यहां लोगों को पार्टी का सदस्य बनाने की मुहिम भी जारी है, झारखंड में जदयू कार्यकर्ताओं से फीडबैक भी ले रही है,पलामू, उत्तरी छोटानागपुर, संथाल परगना की सीटों पर भी पार्टी और उम्मीदवार की वजूद का आकलन हो रहा है.
जदयू पलामू इलाके को मानती है अपना गढ़
अंदुरुनी तौर पर देखे तो जदयू का 81 सीट पर नहीं लगभग 35 सीट पर पकड़ है, जात -पात का वोट बैंक तलाश में पलामू पर पार्टी का सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित है और डालटनगंज, हुसैनाबाद, पांकी, भवनाथपुर, छत्तरपुर, गढ़वा, चतरा, लातेहार जैसी विधानसभा सीटों पर केंद्रीय नेतृत्व द्वारा विशेष तैयारी करने को कहा गया है. जबकि संथाल परगना में शिकारीपाड़ा पर पार्टी अपना दांव लगा सकती है. देवघर, जरमुंडी विधानसभा क्षेत्रों में भी दमदार प्रत्याशी की तलाश में जदयू जुगत भीड़ा रही है. इधर राजधानी रांची के निकट दक्षिणी छोटानागपुर में तमाड़, खूंटी, सिल्ली पर भी पार्टी की नजर है. ईचागढ़, मांडू, गोमिया, हजारीबाग व कोडरमा विधानसभा सीटों को भी वैसे दमदार चेहरे को पार्टी का सिंबल देने के लिये मनाया जाएगा जो की अपने बूते ही जदयू के लिये सीट निकाल सकते है.
केंद्रीय चुनाव आयोग से राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता हासिल करने का रास्ता झारखंड से
जदयू सीटों को इजाफा करने से केंद्रीय चुनाव आयोग से राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता हासिल करने का रास्ता सुगम होगा. झारखंड चुनाव को मौका मान नीतीश का जोर भी है. जदयू को राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता हासिल करने के लिए तत्काल किसी भी राज्य के विधानसभा चुनाव में 10 प्रतिशत वोट मिलना आवश्यक है. झारखंड चुनाव में पार्टी को महज दो से चार सीटों पर जीत दर्ज कर ये शर्त भी पूरी हो जायेगी.