फिल्म जगत: 33 साल पहले रामानंद सागर ने एक ऐसा शो बनाया था जिसके टीवी पर आते ही सड़के सूनी हो जाया करती थीं. लोग उस वक्त टीवी के सामने से एक मिनट भी हटते नहीं थे. ऐसा क्रेज जिस सीरियल के लिए था वो है ‘रामायण.’ लेकिन क्या आपको पता है रामानंद सागर को इस शो को बनाने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. यहां तक कि अगर ‘विक्रम बेताल’ नहीं बनता तो ‘रामायण’ भी नहीं बन पाती.
टीवी का रुख करने से पहले रामानंद सागर सिनेमाजगत में सक्रिय थे. अचानक उनका मन बदला और उन्होंने टीवी के क्षेत्र में कदम रखना का फैसला लिया. बहुत लोगों को रामानंद सागर का ये फैसला सही नहीं लगा. इन्होंने तय किया कि वो ‘रामायण’ बनाएंगे.
‘रामायण’ बनाने के लिए उन्हें फंड्स नहीं मिल रहे थे. इसका कारण ये था कि लोगों को नहीं लगता था कि मुकुट और पूंछ वाला कॉन्सेप्ट चलेगा.
रामानंद चाहते थे कि वो ‘रामायण’, ‘दुर्गा’ और ‘कृष्णा’ सीरियल बनाएंगे. जब ‘रामायण’ के लिए फंड्स नहीं जुटा पाए तो उन्होंने 1986 में ‘विक्रम बेताल’ शो शुरू कर दिया. ये शो हिट हो गया. इस शो के हिट होते ही रामानंद को ‘रामायण’ के लिए फाइनेंसर्स मिलने लगे. रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उस वक्त ‘विक्रम बेताल’ का एक एपिसोड बनाने में एक लाख रुपये लगते थे.
‘रामायण’ की बात करें तो इसके एक एपिसोड के करीब नौ लाख रुपये लगते थे. इस शो की शूटिंग करीब 550 दिन चली थी. इसे गुजरात के उमरगांव में शूट किया गया था. 80 के दशक में ‘रामायण’ का जो चाव था वो दर्शकों में अभी भी है. ‘रामायण’ का दोबारा प्रसारण डीडी नेशनल पर शुरू हो गया है.
इस शो के दोबारा प्रसारण से दर्शक काफी खुश हैं. यहां तक कि वो सोशल मीडिया पर लगातार टीवी देखते हुए तस्वीरें भी शेयर कर रहे हैं. वहीं इस शो से जुड़े सभी सितारे फिर से लाइमलाइट में आ गए हैं. कुछ दिन पहले ‘रामायण’ में राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल की परिवार के साथ टीवी देखते हुए तस्वीरें भी वायरल हुई थी.
जानें रामानंद सागर के बारे में-
रामानंद सागर का जन्म लोहौर के नजदीक असल गुरु नामक स्थान पर 29 दिसम्बर 1927 को एक धनाढ्य परिवार में हुआ था. उन्हें अपने माता पिता का प्यार नहीं मिला, क्योंकि उन्हें उनकी नानी ने गोद ले लिया था. पहले उनका नाम चंद्रमौली था लेकिन नानी ने उनका नाम बदलकर रामानंद रख दिया.
16 साल की अवस्था में उनकी गद्य कविता श्रीनगर स्थित प्रताप कालेज की मैगजीन में प्रकाशित होने के लिए चुनी गई. युवा रामानंद ने दहेज लेने का विरोध किया जिसके कारण उन्हें घर से बाहर कर दिया गया.
इसके साथ ही उनका जीवन संघर्ष आरंभ हो गया. उन्होंने पढ़ाई जारी रखने के लिए ट्रक क्लीनर और चपरासी की नौकरी की. वे दिन में काम करते और रात को पढ़ाई. मेधावी होने के कारण उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय [पाकिस्तान] से स्वर्ण पदक मिला और फारसी भाषा में निपुणता के लिए उन्हें मुंशी फजल के खिताब से नवाजा गया. इसके बाद सागर एक पत्रकार बन गए और जल्द ही वह एक अखबार में समाचार संपादक के पद तक पहुंच गए. इसके साथ ही उनका लेखन कार्य भी चलता रहा.
बंटवारे के समय 1947 में वे भारत आ गए. उस समय उनके पास संपत्ति के रूप में महज पांच आने थे. भारत में वह फिल्म क्षेत्र से जुड़े और 1950 में खुद की प्रोडक्शन कंपनी सागर आर्ट्स बनाई जिसकी पहली फिल्म मेहमान थी.
वर्ष 1985 में वह छोटे परदे की दुनिया में उतर गए. उनके द्वारा निर्मित सर्वाधिक लोकप्रिय धारावाहिक रामायण ने लोगों के दिलों में उनकी छवि एक आदर्श व्यक्ति के रूप में बना दी.
क्या-क्या लिखा रामानंद सागर ने-
उन्होंने 22 छोटी कहानियां, तीन वृहत लघु कहानी, दो क्रमिक कहानियां और दो नाटक लिखे। उन्होंने इन्हें अपने तखल्लुस चोपड़ा, बेदी और कश्मीरी के नाम से लिखा लेकिन बाद में वह सागर तखल्लुस के साथ हमेशा के लिए रामानंद सागर बन गए. बाद में उन्होंने अनेक फिल्मों और टेलिविजन धारावाहिकों के लिए भी पटकथाएं लिखी.