रांची: पंडित राजकुमार शुक्ल फाउंडेशन की ओर से अध्यक्ष अजय राय ने अपने आवास पर पंडित राजकुमार शुक्ल की 91वीं पुण्यतिथि पर घर के बच्चों के साथ उनके चित्र पर माला पहनाकर श्रद्धा सुमन अर्पित किया.
इस अवसर पर देश के कई राज्यों के बुद्धिजीवियों ने व्हाट्सएप के जरिए अपना श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके चंपारण आंदोलन और उनके संघर्ष की चर्चा की. इस अवसर पर पीएचडी के सिविल इंजीनियर रामसुंदर दसोंधी , रविभूषण राय, फ़िल्म निर्देशक ऋषी प्रकाश मिश्रा, डॉ अरुण कुमार सज्जन, वरिष्ठ पत्रकार राय तपन भारती, पटना से कमल नयन श्रीवास्तव आदि ने अपने-अपने विचार व उनका जीवन परिचय व्हाट्सएप के जरिए भेजा है.
राज कुमार शुक्ल: एक परिचय
कौन थे राज कुमार शुक्ल. महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है. पं.राज कुमार शुक्ल चंपारण के एक किसान थे. उन पर दुख पड़ा था. यह दुख उन्हें अखरता था, लेकिन अपने दु:ख के कारण उनमें मिल कर इस कष्ट को सबके लिए मिटा डालने के लिए कृत संकल्पित थे. शुक्ल का जन्म 23 अगस्त 1875 को चंपारण के सतवरिया गांव में हुआ था जिसके नदी में किसानों के आंसू बहते थे.
पंचकठिया/तिनकठिया प्रणाली से त्रस्त किसानों को राहत दिलाने के लिए 1917में महात्मा गांधी द्वारा चंपारण सत्याग्रह आंदोलन किया जाना और किसानों को अंग्रेजों के जुल्म से राहत दिलवाना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना है. किन्तु इस आन्दोलन के सूत्रधार थे पंडित राज कुमार शुक्ल. इन्हें इतिहास ने भूला दिया.
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है. लखनऊ कांग्रेस में जाने के पहले तक मैं चंपारण का नाम तक नहीं जानता था. नील की खेती होती है, इसका तो ख्याल भी ना के बराबर था. इसके कारण हजारों किसानों को कष्ट भोगना पड़ता है. इसकी भी मुझे कोई जानकारी नहीं थी. राज कुमार शुक्ल नाम के चंपारण के एक किसान ने वहां मेरा पीछा किया…..इस अपढ़, अनगढ़ लेकिन निश्चयी किसान ने मुझे जीत लिया.
गांधी को चंपारण बुलाने के लिए शुक्ल एक जगह से दूसरी जगह जाते रहे, चिठ्ठी लिखवाते रहे, खेत बेच कर, उधार लेकर गांधी के पास जाते रहे. अंततः 10 अप्रैल को शुक्ल गांधी को कलकत्ता से लेकर पटना फिर मुजफ्फरपुर पहुंचे. फिर अन्य नेताओं का साथ मिला. चंपारण पहुंच कर संघर्ष को तेज किया.
किसानों को तिनकठिया प्रणाली से मुक्ति मिली. चंपारण की जीत से यह विश्वास हुआ कि अंग्रेजों को हराया जा सकता हैं और गांधी के सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग को स्वीकृति प्राप्त हुई. 20 मयी 1929 को 54 वर्ष की आयु में मोतिहारी में इस महानायक की चिकित्सा के अभाव में मृत्यु हो गई. चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के सूत्रधार इस महामानव को कोटि-कोटि नमन.