चंदन मिश्र
रांची: झारखंड के दो विधानसभा क्षेत्रों के लिए हो रहे उपचुनाव का प्रचार अभियान पूरे उफान पर है. प्रचार के लिए अंतिम छत्तीस घंटे ही बचे हैं. चुनाव लड़ रही प्रमुख पार्टियों ने अपना सबकुछ झोंक दिया है.
दुमका तथा बेरमो सीट सत्ताधारी दल झामुमो-कांग्रेस और विपक्षी भाजपा-आजसू के लिए प्रतिष्ठामूलक बन चुकी है. सीट जीतने के लिए दल और दलों के नेता कोई कसर नहीं छो़ड़ना चाहते हैं. प्रचार अभियान में नेताओं के बीच जुबानी जंग भी तेज हो गई है. नेताओं ने राजनैतिक लड़ाई को व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप के हथियार बना लिए हैं, जिससे प्रदेश के सियासी हलके में भाषा अपनी मर्यादा और नेता अपना संयम खोते जा रहे हैं.
चुनाव में हार-जीत स्वाभाविक है, लेकिन बड़े नेता इस चुनाव में जिस तरह की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, इससे राजनीतिक वातावरण कलुषित हो रही है. चुनावी मैदान में बोली जानेवाली भाषा स्तरहीन होती जा रही है. चुनावी रैलियों-सभाओं में तू-तू, मैं-मैं का ऐसा घटिया प्रदर्शन सूबे की सियासत को कहां लेकर जाएगी ? सवाल यह उठना लाजिमी है.
जब चुनाव खत्म होंगे तो क्या ये कड़वी जुबान लेकर नेता आमने-सामने एक-दूसरे से आंखें मिला पाएंगे ? चुनावी जंग के दरम्यान बोली जानेवाली ऐसी कड़वी जुबान को सूबे के प्रमुख दलों के प्रवक्ताओं ने अमर्यादित, असयंमित और अनैतिक माना है. सबका कहना है कि भाषा की मर्यादा और जुबान का संयमित होना बहुत जरूरी है. अमर्यादित भाषा और संयत खोते नेताओं के अंदाज से समाज में अच्छा संदेश नहीं जा रहा है. सभी दलों ने इस पर गंभीर चिंता जतायी है.
दुमका और बेरमो सीट पर चुनावी जंग दिलचस्प दौर पर है. अगले चंद घंटों के बाद प्रचार का उफान थम जाएगा. फिर आएगी वोटरों की बारी. सभी दलों के बड़े नेता दुमका और बेरमो विधानसभा क्षेत्र के शहरी से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों की चौहद्दी नाप चुके हैं.
दर्जनों सभाएं, जनसंपर्क अभियान किए जा चुके हैं. गाड़ियां दिन रात सरपट भाग रही हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दुमका और बेरमो के अलग-अलग स्थानों पर सभा और रैलियां कर रहे हैं.
उधर भाजपा के अध्यक्ष दीपक प्रकाश अपनी पूरी टीम और सहयोगी दल आजसू के साथ दोनों विधानसभा क्षेत्रों में पूरी ताकत झोंक रहे हैं. सभी विधायक, कई सांसद अलग-अलग स्थानों पर तैनात हैं. झामुमो को कांग्रेस का साथ मिल रहा है, वहीं भाजपा को आजसू की ताकत.
दुमका में सत्तारुढ़ झामुमो के उम्मीदवार बसंत सोरेन का सीधा मुकाबला भाजपा के उम्मीदवार लुईस मरांडी से है. दोनों दलों ने यहां अपना सबकुछ झोंक दिया है.
झामुमो उम्मीदवार के लिए सुप्रीमो शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुवाई में सरकार के मंत्री, विधायक और सांसद कोने-कोने में डटे हुए हैं.
वहीं भाजपा की ओर से विधायक दल नेता और अध्यक्ष के नेतृत्व में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, विधायक और सांसद भी दुमका में जगह-जगह चुनाव प्रचार कर रहे हैं. नुक्कड़ सभाएं कर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की जुगत में लगे हैं.
बेरमो विधानसभा में कांग्रेस के कुमार जयमंगल सिंह और भाजपा के योगेश्वर महतो के बीच सीधी टक्कर है. दोनों उम्मीदवारों के पीछे उनके दल के नेता, कार्यकर्ता जगह-जगह फैले हुए हैं. बेरमो में भाजपा उम्मीदवार के साथ आजसू का विशेष सहयोग भाजपा उम्मीदवार को राहत दे रहा है. वहीं कांग्रेस उम्मीदवार को झामुमो का पूरा समर्थन मिल रहा है. इस सीट पर किसी भी पक्ष को हल्का या भारी कहना मुनासिब नहीं होगा. मुकाबला रोचक बन पड़ा है और दोनों के बीच कांटे की लड़ाई है. किसका पलड़ा भारी है, यह तीन नवंबर को शाम होते ही साफ हो जाएगा. इस चुनाव में धनबल और बाहुबल के जोर से इंकार नहीं किया जा सकता है.
जुबानी जंग पर क्या कहते हैं दलों के नेता – – –
भाजपा
चुनाव में प्रचार के दौरान भाषा की मर्यादा खोना किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने पहले ही सबको चेताया है. बड़े नेताओं की भाषा पर संयम बरतना और संयमित बातें कहने की सबसे बड़ी जिम्मेवारी है. चुनाव में पक्ष-विपक्ष पर आरोप-प्रत्यारोप लगना स्वाभाविक है लेकिन किसी भी परिस्थिति में भाषा मर्यादित होनी चाहिए. अमर्यादित भाषा से समाज में गलत संदेश जाता है- प्रदीप सिन्हा, प्रदेश प्रवक्ता, भाजपा
झामुमो
राजनीति में व्यक्तिगत आक्रमण सही नहीं है. यह एक नया ट्रेंड आ गया है. खासकर भाजपा में ऊपर से नीचे तक के नेता भाषा की मर्यादा का खयाल ही नहीं रख रहे हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर लगातार छह साल से व्यक्तिगत आक्रमण किया जा रहा है. यह सही नहीं है. अमर्यादित और अवांछित भाषा से समाज में गंदगी फैलती है. ऐसे में गंदगी के कीट को मारने के लिए हमें कीटनाशक का प्रयोग करना पड़ता है- सुप्रियो भट्टाचार्य, महासचिव सह केंद्रीय प्रवक्ता, झामुमो
कांग्रेस
राजनीति में भाषा की मर्यादा तो होनी ही चाहिए. नेताओं को एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रखना चाहिए. चुनाव में दलों के बीच नीतिगत और सैद्धांतिक विरोध स्वाभाविक है, लेकिन इसे व्यक्तिगत स्तर पर कभी नहीं लाना चाहिए. भाषा और जुबान में नैतिकता, संयम और शालीनता तो होनी ही चाहिए. सामाजिक और सार्वजनिक जीवन में इसके गंभीर मायने हैं- आलोक दुबे, प्रदेश प्रवक्ता, कांग्रेस