मोतिहारी: फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन द्वारा प्रस्तुत टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में पांच करोड़ रुपये जीतकर देश में अपना नाम रौशन करने वाले सुशील कुमार अब अपने होम टॉउन चंपारण की पुरानी पहचान लौटाने में जुटे हैं.
सुशील आज चंपारण की पुरानी पहचान देने के लिए ‘चंपा से चंपारण’ अभियान के तहत चंपा का पौधा लगा रहे हैं. सुशील का दावा है कि उन्होंने अब तक 70 हजार चंपा के पौधे लगवा चुके हैं.
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सुशील का कहना है कि चंपारण का असली नाम ‘चंपाकारण्य’ है. इसकी पहचान यहां के बहुतायत चंपा के पेड़ हुआ करते थे, लेकिन कलांतर में ये सभी पेड़ समाप्त हो गए. आज चंपारण में चंपा का एक भी पेड़ नहीं है.
सुशील ने बातचीत में कहा कि यह अभियान वह पिछले एक साल से चला रहे हैं. उन्होंने कहा, “मेरा यह अभियान विश्व पृथ्वी दिवस के मौके पर 22 अप्रैल, 2018 को शुरू हुआ था. अब तक 70 हजार चंपा के पौधे चंपाराण में लगाए गए हैं. ”
उन्होंने कहा कि शुरुआत में इस अभियान में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब लोग खुद ‘चंपा से चंपारण’ अभियान से जुड़ रहे हैं. सुशील कहते हैं कि चंपारण जिले के गांव से लेकर शहर, कस्बों के घरों को इस अभियान से जोड़ा जा रहा है. इस अभियान के तहत लोग घरों में पहुंचकर उस घर के लोगों से ही चंपा का पौधरोपण करवाते हैं.
उन्होंने बताया कि महीने में एक बार लगाए गए पौधे की गणना की जाती है, गणना के दौरान अगर पौधा किसी कारणवश सूख या नष्ट पाया जाता है, तब फिर वहां पौधरोपण किया जाता है.
‘करोड़पति’ के रूप में अपने क्षेत्र में पहचान बना चुके सुशील की पहचान अब चंपा और पीपल वाले के रूप में हो गई है.
वह कहते हैं कि ऐसा नहीं कि केवल चंपा के ही पौधे लगाए जा रहे हैं. खुले स्थानों जैसे मंदिर, स्कूल परिसर, पंचायत भवन, अस्पताल परिसर में पीपल, बरगद और पकड़ी के भी पौधे लगाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि पिछले करीब दो महीने में 156 पीपल, छह बरगद और तीन पकड़ी के पौधे लगाए गए हैं. सुशील कहते हैं कि इस कार्य में संबंधित ग्राम पंचायत के मुखिया, वार्ड पार्षदों की भी मदद ली जाती है.
सुशील कहते हैं कि शुरुआत में उन्होंने अपने पैसे लगाकर चंपा के पौधे खरीदकर घर-घर जाकर लगवाए, लेकिन बाद में सामाजिक लोग मदद के लिए सामने आए. उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति ने तो 25 हजार चंपा के पौधे उपलब्ध करवाए.
गौर करने वाली बात है कि सुशील जहां भी पौधे लगवाते हैं, उसकी गणना करवाते हैं और उसे रजिस्टर में लिखा जाता है. पौधा लगाने की तस्वीर भी वे अपने फेसबुक वॉल पर डाल देते हैं.
महात्मा गांधी ने चंपारण से ही सत्याग्रह की शुरुआत की थी। बाद में यह चंपारण क्षेत्र दो जिलों पूर्वी चंपाारण और पश्चिमी चंपारण में बंट गया. सुशील पूर्वी चंपारण के जिला मुख्यालय मोतीहारी में रहते हैं.
सुशील कहते हैं कि पहले यहां 80 रुपये की दर से चंपा के पौधे मिलते थे, लेकिन आज 15 रुपये प्रति पौधे की दर से चंपा के पौधे उपलब्ध हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस अभियान के लिए कोई संस्था या संगठन नहीं बनाया गया है, लेकिन इस अभियान से बड़ी संख्या में महिला और पुरुष, छात्र-छात्राएं जुड़े हुए हैं, जो घर-घर जाकर पौधरोपण कर रहे हैं.
भविष्य की योजना के बारे में पूछे जाने पर सुशील ने कहा, “मेरा यह अभियान चलता रहेगा. चंपारण के बाद यह पूरे राज्य में पहुंचेगा. ”
उनका कहना है कि किसी एक व्यक्ति के प्रयास से पर्यावरण संतुलन नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके लिए छोटा ही सही, प्रयास तो किया जा ही सकता है. उन्होंने कहा कि आज पीपल और बरगद जैसे पेड़ तेजी से नष्ट हो रहे हैं, क्योंकि ये ज्यादा स्थान घेरते हैं. हालांकि वे यह भी कहते हैं ऐसे पेड़ों को बचाना जरूरी है. इस अभियान में सुशील का साथ देने वाले और वर्षो से पर्यावरण बचाने में लगे मोतिहारी के व्यवसायी आलोक दत्ता कहते हैं, “हमारा मकसद चंपारण को न केवल पुरानी पहचान दिलवाना है, बल्कि आने वाली पीढ़ी को यह बताना भी है कि इस क्षेत्र का चंपारण नाम क्यों पड़ा. ”
उन्होंने कहा कि आज पेड़ को बचाकर ही पर्यावरण को संतुलित किया जा सकता है और मानव जीवन बचाया जा सकता है.