रांची: निर्दलीय विधायक सरयू राय ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है. पत्र में कहा है कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने अग्रेतर कारवाई के लिये सरकार से अनुमति मांगा है. इसके पूर्व भी तत्कालीन निगरानी ब्यूरो ने 2009 से 2011 के बीच पांच बार इस मामले की जांच के लिये सरकार से अनुमति मांगा था, जो नहीं मिली.
अबतक हुई इस कांड की जांच में पाया गया है कि अयोग्य होने के बावजूद मेनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति हुई, एक षड्यंत्र के तहत तथ्यों की अनदेखी की गई, जांच के निष्कर्षों को दबाया गया. मेनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति में षड्यंत्र एवं भ्रष्ट आचरण के जिम्मेदार व्यक्ति अपना कसूर स्वीकार करने के बदले ‘उल्टा चोर कोतवाली को डांटे’ की भूमिका में हैं. वे ‘चोरी भी और सीनाजोरी भी’ पर उतारू हैं. उनका निर्लज्ज बर्ताव पूरी व्यवस्था को चुनौती दे रहा है.
मैं आपका ध्यान निम्नांकित बिन्दुओं की ओर आकृष्ट करना चाहता हूं, जो इस मामले में षड्यंत्र के विविध पहलुओं को उजागर कर रहे हैं:-
1. रांची शहर में सिवरेज- ड्रेनेज का निर्माण करने के लिये 2003 में दो परामर्शी नियुक्त हुये थे. सरकार बदलने के बाद इन दोनों को हटाने का षड्यंत्र हुआ. इनमें से एक परामर्शी की रिट याचिका पर झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त आर्बिट्रेटर (केरल उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश) ने न्याय-निर्णय दिया कि तत्कालीन सरकार द्वारा इसे हटाना गलत था, इसलिये सरकार इसे 3.61 करोड़ रूपया मुआवजा दे.
2. इसके बाद नया परामर्शी नियुक्त करने के लिये विश्व बैंक के गुणवता आधारित प्रणाली के नाम पर निविदा प्रकाशित करने का षड्यंत्र हुआ. कारण कि इस प्रणाली में वित्तीय प्रतिस्पर्धा नहीं होती है. जबकि यह कार्य इस प्रणाली की विशिष्टियों के अनुरूप नहीं था.
3. निविदा के मूल्यांकन के दौरान पाया गया कि कोई भी निविदादाता निविदा शर्तों के आधार पर योग्य नही है. मूल्यांकन समिति ने कहा कि निविदा रद्द की जाये और नई निविदा गुणवता एवं लागत प्रणाली के आधार निकाली जाये, परन्तु मंत्री स्तर पर निविदा मूल्यांकन समिति का यह सुझाव अस्वीकार कर दिया गया. षड्यंत्र पूर्वक मंत्री का निर्देश हुआ कि निविदा शर्तों में बदलाव कर निविदा का पुनर्मूल्यांकन करें. आपको मालूम होगा कि ऐसा करना अनियमित, अनुचित और भ्रष्ट आचरण का द्योतक है. इस बारे में सतर्कता आयुक्त का स्पष्ट निर्देश है.
4. निविदा शर्तों में अनुचित बदलाव के बावजूद मेनहर्ट योग्य नहीं ठहर रहा था. इसके बावजूद षड्यंत्र पूर्वक इसे योग्य घोषित किया गया.
5. निविदा के तकनीकी मूल्यांकन के दौरान भी खुला षड्यंत्र हुआ. मेनहर्ट के पक्ष में खुला पक्षपात हुआ. इसे सबसे अधिक अंक देकर तकनीकी दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया. तत्कालीन निगरानी ब्यूरो के तकनीकी कोषांग ने अपनी जांच में इस षड्यंत्र का पर्दाफाश किया है.
6. गुणवत्ता आधारित प्रणाली की निविदा शर्तों के मुताबिक केवल तकनीकी रूप से सर्वश्रेष्ठ करार दिये गये निविदादाता का ही वित्तीय लिफाफा खुलना था. वित्तीय निगोशियेशन में भी जानबूझकर लागत दर बढ़ाने का षड्यंत्र किया गया. इसका पर्दाफाश भी निगरानी ब्यूरो के तकनीकी कोषांग ने अपनी जांच में किया है.
