बोकारो: भाई-बहन के स्नेह की चर्चा जब कभी होती है तब बरबस राखी और रक्षाबंधन का ख्याल मन में आ ही जाता है. कोरोना काल में स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत के नक़्शे कदम पर पूरा देश चल निकला है. बोकारो इस्पात नगर के शिवाजी कॉलोनी में एक छोटे से कमरे में एक दर्जन से ज्यादा किशोरियां बड़े ही उत्साह के साथ राखियां बनाने में जुटी हैं.
पौराणिक काल से ही रक्षा बंधन, भाई-बहन के अटूट रिश्ते को मजबूती प्रदान करता चला आ रहा है. कोरोना काल में जब पूरी दुनिया कोविड – 19 से जूझ रही है तो इसकी प्रासंगिकता और ज्यादा दिखती है.
इस त्यौहार में प्रेम और स्नेह के प्रतीक के रूप में बहनें भाईयों की कलाई में रक्षासूत्र राखी बांधती हैं, जो रस्म अदाएगी भर नहीं बल्कि उससे कहीं बढ़कर होता है.
बाजार में वैसे तो इस बार भी अनेक रंग रूप की राखियां मिल रहीं हैं, लेकिन स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए बोकारो इस्पात नगर के शिवाजी कॉलोनी में एक छोटे से कमरे में एक दर्जन से ज्यादा किशोरियां बड़े ही उत्साह के साथ राखियां बनाने में जुटी हुई है.
राखी बनाने वाली ये सभी बच्चियां पढ़ाई के साथ साथ राखी भी बना रही हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा भाइयों की कलाई पर स्वदेशी राखी बांधी जा सके. आस-पड़ोस की बहनों ने भी उन्हीं से राखी खरीदने की बात कही है.
खास बात यह है कि इन बच्चियों ने कच्चा माल खरीदने के लिए स्वयं सहायता समूह, संकल्प सृजन में प्रत्येक सप्ताह 10-10 रुपए जमा कराए थे.
उन्हीं पैसों से राखी बनाने का यह काम शुरू हुआ है. अंजलि और गायत्री ने बताया कि उनके द्वारा बनाई गई राखी की काफी डिमांड है जिससे उन्हें कुछ आमदनी भी हो रही है.
संकल्प सृजन की महासचिव साध्वी झा ने बताया कि इन बच्चियों ने राखी निर्माण का कोई बाकायदा प्रशिक्षण नहीं लिया है. वे केवल अपनी कल्पना शक्ति और हुनर की बदौलत राखी बनाकर स्वदेशी को बढ़ावा दे रही हैं.
बोकारो में इन किशोरियों के स्वदेशी के मन्त्र ने बड़ों को भी राखी निर्माण के लिए प्रेरित किया है, जो कोरोना काल में कई जरूरतमंद महिलाओं के लिए आमदनी का जरिया भी बन गया है.
इसमें कोई संदेह नहीं की भाइयों की कलाई पर स्वदेशी रक्षासूत्र बंधे देखने की चाह ने इन किशोरियों को आज इलाके में आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी विचारधारा का ब्रांड एम्बेसडर बना दिया है, जो इनके देशप्रेम के जज्बे का नतीजा है.