कड़ी मेहनत के बाद राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर बेताल को पकड़ लिया। वह उसे अपने कंधे पर लादकर श्मशान की ओर ले चले। रास्ते में बेताल ने राजा को एक नई कहानी शुरू की और बेताल पद्मावती की प्रेम-कहानी सुनाते हुए बोला –
आर्यावर्त में वाराणसी नाम की एक नगरी है, जहां भगवान शंकर निवास करते हैं। पुण्यात्मा लोगों के रहने के कारण वह नगरी कैलाश-भूमि के समान जान पड़ती है। उस नगरी के निकट अगाध जल वाली गंगा नदी बहती है जो उसके कंठहार की तरह सुशोभित होती है। प्राचीन काल में उस नगरी में एक राजा राज करता था, जिसका नाम था प्रताप मुकुट।
प्रताप मुकुट का वज्रमुकुट नामक एक पुत्र था जो अपने पिता की ही भांति बहुत धीर, वीर और गंभीर था। वह इतना सुंदर था कि कामदेव का साक्षात् अवतार लगता था। राजा के एक मंत्री का बेटा बुद्धिशरीर उस वज्रमुकुट का घनिष्ठ मित्र था।
एक बार वज्रमुकुट अपने उस मित्र के साथ जंगल में शिकार खेलने गया। वहां घने जंगल के बीच उसे एक रमणीक सरोवर दिखाई दिया, जिसमें बहुत-से कमल के सुंदर-सुंदर पुष्प खिले हुए थे। उसी समय अपनी कुछ सखियों सहित एक राजकन्या वहां आई और सरोवर में स्नान करने लगी। राजकन्या के सुंदर रूप को देखकर वज्रमुकुट उस पर मोहित हो गया।
राकुमारी को देखकर राजकुमार काफी खुश हुआ। राजकुमार और राजकुमारी दोनों एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गए, जबकि मंत्री का बेटा वहीं एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा।
राजकुमार को देखते ही राजकुमारी ने एक कमल के पत्ते को लेकर कान में लगाया, दंतपत्र से देर तक दांतों को खुरचा, एक दूसरा कमल माथे पर तथा हाथ अपने हृदय पर रखा। किंतु राजकुमार ने उस समय उसके इशारों का मतलब न समझा।
उसके जाने के बाद राजकुमार काफी दुखी हुआ और अपने मित्र के पास लौटकर सारी बात बताई। राजकुमार बोला, “मैं राजकुमारी के बिना नहीं रह सकता हूं, लेकिन मुझे इस राजकुमारी के बारे में कुछ भी नहीं पता है। वह कहां रहती, उसका नाम क्या है?”
मंत्री के बेटे ने सारी बातें सुनी और राजकुमार को दिलासा देते हुए बोला, “राजकुमार, आप घबराइए मत। राजकुमारी ने सबकुछ बताया है। आश्चर्यचकित होते हुए राजकुमार ने पूछा, “वो कैसे?”
मंत्री के बेटे ने राजकुमार को बताना शुरू किया कि उसने कानों पर उत्पल (कमल) रखकर बताया कि वह राजा कर्णोत्पल के राज्य में रहती है। दांतों को खुरचकर यह संकेत दिया कि वह वहां के दंतवैद्य की कन्या है। अपने कान में कमल का पत्ता लगाकर उसने अपना नाम पद्मावती बताया और हृदय पर हाथ रखकर सूचित किया कि उसका हृदय तुम्हें अर्पित हो चुका है।
कलिंग देश में कर्णोत्पल नाम का एक सुविख्यात राजा है। उसके दरबार में दंतवैद्य की पद्मावती नाम की एक कन्या है, जो उसे प्राणों से भी अधिक प्यारी है। दंतवैद्य उस पर अपनी जान छिड़कता है।”
मंत्री-पुत्र ने आगे बताया, “मित्र, ये सारी बातें मैंने लोगों के मुख से सुन रखी थीं इसलिए मैंने उसके उन इशारों को समझ लिया, जिससे उसने अपने देश आदि की सूचना दी थी।”
