रांची (झारखंड) : झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन 26 अगस्त से झारखंड में सरकार बदलने की आकांक्षा लिए ‘बदलाव यात्रा’ की शुरुआत करने वाले हैं. इस यात्रा को लेकर झामुमो के कार्यकर्ता जहां उत्साहित हैं, वहीं विरोधी इस यात्रा को लेकर निशाना साध रहे हैं.
लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज करने वाली पार्टी झामुमो के नेता हेमंत सोरेन ने ‘संघर्ष यात्रा’ की थी, लेकिन उन्हें आशातीत सफलता नहीं मिल सकी. ऐसे में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए अच्छा प्रदर्शन करना बड़ी चुनौती है.
वैसे, महागठबंधन में झामुमो के सहयोगी रहे दलों में बिखराव और भाजपा के कुनबे का आकार लगातार बढ़ने से भी पार्टी चिंतित है.
झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा, “बदलाव यात्रा और बदलाव महारैली का मकसद झारखंड की सत्ता में बदलाव लाना है.यहां जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ रहे लोगों की राजनीति झामुमो करता है और इनके हक की बात करना ही पार्टी का मकसद है.”
उन्होंने कहा कि साहेबगंज से शुरू होने वाली इस यात्रा के दौरान राज्य के प्रत्येक जिला मुख्यालय में एक जनसभा का आयोजन किया जाएगा. चरणवार होने वाली इस यात्रा की समाप्ति रांची में बदलाव महारैली के साथ अक्टूबर में होगी.
भट्टाचार्य कहते हैं कि राज्य सरकार कारपोरेट वर्ग के हाथों की कठपुतली की तरह काम कर रही है. सरकार के विकास के दावे अखबारों और शहर में लगे बड़े-बड़े होर्डिगों में ही नजर आ रहे हैं.
उधर, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने झामुमो के प्रस्तावित बदलाव यात्रा को ‘नौटंकी यात्रा’ करार दिया. उन्होंने कहा कि प्रदेश में बदलाव लाने से पहले सोरेन परिवार और झामुमो के शीर्ष नेतृत्व को अपने लूट-खसोट वाले विचारों में बदलाव लाना चाहिए.
प्रतुल ने कहा, “प्रदेश में बदलाव करने से पहले झामुमो को पहले अपने अंदर इन बदलावों की शुरुआत करनी चाहिए.”
उन्होंने कहा कि झामुमो के शीर्ष नेतृत्व को आदिवासी मूलवासियों को सिर्फ वोट बैंक बनाकर रखने की अपनी सोच में भी बदलाव लाना चाहिए. उन्होंने कहा कि झामुमो विधानसभा चुनाव में अपने अस्तित्व बचाने की कोशिश करेगी और उसी की यह तैयारी है.
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झामुमो इस बदलाव यात्रा से पार्टी में जान फूंकने की कोशिश कर रही है. उन्होंने दावा किया कि सत्ता से अलग होने के बाद पार्टी को एकजुट रखना किसी भी नेता की बड़ी जिम्मेदारी होती है.
उन्होंने कहा, “झामुमो में टूट तय माना जा रहा है, जिसके संकेत भी मिलने लगे हैं. ऐसे में झामुमो कर्यकारी अध्यक्ष की यह बदलाव यात्रा अस्तित्व बचाने की लड़ाई के तौर पर देखी जा सकती है.”
झामुमो के एक नेता भी अपना नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बताते हैं कि गांव-गांव की पार्टी मानी जाने वाली झामुमो में कार्यकर्ता आज पार्टी छोड़कर भाग रहे हैं. ऐसे में झामुमो की इस बदलाव यात्रा का मकसद गांव-गांव और गली-गली पार्टी को मजबूत करना है. झामुमो के सामने मुख्य चुनौती संथाल में पार्टी का गढ़ बचाने की है. यहां भाजपा सेंधमारी कर चुकी है.
वे कहते हैं कि पहले संथाल की सीटों पर झामुमो जीत के प्रति लगभग आश्वस्त रहती थी, पर अब हालात बदल गए हैं. वर्ष 2014 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को मात्र 19 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था.
झरखंड की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक बैजनाथ मिश्र स्पष्ट कहते हैं कि अब झामुमो पहले वाली झामुमो नहीं रह गई है. राज्य के सबसे बड़े विपक्षी दल झामुमो के सामने भाजपा के ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के नारे का काट ढूंढना होगा और संथाल में खिसके जनाधार को फिर से मजबूत करना होगा.
उन्होंने बेबाक अंदाज में कहा, “हेमंत सोरेन की यह यात्रा केवल अपनी ताकत दिखाना और इसी के बल पर कार्यकर्ताओं को समेटना है.”
बहरहाल, हेमंत सोरेन की बदलाव यात्रा झामुमो को कितनी संजीवनी देती है यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इतना तो तय है कि झामुमो के लिए बड़ी चुनौती अपने खिसके जनाधार को वापस लाना है.