7. मेनहर्ट की नियुक्ति में अनियमितता का मामला झारखंड विधान सभा के बजट सत्र – 2006 में उठा. तत्कालीन सरकार के वित्त एवं नगर विकास मंत्री ने सदन को गुमराह किया. उन्होंने सदन में झूठ बोला. कहा कि निविदा दो मुहरबंद लिफाफों में आमंत्रित की गई थी. एक लिफाफा में तकनीकी प्रस्ताव और दूसरे में वित्तीय प्रस्ताव मांगा गया था, जबकि निविदा तीन लिफाफों में मांगी गई थी. तीसरा लिफाफा योग्यता का था. चुंकि निविदा की योग्यता शर्तों पर मेनहर्ट अयोग्य था, इसलिये मंत्री ने षड्यंत्र पूर्वक सदन में झूठ बोला और निविदा में योग्यता के लिफाफा के अस्तित्व से ही इंकार कर दिया.
8. इस कांड को लेकर तीन दिनों तक विधानसभा का कार्य बाधित रहा. सभा अध्यक्ष ने मामले की जांच के लिये सदन की विशेष समिति गठित कर दिया. षड्यंत्र पूर्वक तत्कालीन सरकार ने समिति को सहयोग नहीं किया. समिति मामले की गहराई से जांच नहीं कर सकी. सतही प्रतिवेदन दे दिया कि कतिपय तकनीकी पहलुओं की जांच कर सरकार अग्रेतर कारवाई करे.
9. तकनीकी पहलुओं की जांच में निर्लज्ज षड्यंत्र हुआ. मंत्री नगर विकास ने अपने ही विभाग के मुख्य अभियंता की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय तकनीकी समित गठित कर दिया. इस समिति ने प्रतिवेदन दे दिया कि मेनहर्ट की नियुक्ति सही है. इसके आधार पर सरकार ने मेनहर्ट को कार्यादेश दे दिया. निगरानी तकनीकी कोषांग ने और पांच अभियंता प्रमुखों की समिति ने जांचोपरांत इस उच्चस्तरीय तकनीकी समिति के प्रतिवेदन को गलत ठहरा दिया और कहा कि निविदा शर्तों पर मेनहर्ट अयोग्य था.
10. इसके बाद झारखंड विधानसभा की कार्यान्वयन समिति ने मामले की जांच किया और अपने विस्तृत प्रतिवेदन में सिद्ध कर दिया कि मेनहर्ट की नियुक्ति अवैध थी. षड्यंत्र पूर्वक कार्यान्वयन समिति का प्रतिवेदन लागू नहीं होने दिया गया.
11. षड्यंत्र यह भी हुआ कि कार्यान्वयन समिति जांच नहीं कर सके. जांच को बाधित करने का प्रयास तत्कालीन नगर विकास मंत्री द्वारा किया गया. उन्होंने सभा अध्यक्ष को पत्र लिखा कि कार्यान्वयन समिति द्वारा इस मामले पर विचार किया जाना अनुचित है. मंत्री के पत्र के आधार पर कार्यान्वयन समिति की जांच रूक गई.
12. कार्यान्वयन समिति ने मेनहर्ट की नियुक्ति से जुड़े सरकारी अधिकारियों एवं अभियंताओं को बयान देने के लिये तलब किया तो तत्कालीन मंत्री ने इसका विरोध किया. उन्होंने सभा अध्यक्ष को लिखा कि कार्य करने के दौरान मानवीय भूल हो जाती है, पर इसके लिये अधिकारियों को विधान सभा समिति के सामने बुलाने से उनका मनोबल टूटता है.
13. सरकार बदली, नूतन सभाअध्यक्ष आये तो कार्यान्वयन समिति ने पुनः कार्य आरम्भ किया. पूर्व नगर विकास मंत्री महोदय ने नूतन सभा अध्यक्ष को भी पत्र लिखा और कार्यान्वयन समिति की जांच में हस्तक्षेप किया. इसके बावजूद कार्यान्वयन समिति ने प्रतिवेदन दिया कि मेनहर्ट कि नियुक्ति अवैध है.
14. कार्यान्वयन समिति के प्रतिवेदन पर नगर विकास विभाग ने कारवाई नहीं की. कार्यान्वयन समिति के प्रतिवेदन पर मामले की जांच के लिये 5 अभियंता प्रमुंखों की समिति बनी. इस समिति ने जांच किया और पाया कि मेनहर्ट अयोग्य था. इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई.