मंत्री-पुत्र के ऐसा कहने पर राजकुमार को बेहद संतोष हुआ। प्रिया का पता लगाने का उपाय मिल जाने के कारण वह प्रसन्न भी था। वह अपने मित्र के साथ अगले ही दिन आखेट का बहाना करके अपनी प्रिया से मिलने चल पड़ा।
आधी राह में अपने घोड़े को वायु-वेग से दौड़ाकर उसने अपने सैनिकों को पीछे छोड़ दिया और केवल मंत्री-पुत्र के साथ कलिंग की ओर बढ़ चला।
राजा कर्णोत्पल के राज्य में पहुंचकर उसने दंतवैद्य की खोज की और उसका घर देख लिया। तब राजकुमार और मंत्री-पुत्र ने उसके घर के पास ही निवास करने के लिए एक वृद्ध स्त्री के मकान में प्रवेश किया।
महिला को देखते ही दोनों घोड़े से उतरे और उसके पास जाकर कहा, “माई, हम दोनों व्यापारी हैं, हम बहुत दूर से आए हैं। हमारा सामान अभी तक आया नहीं है, कुछ दिनों में हमारा सामान भी पहुंच जाएगा। हम दोनों को बस रहने के लिए थोड़ी-सी जगह चाहिए।” उनकी बातें सुनकर बुजुर्ग महिला की ममता जाग उठी, उसने कहा, “बेटा इसे अपना ही घर समझो। जब तक मन करे यहां रह सकते हो।” इसके बाद दोनों उसके घर में रहने लगे। इसी बीच मंत्री के बेटे ने उस महिला से पूछा, “आप क्या काम करती हैं माई? आपके यहां कौन-कौन रहता है? आप कैसे अपना गुजर-बसर करती हैं?”
इन सारे सवालों का जवाब धीरे-धीरे उस महिला ने देना शुरू किया। उसने कहा, “मेरा एक पुत्र है, जो राजा के यहां नौकरी करता है। मैं राजा की पुत्री पद्मावती की दासी थी। बूढ़ी हो गई हूं, इसलिए घर में ही रहती हूं। महाराज खाने को दे देते हैं और पूरे दिन में एक बार राजकुमारी से मिलने चली जाती हूं।”
इतना सुनते ही राजकुमार ने बूढ़ी औरत को कुछ धन दिए और राजकुमारी तक संदेशा पहुंचाने को कहा। राजकुमार ने उस बूढ़ी महिला को कहा, “माई, कल तुम जब राजकुमारी के पास जाओ, तो उनसे कहना कि जेठ सुदी पंचमी को तुम्हें नदी के पास जो राजकुमार मिला था, वो तुम्हारे राज्य में आ गया है।” अगले दिन वो बूढ़ी औरत राजकुमार का संदेश लेकर राजकुमारी के पास गई। उस महिला की बात सुनते ही राजकुमारी गुस्सा हो गई। उन्होंने हाथों में चंदन लगाकर उस महिला के गाल पर तमाचा मारते हुए कहा, मेरे घर से निकल जाओ।
बूढ़ी औरत ने घर लौटकर राजकुमार को सारी बातें बताई। महिला की बातें सुनकर राजकुमार चौंक गया। फिर राजकुमार के मित्र ने राजकुमार को धैर्य बंधाते हुए कहा, “राजकुमार आप चिंतित न हों। राजकुमारी की बातों को समझने की कोशिश करें। ध्यान दें कि राजकुमारी ने उंगलियों को सफेद चंदन में डुबोकर गाल पर मारा है। इसका मतलब अभी कुछ दिन चांदनी के हैं। उनके खत्म होने के बाद अंधेरी रात में मिलूंगी।”
कुछ दिनों बाद बूढ़ी महिला फिर राजकुमारी के पास संदेशा लेकर पहुंची। इस बार राजकुमारी ने केसरी रंग में तीन उंगलियां डुबोकर बूढ़ी महिला के मुंह पर मारते हुए कहा, “भागो यहां से।” फिर उस महिला ने आकर राजकुमार को सारी बातें बताई। राजकुमार यह सुनकर बहुत दुखी हुआ। इस पर मंत्री के बेटे ने राजकुमार से कहा, “इसमें दुखी होने की कोई बात नहीं है राजकुमार। राजकुमारी ने कहा है कि अभी उसकी तबीयत ठीक नहीं है, तो इसलिए तीन दिन और रुक जाओ।”
