ग्रामीणों के समक्ष आज भी एक गांव में पीने के पानी के पड़ गए हैं लाले
चतरा: झारखंड के कई ऐसे जिले हैं जो अति नक्सल प्रभावित है. उनमें से एक है चतरा. इस जिले को विकास के पथ पर अग्रसर करने को ले केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा पायलट प्रोजेक्ट के तहत चिन्हित कर दर्जनों विकास योजनाएं संचालित की जा रही है. ताकि न सिर्फ समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास की किरण पहुंच सके बल्कि लोगों को मूलभूत सुविधाओं के अभाव में भी इधर उधर भटकना न पड़े. लेकिन चतरा के कई गांव में आज भी विकास के दावे सरकार और प्रशासन को मुंह चिढ़ाती नजर आ रही है.
चतरा के विकास के लिए राज्य के मंत्री से लेकर आला अधिकारी लगातार दौरा करते हैं और कई दावे भी करते हैं, किंतु चतरा जिले के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित लावालौंग प्रखंड अंतर्गत सिकनी गांव के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से पूरी तरह महरूम हैं.
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस प्रखंड से स्थानीय विधायक होने के बाद भी लोगों को सरकारी योजनाओं आदि का लाभ नहीं मिला. यहां विकास योजनाओं के क्रियान्वयन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गांव से होकर गुजरने वाले नाले के एक घाट से इंसान से लेकर मवेशी तक अपनी प्यास बुझाते हैं. लोग उसी घाट से पीने का पानी भरते हैं, जहां मवेशी आकर पानी पीते हैं.
कैमरे में कैद हुई तस्वीरें विकास के दावों का पोल खोलने के लिए काफी हैं. यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाएं तक मयस्सर नहीं है. खासकर पानी का जुगाड़ करने में महिलाओं का पूरा समय बीत जा रहा है. जब घर के लोग की जिंदगी पानी की जद्दोजहद में ही गुजर जाती हो तो, फिर बच्चों की पढ़ाई लिखाई की कौन सोचे, सब भगवान भरोसे हैं.
बताते हैं कि अनुसूचित जनजाति बहुल इस गांव के लोग जल संकट की विकराल समस्या से जूझ रहे हैं. स्थिति यह है कि यहां के लोग प्रशासनिक उपेक्षा के कारण जंगल से निकलने वाली नदी और नाले के दूषित पानी पीने को मजबूर हैं.
ग्रामीणों के मुताबिक, गांव में दिखावे के लिए एक चापाकल है भी तो विगत कई सालों से क्षतिग्रस्त होकर खराब पड़ा है. बावजूद अबतक किसी भी सरकारी रहनुमाओं की नजर इस गांव पर नहीं पड़ी है, जिसके कारण रोजाना गांव के पास वाले नदी से निकलने वाले नाले का गंदा पानी ले जाने को यहां के ग्रामीण मजबूर हैं.
इसी घाट पर आवारा कुत्ते, गाय और बकरियां भी इन ग्रामीणों के साथ अपनी प्यास बुझा रहे हैं. इस गांव में ना तो अधिकारियों और ना ही नेता पहुंचते हैं. हां चुनाव के समय वोट मांगते जरूर दिख जाते हैं. गांव की महिलाएं प्यास बुझाने के लिए लगभग एक किलोमीटर तय कर नदी नाले की पानी लाने जाती है. तब जाकर वे इस पानी को पीने और खाना बनाने में इस्तेमाल करती है.
पंचायत की मुखिया और जनप्रतिनिधि भी इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कोई पहल नहीं कर रहे हैं. इस गांव की हालत देखने के बाद जब जिले के उप विकास आयुक्त सुनील कुमार सिंह से को अवगत कराया गया तो उन्होंने पहले तो जानकारी नहीं होने की बात कही. इसके बाद गांव में पेयजल की व्यवस्था जल्द से जल्द कराने का भरोसा दिया है.