जजिया एक प्रकार का धार्मिक कर था जिसे गैर मुसलमानों (जिम्मियों) से वसूल किया जाता था। ये लोग अनिवार्य सैनिक सेवा से मुक्त थे। इस्लामी राज्य में केवल मुसलमानों को ही रहने की अनुमति थी और यदि कोई गैर-मुसलमान उस राज्य में रहना चाहे तो उसे जज़िया देना होगा। इसे देने के बाद गैर मुस्लिम लोग इस्लामिक राज्य में अपने धर्म का पालन कर सकते थे।
भारत में जजिया कर लगाने का प्रथम साक्ष्य मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद देखने को मिलता है।
सर्वप्रथम मुहम्मद बिन कासिम ने ही भारत में सिंध प्रान्त के देवल में जजिया कर लगाया था। इसके बाद जजिया कर लगाने वाला दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान फिरोज तुगलक था। इसने जजिया को खराज (भूराजस्व) से निकालकर पृथक कर के रूप में वसूला। इससे पूर्व ब्राह्मणों को इस कर से मुक्त रखा गया था। यह पहला सुल्तान था जिसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगा दिया। फिरोज तुगलक के ऐसा करने के विरोध में दिल्ली के ब्राह्मणों ने भूख हड़ताल कर दी। फिर भी फिरोज तुगलक तुगलक ने इसे समाप्त करने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अन्त में दिल्ली की जनता ने ब्राह्मणों के बदले स्वयं जजिया देने का निर्णय लिया। इसके बाद लोदी वंश के शासक सिकंदर लोदी ने जज़िया कर लगाया।
सल्तनत के बाहर के मुसलमान शासकों ने भी हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया। कश्मीर में सर्वप्रथम जजिया कर सिकंदर शाह द्वारा लगाया गया। उसके बाद इसका पुत्र जैनुल आबदीन (1420-70 ईo) शासक बना और सिकन्दर द्वारा लगाए गए जजिया को समाप्त कर दिया। जैनुल आबदीन जजिया कर को समाप्त करने वाला पहला शासक था।
गुजरात में जजिया सर्वप्रथम अहमदशाह (1411-42 ईo) के समय लगाया गया।
शेरशाह के समय जजिया को ‘नगर-कर’ की संज्ञा दी गयी।
जजिया कर को समाप्त करने वाला पहला मुगल शासक अकबर था। अकबर ने 1564 ईo में जज़िया कर समाप्त किया, लेकिन 1575 ईo में पुनः लगा दिया। इसके बाद 1579-80 ईo में पुनः समाप्त कर दिया।
औरंगजेब ने 1679 ईo में जजिया कर लगाया।
1712 ईo में जहाँदारशाह ने अपने मंत्री जुल्फिकार खां व असद खां के कहने पर जजिया को विधिवत रूप से समाप्त कर दिया। इसके बाद फर्रूखशियर ने 1713 ईo में जज़िया कर को हटा दिया किन्तु 1717 ईo में इसने जजिया पुनः लगा दिया। अन्त में 1720 ईo में मुहम्मद शाह रंगीला ने जयसिंह के अनुरोध पर जजिया कर को सदा के लिए समाप्त कर दिया।