के के अवस्थी “बेढंगा”,
किसी देश की राष्ट्रीय आय ही उस देश की अर्थव्यवस्था का मूल होती है. यहाँ राष्ट्रीय आय का यदि हम सीधा अर्थ समझें तो किसी देश के सारे खर्चो को हटा देने के बाद उस देश की जो आय निकलती है उसे ही राष्ट्रीय आय कहा जाता है.
यदि अर्थशास्त्र की भाषा में बात करें तो साधन लागत (Factor Cost ) पर प्राप्त शुद्ध घरेलु उत्पाद {NNP( Net National Product )} ही राष्ट्रीय आय कहलाता है. भारत में राष्ट्रीय आय की गणना CSO (Central Statistics Office ) / केन्द्रीय सांख्यकी कार्यालय उत्पादन व आय के आधार पर करता है.
CSO की स्थापना भारत में 02 मई 1951 को हुई थी . इसका मुख्यालय नयी दिल्ली में है. सर्वप्रथम दादा भाई नरौजी ने भारत की राष्ट्रीय आय की गणना 1867-68 में धन के पलायन के सिद्धांत के आधार पर की थी. उस समय उन्होंने भारत की प्रति व्यक्ति आय 20 रु/वर्ष बताई थी.
इसके बाद वैज्ञानिक आधार पर सर्वप्रथम 1931-32 में VKRV Rao ने राष्ट्रीय आय की गणना कर बताया कि भारत की प्रति व्यक्ति आय 62 रु/ वर्ष है.
आजादी के बाद 1949 में राष्ट्रीय आय की गणना के किये राष्ट्रीय आय समिति का गठन किया गया . बाद में 02 मई 1951 में CSO की स्थापना कर दी गयी जो तत्कालीन समय में भी कार्यरत है .
CSO ने हाल ही में अग्रिम वर्षो के लिए 2017–18 को आधार वर्ष (Base Year) घोषित किया है. हमे राष्ट्रीय आय को समझने के लिए सबसे पहले GDP ( Gross Domestic Product ) को समझना पड़ेगा . आईये जानते है क्या है जीडीपी और कैसे निकलती है इससे राष्ट्रीय आय.|
GDP (Gross Domestic Product) /सकल घरेलू उत्पाद
किसी देश में एक वित्तीय वर्ष में उस देश की सीमा के अन्दर उत्पादित वस्तुओ एवं सेवाओं अंतिम उत्पाद( Finished Goods ) का कुल मौद्रिक मूल्य उस देश सकल घरेलू उत्पाद कहलाता है.
जीडीपी किसी भी देश के विकास का सूचक ? संकेतक होता है जो उस देश की विकास गति को दर्शाता है. सर्व प्रथम जीडीपी शब्द का प्रयोग अमेरिका के एक अर्थशास्त्री मिस्टर साइमन ने किया था.
1935 से 1944 तक अमेरिका व कुछ देशों में इसको मान्यता मिली. 1945 में विश्व बैंक की स्थापना के बाद अन्तरराष्ट्रीय मुद्रकोष संस्थान (IMF) प्रभाव में आया और उसने जीडीपी को मान्यता दे दी, जिसके बाद लगभग पुरे विश्व सभी देशों ने इसको अपना लिया.
किसी भी देश में जीडीपी की गणना करने के प्रमुख तीन घटक ही होते है.
प्राथमिक घटक – इसके अंतर्गत कृषि, पशुपालन, खनन, वानिकी आदि आते हैं. इसकी भारत की जीडीपी में लगभग 17-18 प्रतिशत की हिस्सेदारी है.
द्वतीयक घटक – इसके अंतर्गत विनिर्माण क्षेत्र, उद्योग, आदि आते है . इसकी भारत की जीडीपी में लगभग 29-30 प्रतिशत की हिस्सेदारी है.
तृतीयक घटक – इसके अंतर्गत सेवा क्षेत्र जैसे चिकित्सा, होटल्स, शिक्षा आदि आते है. इसकी भारत की जीडीपी में लगभग 53-54 प्रतिशत की सरवाधिक हिस्सेदारी है.
भारत में एक वित्तीय वर्ष में जीडीपी की गणना हर तीन माह पर होती है.
यह गणना मुख्यतः दो आधारों पर की जाती है . एक कांस्टेंट प्राइस के आधार पर जो आधार वर्ष को मानक रख कर होती है, और दूसरी जो करंट प्राइस के आधार पर वर्तमान बाजार मूल्यों के मानक पर की जाती है.
