मै ‘अंग’ समय के प्रवाह में इतिहास तो बन गया, मगर कब्र में लेटकर भी मैंने अपनी आंखें हमेशा खुली रखीं और अपनी माटी पर होने वाले तमाम परिवर्तनों का अवलोकन करता रहा। यह कर्णगढ़ तब नहीं था, जब इस भूमि ने ‘अंग’ नाम धारण किया था और ‘मैं’ बना था पहला अंगराज। उस वक्त भी नहीं, जब त्रेताकाल में राजा. रोमपाद सिंहासनारूढ़ थे। कर्णगढ़ के रूप में तो यह भूखंड तब नामित हुआ, जब मालिनी पर चंपा हावी हो गई।
यहां यह बता दूं कि नाम भले ही बार-बार बदले हों इस भूखंड के, मगर माटी वही रही, उड़ने वाली धूल का रंग नहीं बदला, नदियां वैसे ही बहती रहीं, चिड़ियां पूर्ववत चहकती-फुदकती रहीं। हां, गुजरते वक्त के साथ इतिहास जरूर नई अंगड़ाइयां लेता रहा। उन्हीं अंगड़ाइयों की सिलवटें आज खोदाई में पुरासामग्रियों की शक्ल में बाहर निकल कर लोगों की हैरत बढ़ा रही हैं। कर्णगढ़ की खोदाई से यह बात भी स्पष्ट हो गयी है कि पहले गढ़ के चारों और मिट्टी की टीलेनुमा चहारदीवारी थीं, जिसके कुछ अंश आज भी चम्पा नदी के दक्षिण-पूर्व महम्मदपुर, भीमकित्ता, बहवलपुर, नूरपुर, दिग्धी, किशनपुर से लेकर शाहजंगी तक परिलक्षित हैं। चंपा की चौबीस फीट ऊंची ईंट निर्मित जिस चहारदीवारी को ह्वेनत्सांग ने देखकर अपने यात्रा वृतान्त में शामिल किया, वह तो बहुत बाद को बनी, लेकिन वक्ती बहाव में अब न तो चंपा की वह चहारदीवारी कहीं दिखायी देती है न चारों कोने पर खड़ी चार सुरक्षा मीनारें ही। कुछ का अस्तित्व शेष भी हैं तो उनकी नयी पहचान कायम हो चुकी है। नये नाम और नई पहचान की चमक के समक्ष अतीत की सारी तबोताब फीकी पड़ गयी है।
वह वर्तमान को उसका इतिहास बताना तो चाहता है, मगर वर्तमान कुछ सुनने, सुनकर यकीन करने को तैयार नहीं दिखता। इतिहास के साथ अगर वह अपनी सहमति जताता तो खंडहरों में झांकने की उत्सुकता कब की सर्वत्र व्याप गई होती।
इसके बर अक्स कदम बढ़ रहे हैं। तस्करी की ओर, ताकि रातों-रात संपन्नता हासिल कर ‘दानवीर कर्ण’ बनने की बजाय ‘धनीकर्ण’ बनकर एक नये कर्णगढ़ की स्थापना की जा सके और इस प्रकार चंपा को नये सिरे से पारिभाषित किया जा सके। यही इस शहर का वर्तमान है और यही वर्तमान का सच भी। लेकिन इस सच से शायद ही कोई इनकार करे कि वर्तमान हमेशा वर्तमान नहीं रहता। वह ढहता है। ढहना ही पड़ता है उसे नहीं ढहे तो अतीत बनेगा कैसे? समय अतीत नहीं बनेगा, वर्तमान का निर्माण कैसे होगा? अब मेरी ही बात लो। अगर तुम्हारा यह ‘अंग’ अतीत नहीं बनता तो मेरे बाद आने वाला समय अतीत की परतें मोटी कर पाता क्या ? फिर तो यह वर्तमान भी नहीं होता, जिसे मैं अपनी आत्मकथा सुना रहा हूं, जो मेरी दास्तान ध्यान लगाकर सुन रहा है।
क्रमशः…