15. 2009 में राष्ट्रपति शासन के समय राज्यपाल के सलाहकार ने निगरानी आयुक्त को जांच करने एवं कारवाई करने का आदेश दिया. निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा ने निगरानी ब्यूरो को जांच सौंपने के बदले इसे निगरानी के तकनीकी कोषांग को जांच के लिये भेज दिया. उनका यह कृत्य दोषियों को बचाने के षड्यंत्र का हिस्सा था.
16. झारखंड उच्च न्यायालय ने दो बार जनहित याचिकाओं पर निर्देश दिया कि आवेदक निगरानी आयुक्त के पास परिवाद दायर करें. परिवाद में तथ्य होगा तो निगरानी आयुक्त विधिसम्मत कारवाई करेंगे. दोनों याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार निगरानी आयुक्त एवं निगरानी ब्यूरो में परिवाद पत्र दाखिल किया. निगरानी ब्यूरो के आईजी ने पांच पत्र निगरानी आयुक्त को लिखा और परिवाद पत्र की जांच के लिये सरकार की अनुमति और मार्ग दर्शन मांगा पर निगरानी आयुक्त ने अनुमति नहीं दिया. वे षड्यंत्र का हिस्सा बन गई थी.
17. एक षड्यंत्र के तहत दोषियों पर कार्रवाई के लिये इस मामले को निगरानी विभाग से वापस लेकर नगर विकास विभाग को भेज दिया गया. वहीं नगर विकास विभाग, जिसने मेनहर्ट को अवैध रूप से नियुक्त किया था, जिसने विधान सभा और विधान सभा समितियों के समक्ष झूठ बोला था, उसने तथ्य छुपाने का षड्यंत्र किया.
18. विगत 8 वर्षों से नगर विकास विभाग ने दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं किया है, मामले को दबाकर रखा है. कारण कि यदि किसी भी दोषी पर कार्रवाई हुई तो वह षड्यंत्र को बेनकाब कर देगा.
19. नगर विकास विभाग के मंत्री से लेकर निगरानी आयुक्त तक ने उच्च न्यायालय को, मंत्रिपरिषद को, विधान सभा को, विधान सभा की समिति को बार-बार यही बताया, उनके सामने यही झूठ परोसा कि निविदा दो लिफाफों में आमंत्रित की गई थी. एक लिफाफा तकनीकी योग्यता का था और दूसरा वित्तीय प्रस्ताव का. इन लोगों ने निविदा के साथ मांगे गये एक अन्य लिफाफा के अस्तित्व को छुपा लिया. यह तीसरा लिफाफा योग्यता का था. इस लिफाफा में निविदा शर्तों के आधार पर निविदादाताओं की योग्यता का विवरण मांगा गया था. विदित हो कि निविदा शर्तो के अनुसार मेनहर्ट अयोग्य था. इसलिये षड्यंत्रकारियों ने योग्यता के लिफाफा के बारे में हर जगह झूठ बोला. विधान सभा से लेकर न्यायपालिका तक से तीसरे लिफाफा की बात इन्होंने छुपाया. इस षड्यंत्र का पर्दाफाश और षड्यंत्र के सूत्रधारों का भंडाफोड़ आवश्यक है.
20. झारखंड सरकार इस मामले में 2008 में दिये गये तत्कालीन महाधिवक्ता के परामर्श के एक भाग को बार-बार मंत्रिपरिषद और उच्च न्यायालय के सामने प्रस्तुत करती रही है. महाधिवक्ता का यह परामर्श गलत था और षड्यंत्रकारी समूह द्वारा दी गई भ्रामक और बेबुनियाद सूचनाओं पर आधारित है. इस गलत परामर्श को निरस्त करने के लिये मैंने पर्याप्त तथ्य के साथ राज्य सरकार के विधि सचिव को पत्र लिखा, पर हुआ कुछ नहीं. इसके बाद और मंत्रिपरिषद के निर्णय और इस निर्णय पर आधारित उच्च न्यायालय द्वारा मेनहर्ट को पारिश्रमिक भुगतान करने के आदेश के बीच सरकार में चार महाधिवक्ता आये और गये पर इनमे से किसी के भी सामने परामर्श देने के लिये यह मामला नहीं रखा गया. यह भी इस षड्यंत्र का ही हिस्सा है.