इससे पहले हम जाने कि राष्ट्रीय आय कैसे पता लगती है हमे अर्थशास्र की कुछ शब्दावलियो का जीडीपी के साथ सम्बन्ध समझ लेना बहुत जरुरी है जैसे Factor Cost (साधन लागत) Market Price (बाजार मूल्य), Net Price ( शुद्ध मूल्य), NIFA, GNPMP, NNPMP, NIT, मूल्य ह्रास आदि .
साधन लागत (Factor Cost) किसी वस्तु के निर्माण में आई कुल लागत होती है. इसमें मुख्यतः चार प्रकार की लागतें शामिल होती हैं. पहली भूमि अर्थात वस्तु के निर्माण के लिए जगह पर पर खर्च लागत, दूसरी मजदूरों पर लगी लागत, तीसरी वस्तु निर्माण में लगा कुल खर्च व अंत में बनाने वाले का मुनाफा. इन सभी को मिलाकर कुल लागत उस वस्तु की साधन लागत कहलाती है .
बाजार मूल्य (Market Price) यदि साधन लागत में हम सरकार द्वारा लिए गये अप्रत्यक्ष कर को जोड़ दे तो हमे उस वस्तु का बाजार मूल्य प्राप्त हो जाता है .
बाजार मूल्य = साधन लागत + अप्रत्यक्ष कर
शुद्ध मूल्य (Net Price) यदि हम बाजार मूल्य में से सरकार के द्वारा दी गयी सब्सिडी अर्थात छूट को घटा दें तो शुद्ध मूल्य प्राप्त हो जाता है .
शुद्ध मूल्य = बाजार मूल्य – छूट
उदा०- यदि किसी वस्तु को बनाने के लिए 6 रु० लगते है और बनाने वाले का मुनाफा 2 रु० है तो उसकी साधन लागत 8 रु० होगी. यदि इसमें सरकार 2 रु० का अप्रत्यक्ष कर लगाती है तो इसका मूल्य 10 रु० हो जाएगा जो इसका बाजार मूल्य कहलायेगा. अब यदि सरकार इस वस्तु पर 1 रु० की छूट दे देती है तो इसका मूल्य 9 रु० हो जाएगा जो इसका शुद्ध मूल्य होगा और इसी मूल्य पर यह वस्तु बाजार पर उपलब्ध होगी उपभोग के लिए .
किसी देश का जीडीपी बाजार मूल्य पर जोड़ा जाता है. और इसकी तुलनात्मक वृद्धि या कमी की प्रतिशतता पिछली जीडीपी से की जाती है .
उदा०- यदि पिछली जीडीपी 1000 रु० थी और वर्तमान में 50 रु० का आधिक उत्पादन हुआ तो कुल जीडीपी 1050 रु० की होगी जो 5% की वृद्धि दर को प्रदर्शित करेगी .
Depreciation (ह्रास) किसी वस्तु के मूल्य में आई कमी या उसके मूल्य में आई घिसावट उस वस्तु के मूल्य में ह्रास को दर्शाती है .
उदाहरण के लिए यदि किसी वस्तु का उत्त्पादन के बाद बाजार मूल्य 1000 रु० था परन्तु बिक्री के समय वह 700 रु० के मूल्य पर बिकती है तो उसका ह्रास 300 रु० का होगा .
NIFA (Net Income from Abroad) अर्थात बहार से प्राप्त शुद्ध आय. किसी देश में उसके देशवासियों द्वारा विदेशो से आई आय तथा उसके देश में रहने वाले विदेशियों द्वारा विदेश भेजी गयी आय का अंतर NIFA कहलाता है.
NIFA = विदेशो से आया धन – देश से बहार गया धन
NIT (NET Indirect Tax) अर्थात शुद्ध अप्रत्यक्ष कर वह कर होता है जो सरकार द्वारा प्रदत्त छूट को हटाने के बाद सरकार को प्राप्त होता है.
NIT = अप्रत्यक्ष कर – छूट
अभी तक चर्चित सभी चीजों को जीडीपी में जोड़ और घटा कर राष्ट्रीय आय को निकाला जाता है. आगे हम अब इसे ही समझने का प्रयास करेंगे.
अभी तक की चर्चा में हमे ज्ञातव्य है कि जीडीपी हमे बाजार मूल्य पर मिलती है . यदि इसी जीडीपी में अगर हम NIFA को जोड़ दें तो हमें GNPMP( Gross National Product ) Market Price मतलब सकल राष्ट्रीय उत्पाद बाजार मूल्य पर प्राप्त हो जाता है.