तीन दिन बाद वो बूढ़ी महिला फिर राजकुमारी के पास जा पहुंची। इस बार फिर से राजकुमारी ने उस महिला को फटकारा और पश्चिम की खिड़की से बाहर जाने के लिए कहा। वो महिला फिर से राजकुमार के पास गई और सारी कहानी सुनाई। तब मंत्री के बेटे ने राजकुमार को समझाते हुए कहा कि मित्र राजकुमारी ने आपको उस खिड़की की तरफ बुलाया है।
राजकुमार यह सुनते ही खुशी से उछल पड़ा। उसने बूढ़ी महिला के कपड़े पहनकर नारी का भेष धारण किया, इत्र लगाया और हथियार बांधकर राजकुमारी से मिलने चल पड़ा। राजकुमार महल पहुंचा और खिड़की के रास्ते राजकुमारी के कमरे में पहुंच गया। राजकुमारी वहां पर तैयार थी और राजकुमार का इंतजार कर रही थी। राजकुमार जैसे ही कमरे में गया, उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं। राजकुमारी के कमरे में कई महंगी चीजें रखी थीं। रातभर राजकुमार और राजकुमारी साथ ही रहे।
अनन्तर, राजकुमार ने गांधर्व-विधि से पद्मावती के साथ विवाह रचा लिया और कई दिन तक गुप्त-रूप से उसी के आवास में छिपा रहा। कई दिनों तक वहां रहने के बाद, एक रात को उसने अपनी प्रिया से कहा, “मेरे साथ मेरा मित्र बुद्धिशरीर भी यहां आया है। वह यहां अकेला ही तुम्हारी धाय के घर में रहता है। मैं अभी जाता हूं, उसकी कुशलता का पता करके और उसे समझा-बुझाकर पुनः तुम्हारे पास आ जाऊंगा।”
यह सुनकर पद्मावती ने राजकुमार से कहा, “आर्यपुत्र, यह तो बतलाइए कि मैंने जो इशारे किए थे, उन्हें तुमने समझा था या बुद्धिशरीर ने?”
“मैं तो तुम्हारे इशारे बिल्कुल भी नहीं समझा था”, राजकुमार से बताया, “उन इशारों को मेरे मित्र बुद्धिशरीर ने ही समझकर मुझे बताया था।
यह सुनकर और कुछ सोचकर पद्मावती ने राजकुमार से कहा, “यह बात इतने विलम्ब से कहकर आपने बहुत अनुचित कार्य किया है। आपका मित्र होने के कारण वह मेरा भाई है। पान-पत्तों से मुझे पहले उसका ही स्वागत-सत्कार करना चाहिए था।”
ऐसा कहकर उसने राजकुमार को जाने की अनुमति दे दी। तब, रात के समय राजकुमार जिस रास्ते से आया था, उसी से अपने मित्र के पास गया।
पद्मावती से उसके इशारे समझाने के बारे में राजकुमार को जो बातें हुई थीं, बातों-बातों में वह सब भी उसने मंत्री-पुत्र को कह सुनाई। मंत्री-पुत्र ने अपने संबंध में कही गई इस बात को उचित न समझकर इसका समर्थन नहीं किया। इसी बीच रात बीत गई।
सवेरे संध्या-वंदन आदि से निवृत्त होकर दोनों बातें कर रहे थे, तभी पद्मावती की एक सखी हाथ में पान और पकवान लेकर वहां आई। उसने मंत्री-पुत्र का कुशल-मंगल पूछा और लाई हुई चीजें उसे दे दीं।
बातों-बातों में उसने राजकुमार से कहा कि उसकी स्वामिनी भोजन आदि के लिए उसकी प्रतीक्षा कर रही है। पल-भर बाद, वह गुप्त रूप से वहां से चली गई। तब मंत्री-पुत्र ने राजकुमार से कहा, “मित्र, अब देखिए। मैं आपको एक तमाशा दिखाता हूं।”
यह कहकर उसने एक कुत्ते के सामने वह भोजन डाल दिया। कुत्ता वह पकवान खाते ही तड़प-तड़पकर मर गया। यह देखकर आश्चर्यचकित हुए राजकुमार ने मंत्री-पुत्र से पूछा, ”मित्र, यह कैसा कौतुक है?”
