दिल्ली: कोरोना वायरस के खात्मे के लिए भारत में दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान चलाया जा रहा है. सबसे पहले फ्रंट लाइन वर्कर्स को वैक्सीन दी जा रही है. इस बीच एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि 20 फीसदी लोग कोविड-19 वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते हैं. यह सर्वे नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) की ओर से किया गया है. उसने गुरुवार को दिल्ली-एनसीआर कोरोना वायरस टेलीफोन सर्वे (DCVTS-4) के चौथे चरण का रिजल्ट जारी किया.
NCAER की ओर से किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 20 प्रतिशत लोगों ने कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाने का निश्चय किया है. इनमें से 22.4 फीसदी लोग ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं, जबकि 17.5 फीसदी लोग शहरी क्षेत्र के हैं. इसके अलावा चार फीसदी लोगों का कहना है कि वैक्सीन को इसलिए नहीं लगवाएंगे क्योंकि वे पहले से ही संक्रमित हैं.
सर्वे में दावा किया गया है कि 15 फीसदी ऐसे लोग हैं जो वैक्सीन लेने को लेकर सुनिश्चित नहीं हैं. इन तीनों श्रेणियों को मिलाकर देखा जाए तो 39 फीसदी लोग दिल्ली-एनसीआर में वैक्सीन लगवाने को लेकर हिचकिचाहट व संकोच महसूस कर रहे हैं. सर्वे के अनुसार, लगभग 41 फीसदी लोगों का मानना है कि वैक्सीन सरकार या उनके कंपनियों की ओर से मुफ्त में दी जानी चाहिए. अतिरिक्त 14 फीसदी लोगों का कहना है कि वे 500 रुपए से अधिक का भुगतान नहीं कर पाएंगे.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि कोविड-19 के देशव्यापी टीकाकरण अभियान के छठे दिन शाम छह बजे तक टीका लगवाने वाले स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या अंतरिम रिपोर्ट के अनुसार 9,99,065 हो गई है. शाम छह बजे तक 27 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में आयोजित टीकाकरण सत्रों के माध्यम से 1,92,581 लोगों को यह टीका लगाया गया. जहां तक टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभावों (एईएफआई) की बात है तो केवल राजस्थान में अस्पताल में एक व्यक्ति को भर्ती कराए जाने का मामला सामने आया.