शशिभूषण दूबे कंचनीय,
लखनऊ: सरकार की अदूरदर्रशिता के कारण ही नियुक्तियां कानूनी दांव पेंच मे फंस जाती है. इस समाचार के हवाले से निजीप्रबंधंत्को द्वारा संचालित बित्तीय सहायता प्राप्त बिद्यालयो में जूनियर कक्षाओं मे पढाने के लिये 5000 शिक्षकों के नियुक्तियां आयोग से किये जाने की बात कही गयी है.
जबकि हकीकत यह है कि अभी तक आयोग का वैधानिक गठन ही नहीं हुआ है. आखिर अधियाचन किस अधिनियम के अन्तर्गत अधिसूचित किया गया है. जबकि अधियाचन चयन प्रक्रिया का अंग है.
इस लिये यह अधियाचन मांगना ही कानूनी अनियमित है.
उ प्र मे 90% जूनियर तक बित्तीय सहायता प्राप्त बिद्यालय माध्यमिक या इंटर मीडियेट तक माशिक बोर्ड से बित्तविहीन मान्यताप्राप्त प्राप्त करके अपग्रेड हो गये है. जिनमे सबित्त व्यवस्था के अन्तर्गत जूनियर तक पढाने के लिये शिक्षकों की नियुक्तियां की ही नही जा सकती है.
ऐसी की गयी नियुक्तियों को शून्य मानते हुये इलाहाबाद हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने अभी पिछले महीने अपने एक निर्णय द्वारा निरस्त करने का आदेश पारित किया है.
यह प्रकरण उ प्र के मिर्जापुर जनपद के एक बिद्यालय का था. निर्णय की प्रति मेरे पास उपलब्ध है.
मेरी समझ मे नही आता विभागीय अधिकारी सरकार को गुमराह करके अवैधानिक निर्णय करा कर उसे कानूनी दांव पेंच मे क्यो फंसा देते है. जिससे अदालत मे उसकी किरकिरी होती है.
इस प्रकरण हुआ यह कि सैकडों जूनियर तक एडेड तथा उच्चीकृत माध्यमिक व इंटर कालेजों मे जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियो ने अनुमति एवं अनुमोदन के नाम पर आधे आधे पदों का बंटवारा करके अवैधानिक नियुक्तियां करवा कर बेतन दे दिया.
यह बात बेसिक शिक्षा बिभाग के ऊंचे अधिकारियो को खल गयी की मलाई उन्हे नही मिली. लिहाजा उन्होंने ने सरकार दूसरा अवैधानिक सलाह देकर अधियाचन मंगवाता कर नया खेल खेल दिया.
जब अभी तक आयोग गठन अधिसूचित ही नही हुआ और अध्यक्ष और सदस्य नियुक्ति नही हुए. तो अधियाचन कैसा?
वह भी उन बिद्यालयों में सबित्त व्यवस्था के अन्तर्गत नियुक्तियां की ही नही जा सकती.
माननीय उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय मे स्पष्ट कहा है कि जब सहायता प्राप्त जूनियर स्कूल माध्यमिक स्तर तक बित्तविहीन व्यवस्था के अन्तर्गत उच्चीकृत हो गया तो उनका संचालन व उनमे नियुक्तियां माशिक अधिनियम 21 के प्रावधानों के अनुसार होगा.