झारखंड का वह संतालपरगना (देवघर) हो गया है, जो कभी अंग देश का अभिन्न अंग हुआ करता था।
बात चूंकि कर्ण और अतीत वर्तमान के कर्णगढ़ तथा खोदाई से प्राप्त पुरासामग्रियों पर चल रही है, लिहाजा अपनी कथा बांचने के लिए मैं एक बार पुनः तुम्हें उस चप्पा तट पर ले चलता हूं, जो अब चम्पा नाला के रूप में जानी, पहचानी और पुकारी जाती है। चम्पा यानी ‘चांदन’ की बेटी अर्थात नदी किनारे समस्या को जन्म देने वाली मसल को चरितार्थ करती एक और नदी ।
‘चांदन’ कब से वह रही है यह तथ्य प्रायः अज्ञात है लेकिन अंगभूमि के एक लम्बे चौड़े भू-भाग की प्यास बुझाकर अन्न उगाने और किसानों के घर भरने की इस नदी की पुरानी भूमिका आज भी कायम है। अंग के शिवधाम (देवघर) से निकलकर गंग तक की अहर्निश यात्रा तो आज भी यह नदी कर रही है, लेकिन अब इसका उद्गम क्षेत्र राज्य झारखंड का वह संतालपरगना (देवघर) हो गया है, जो कभी अंग देश का अभिन्न अंग हुआ करता था। इस सच के बावजूद कि सियासी दांव पेंच ने एक साझा भूखंड को खंडित कर उसे एक नया नाम भले ही नुमायां कर दिया हो, उससे नदी की फितरत पर कोई असर नहीं पड़ सका। चांदन पहले भी बहती थी, आज भी बह रही है-कभी शिथिल चाल में तो कभी वेगवती धारा के साथ। यहां यह बता दूं कि चांदन जब सालों भर जवान रहा करती थी, तब उसकी धारा से फूटने वाली कई कई उपधाराओं ने नदी का अलग अलग नाम और रूप धारण कर लिया। ‘अंधरी’, ‘महमूदा’, ‘चम्पा’ वगैरह नदियों की जननी यह चांदन ही है। लेकिन वक्त बहाव में खुद चांदन भी बूढ़ी हो गयी। नतीजे में ‘महमूदा’ की मौत हो ”गयी हो गई ‘अंधरी’ प्यास से तड़पने लगी और ‘चम्पा’…. वह तो नदी से नाला बन जाने को विवश हुई और बरहाल में भूगोल के तहस-नहस हो जाने से इतिहास अविश्वसनीय हो गया है। लेकिन चांदन का वह इतिहास इसके बावजूद विश्वसनीय बना रहा कि अंग के दानवीर कर्ण की चिताभूमि बनने का सौभाग्य इस नदी को ही प्राप्त हुआ। दीगर बात है कि इतिहास का वह सच किंवदंती की शक्ल में चांदन के मध्य खड़ा देखा जा सकता है, जहां बतौर साक्षी बाबा ज्येष्ठ गौर नाथ युगों से अवस्थित हैं और ठीक पहाड़ी ढलान पर स्थित वह शक्ति स्थल, जिस शक्ति के अराधक के रूप में कर्ण को आज भी याद किया जाता है।
इस बात को तो सभी जानते हैं कि कर्ण महाभारत युद्ध लड़ते हुए कुरुक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हुआ था, लेकिन यह तथ्य प्रायः अज्ञात है कि कर्ण की चिता उसकी अपनी ही अंगभूमि की मांटी पर बहने वाली चांदन के मध्य स्वयं भगवान कृष्ण ने विराट रूप धारण कर सजायी थी, वह भी अपनी हथेली पर, ताकि कर्ण को दिया गया वरदान गलत नहीं हो सके। तो क्या था वह वरदान और चांदन ही क्यों बनी कर्ण की चिताभूमि, इसकी चर्चा कल। फिलहाल इतना ही कहना चाहूंगा कि ज्येष्ठ गौर स्थान के पास बहने वाली चांदन के मध्य वह हथेली नूमा टापू अब भी दृश्य है, जो कृष्ण की हथेली और कर्ण की चिताभूमि के रूप में लोक मानस में व्याप्त है।
क्रमशः…