तब मंत्री-पुत्र ने कहा, “मैंने उसके इशारों को पहचान लिया था, इसलिए मुझे धूर्त समझकर उसने मेरी हत्या कर देनी चाही थी। इसी से तुममें बहुत अनुराग होने के कारण उसने मेरे लिए विष मिश्रित पकवान भेजे थे। उसे भय था कि मेरे रहते राजकुमार एकमात्र उसी में अनुराग नहीं रख सकेगा और उसके वश में रहकर, उसे छोड़कर अपनी नगरी में चला जाएगा। इसलिए उस पर क्रोध न करो, बल्कि उसे अपने माता-पिता के त्याग के लिए प्रेरित करो और सोच-विचार उसके हरण के लिए मैं तुम्हें जो युक्ति बतलाता हूं, उसके अनुसार आचरण करो।”
मंत्री-पुत्र के ऐसा कहने पर राजकुमार यह कहकर उसकी प्रशंसा करने लगा कि सचमुच तुम बुद्धिमान हो। इसी बीच अचानक बाहर से दुख से विकल लोगों का शोरगुल सुनाई पड़ा, जो कह रहे थे, “हाय-हाय, राजा का छोटा बच्चा मर गया।”
यह सुनकर मंत्री-पुत्र प्रसन्न हुआ। उसने राजकुमार से कहा, “आज रात को तुम पद्मावती के घर जाओ। वहां तुम उसे इतनी मदिरा पिलाना कि वह बेहोश हो जाए और वह किसी मृतक के समान जान पड़े। जब वह बेहोश हो तो उस हालत में तुम एक त्रिशूल गर्म करके उसकी जांघ पर दाग देना और उसके गहनों की गठरी बांधकर रस्सी के सहारे खिड़की के रास्ते से यहां चले आना। उसके बाद मैं सोच-विचारकर कोई वैसा उपाय करूंगा जो हमारे लिए कल्याणकारी हो।”
राजकुमार ने वैसा ही किया। उसने पदमावती को जी-भरकर मदिरा पिलाई और जब वह बेहोश हो गई तो उसकी जांघ पर त्रिशूल से एक बड़ा-सा दाग बना दिया और उसके गहनों की गठरी बनाकर अपने साथ ले आया।
सवेरे श्मशान में जाकर मंत्री-पुत्र ने तपस्वी का रूप धारण किया और राजकुमार को अपना शिष्य बनाकर उससे कहा, “अब तुम इन आभूषणों में से मोतियों का हार लेकर बाजार में बेचने के लिए जाओ, लेकिन इसका दाम इतना अधिक बताना कि इसे कोई खरीद न सके। साथ ही यह भी प्रयत्न करो कि इसे लेकर घूमते हुए तुम्हें अधिक-से-अधिक लोग देखें। अगर नगर-रक्षक तुम्हें पकड़ें, तो बिना घबराए हुए तुम कहना कि “मेरे गुरु ने इसे बेचने के लिए मुझे दिया है।”
तब राजकुमार बाजार में गया और वहां उस हार को लेकर घूमता रहा।
उधर दंतवैद्य की बेटी के गहनों की चोरी की खबर पाकर, नगर-रक्षक उसका पता लगाने के लिए घूमते फिर रहे थे। राजकुमार को हार के साथ देखकर उन लोगों ने उसे पकड़ लिया।
नगर-रक्षक राजकुमार को नगरपाल के पास ले गए। उसने तपस्वी के वेश में राजकुमार को देखकर आदर सहित पूछा, “भगवन्, मोतियों का यह हार आपको कहां से मिला? पिछले दिनों दंतवैद्य की कन्या के आभूषण चोरी हो गए थे, जिनमें इस हार का भी जिक्र था।”
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इस पर तपस्वी-शिष्य बना राजकुमार बोला, “इसे मेरे गुरु ने बेचने के लिए मुझे दिया है। आप उन्हीं से पूछ लीजिए।”
तब नगरपाल वहां आया तो तपस्वी रूपी मंत्री-पुत्र ने कहा, “मैं तो तपस्वी हूं। सदा जंगलों में यहां-वहां घूमता रहता हूं। संयोग से मैं पिछली रात इस श्मशान में आकर टिक गया था। यहां मैंने इधर-उधर से आई हुई योगिनियों को देखा। उनमें से एक योगिनी राजपुत्र को ले आई और उसने उसका हृदय निकालकर भैरव को अर्पित कर दिया।