21. झारखंड सरकार ने झारखंड उच्च न्यायालय के समक्ष मान लिया कि मेनहर्ट ने रांची के सिवरेज-ड्रेनेज के लिये विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन (डीपीआर) बनाने का काम पूरा कर लिया है और सरकार ने इसे स्वीकार कर लिया है. उच्च न्यायालय के सामने मेनहर्ट की नियुक्ति में अनियमितता की बात नहीं रखी गई. इस आधार पर न्यायालय ने मेनहर्ट को भुगतान करने का आदेश दे दिया. भुगतान हो गया, परन्तु भुगतान हो जाने के बाद मेनहर्ट ने पैंतरा बदल दिया. सरकार के सामने शर्तें रखने लगा. पता चला कि 2006 में मेनहर्ट के साथ सरकार का जो एग्रीमेंट हुआ है वह पूरी तरह मेनहर्ट के पक्ष में है.
22. अब तो यह तथ्य भी सामने आ गया है कि मेनहर्ट द्वारा निविदा के साथ दिया गया अनुभव प्रमाण पत्र भी फर्जी है. जिस संस्था का अनुभव प्रमाण पत्र मेनहर्ट ने निविदा प्रपत्र के साथ जमा किया था, उस संस्था ने कह दिया है कि जिस लेटर पैड पर 2005 में यह अनुभव प्रमाण पत्र जारी किया गया है उस लेटर पैड का इस्तेमाल उसने वर्ष 2000 से ही बंद कर दिया है और जिस व्यक्ति का हस्ताक्षर अनुभव प्रमाण पत्र पर है उस नाम का कोई व्यक्ति उसके यहां काम ही नहीं करता है.
मुख्यमंत्री जी, मेनहर्ट की बहाली और बहाली में हुई अनियमितताओं पर पर्दा डालने का षड्यंत्र विभिन्न समितियों की जांच के बाद उजागर हो गया है. इसके लिये जिम्मेदार व्यक्तियों का भ्रष्ट आचरण भी सबके सामने आ गया है. भ्रष्ट आचरण और षड्यंत्र रचने के दोषियों पर कारवाई होना बाकी है. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने इसके लिये सरकार से अनुमति मांगा है. एसीबी को कारवाई के लिये अनुमति देना राज्यहित, जनहित और सुशासनहित में होगा. वर्तमान सरकार ने सदन के भीतर और बाहर स्पष्ट आश्वासन दिया है कि इस मामले में कारवाई की जायेगी. सर्वविदित है कि मेनहर्ट परामर्शी की अवैध नियुक्ति राँची के सिवरेज-ड्रेनेज की बदहाल स्थिति का बड़ा कारण है.
उल्लेखनीय है कि झारखंड राज्य बनने के बाद का यह पहला षड्यंत्र है जिसने बाद के दिनों के लिये अस्वस्थ उदाहरण छोड़ा है. विगत पांच वर्षों के शासनकाल में भ्रष्टाचार, अनियमितता, षड्यंत्र के जो अनेक मामले आये हैं वे इसी मानसिकता का पृष्ठपोषण करनेवाले हैं. जिन्होंने मेनहर्ट की अवैध नियुक्ति के मामले में भ्रष्ट आचरण और षड्यंत्रकारी मनोवृति का परिचय दिया है वे तो 2005 से 2019 के बीच शासन-प्रशासन में उंचाईयों को छूते रहे. पर रांची का सिवरेज-ड्रेनेज और रांची की जनता उनकी करतूतों का खामियाजा भुगतती रही. झारखंड सरकार का राजकोष भी इनका शिकार होते रहा. आरम्भ में ही इनपर कारवाई हो गई होती तो संभवतः झारखंड सुशासन की राह पर लंबी दूरी तय कर चुका होता.
विनम्र अनुरोध है कि आप कृपया उपर्युक्त विवरण की विवेचना करायें. मेरी पुस्तक ‘लम्हों की खता’ में अंकित तथ्यों का संदर्भ लें तथा षडयंत्र एवं भ्रष्ट आचरण के दोषियों के विरूद्ध विधिसम्मत कार्रवाई करने की अनुमति भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को दे.