GNPMP = GDP + NIFA (Net Income from Abroad)
जब GNPMP में से हुए ह्रास (Depreciation) को हटा देते है तो हमें NNPMP (Net National Product ) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद बाजार मूल्य पर प्राप्त हो जाता है | इसे हम NDP (Net Domestic Product ) शुद्ध घरेलु उत्पाद भी कहते है .
NNPMP = GNP – Depreciation (ह्रास)
NNPMP में यदि हम NIT (Net Indirect Tax) को हटा दें तो हमे NNPFC (Net National Product) अर्थात साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय प्राप्त हो जाती है .
NNPFC = NNPMP – NIT (Net Indirect Tax)
साधन लागत पर प्राप्त किसी देश की शुद्ध राष्ट्रीय आय ही उस देश की राष्ट्रीय आय (National Income ) कहलाती है.
NI (National Income) = NNPFC (Net National Product on Market Price)
इसी प्रकार से हम किसी भी देश की राष्ट्रीय आय की गणना करते है. भारत में केन्द्रीय सांख्यकीय कार्यालय इसके लिए उत्तरदायी होता है विभिन्न सूचियों के आधार पर इसकी गणना करता है .
RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने 22 मई 2020 (शुक्रवार) को मीडिया ब्रीफिंग के दौरान अनुमान जताते हुए कहा कि 2020-21 में GDP नेगेटिव में जा सकती है. उन्होंने कहा,
2020-21 में GDP ग्रोथ नेगेटिव रहने का अनुमान है. 2017 के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था मानक मूल्यों (सांकेतिक) के आधार पर विश्व की पाँचवीं सबसे बडी 3.202 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बन गयी है.
अप्रैल 2014 में जारी रिपोर्ट में वर्ष 2011 के एक विश्लेषण में विश्व बैंक ने “क्रयशक्ति समानता” (परचेज़िंग पावर पैरिटी) के आधार पर भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी 11.321 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था घोषित किया. जो 2005 में 10वें स्थान पर थी। 2003-2004 में भारत विश्व में 12वीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था थी.
संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग (यूएनएसडी) के राष्ट्रीय लेखों के प्रमुख समाहार डाटाबेस, दिसम्बर 2013 के आधार पर की गई देशों की रैंकिंग के अनुसार वर्तमान मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद के अनुसार भारत की रैंकिंग 10 और प्रति व्यक्ति सकल आय के अनुसार भारत विश्व में 161वें स्थान पर है. 2003 में प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से विश्व बैंक के अनुसार भारत का 143 वाँ स्थान था.
जनवरी – मार्च तिमाही के दौरान देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 3.1% रही है . जबकि पूरे वित्तीय वर्ष के दौरान भारत देश की जीडीपी की वृद्धि दर 4.2% रही . यह जानकारी केन्द्रीय सांख्यकी विभाग द्वारा 29 मई 2020 को दी गयी,जो कोरोनाकाल के दौरान CSO द्वारा प्रदत्त पहली जानकारी है .
इससे पूर्व अक्टूबर से दिसम्बर की तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 4.7% थी . साल 2019 के दौरान यह वृद्धि दर 6.1% थी.
अगर हम भारत की रियल जीडीपी की बात करें तो वर्तमान में यह लगभग 145.66 लाख करोड़ रूपये है. पिछले वित्तीय वर्ष की पहली तीन तिमाहियों की विकास दर क्रमशः 5.1%,5.6% व 4.7% थी . इससे पहले कई एजंसियो ने अपना अपना अनुमान पेश किया था.
अधिकतर एजंसियो ने मार्च तिमाही में जीडीपी 2% से कमतर ही आंकी थी. जबकि पूरे साल के लिए यह अनुमान 5% के कम का था. इक्रा ने मार्च तिमाही में जीडीपी 1.9%,क्रिसल ने 0.5%, एसबीआई ने 1.2%, केयर ने 3.6%, आईसीआईसीआई ने 1.5% तथा नोमुरा ने 1.5% रहने का अनुमान लगाया था जबकि पूरे वर्ष के लिए यह क्रमशः 4.3%,4%,4.2%,4.7%,5.1% व 5% था.
लॉकडाउन से पहले ही भारत की विकास दर 6 सालो में सबसे निचले स्तर पर थी. एसबीआई इकोरैप की एक रिपोर्ट के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था को लगभग 1.4 लाख करोड़ रूपये का नुकसान हो सकता है,जबकि सरकार ने पहले ही 12 लाख करोड़ का कर्ज ले रखा है.
इस सबका एक बड़ा असर आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था पर अवश्य देखने को मिल सकता है .