मदिरा पीकर वह मायाविनी मतवाली हो गई और मुझे मुंह चिढ़ाकर, मेरी उस रुद्राक्ष माला को लेने दौड़ी जिसके मनकों के साथ मैं तप कर रहा था। जब उसने मुझे बहुत तंग किया तो मुझे उस पर क्रोध आ गया। मैंने मंत्र-बल से अग्नि जलाई और उसमें त्रिशूल तपाकर उसकी जंघा पर दाग दिया। उसी समय मैंने उसके गले से यह मोतियों का हार खींच लिया था। अब मैं ठहरा तपस्वी, यह हार मेरे किसी काम का नहीं है, इसलिए मैंने अपने शिष्य को इसे बेचने के लिए भेज दिया था।”
यह सुनकर नगरपाल राजा के पास पहुंचा और उसने राजा से सारा वृत्तांत कह सुनाया। राजा ने बात सुनकर उस मोतियों के हार को पहचान दिया। पहचानने का कारण यह था कि वह हार स्वयं राजा ने ही दंतवैद्य की बेटी को उपहार स्वरूप भेंट किया था।
तब राजा ने अपनी एक विश्वासपात्र वृद्धा दासी को यह जांच करने के लिए दंतवैद्य के यहां भेजा कि वह पद्मावती के शरीर का परीक्षण कर यह पता करे कि उसकी जांघ पर त्रिशूल का चिन्ह है या नहीं। वृद्धा दासी ने जांच करके राजा को बताया कि उसने पद्मावती की जांघ पर वैसा ही एक दाग देखा है।
इस पर राजा को विश्वास हो गया कि पद्मावती ही उसके बेटे को मारकर खा गई है। तब वह स्वयं तपस्वी-वेशधारी मंत्री-पुत्र के पास गए और पूछा कि पद्मावती को क्या दंड दिया जाए। मंत्री-पुत्र के कहने पर राजा ने पद्मावती को अपने राज्य से निर्वासित कर दिया।
वन में निर्वासित कर दिए जाने पर भी पद्मावती ने आत्महत्या नहीं की। उसने सोचा कि मंत्री-पुत्र ने ही यह सब उपाय किया है। शाम होने पर तपस्वी का वेश त्यागकर राजकुमार और मंत्रीपुत्र घोड़ों पर सवार होकर वहां पहुंचे, जहां पद्मावती शोकमग्न बैठी थी। वे उसे समझा-बुझाकर घोड़े पर बैठाकर अपने देश ले गए। वहां राजकुमार उसके साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
बेताल ने पद्मावती की प्रेम-कहानी सुनाकर राजा विक्रमादित्य से पूछा, “राजन! आप बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं। अतः मुझे यह बताइए कि यदि राजा क्रोधवश उस समय पद्मावती को नगर निर्वासन का आदेश न देकर उसे मारने का आदेश दे देता… अथवा पहचान लिए जाने पर वह राजकुमार का ही वध करवा देता, तो इन पति-पत्नी के वध का पाप किसे लगता? मंत्री-पुत्र को, राजकुमार को अथवा पद्मावती को? राजन, यदि जानते हुए भी तुम मुझे ठीक-ठीक नहीं बतलाओगे तो विश्वास जानो कि तुम्हारे सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे।”
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विक्रम ने उत्तर देते हुए कहा, “पापी राजा था, क्योंकि मंत्री के पुत्र ने अपने मालिक का काम किया। कोतवाल ने राजा का कहना सुना और राजकुमार ने अपनी इच्छा पूरी की, लेकिन इस कहानी में राजा पापी था। उसने बिना सोचे-विचारे राजकुमारी को राज्य से बाहर निकाला दिया। विक्रम के इतना कहते ही बेताल फिर उड़कर पेड़ पर जा लटका।
शिक्षा:
हमेशा बुद्धि का इस्तेमाल करके ही फैसला लेना चाहिए, वरना कोई भी भ्रमित करके कुछ भी करवा सकता है।
क्रमशः …