सूबे के अन्य गैंगस्टर की तरह उसका साम्राज्य पूरे प्रदेश में नहीं, बल्कि कानपुर और कानपुर देहात तक ही सिमित था. खासकर कानपुर देहात में उसका सिक्का चलता था. इतना ही नहीं गांव वालों के मुताबिक, इलाके के लोग भी न्याय के लिए कानून से ज्यादा विकास पर भरोसा करते थे.
पिता से हुई बदसलूकी के बाद जुर्म की दुनिया में रखा कदम
जुर्म की दुनिया में कदम रखने से पहले कुख्यात अपराधी विकाश भी एक सामान्य युवक था. बहन के पति की मौत के बाद वह उसी के साथ रहने लगा था. हालांकि कुछ सालों बाद विकास विकरू गांव पहुंचा, जहां पिता रामकुमार और मां के साथ रहने लगा. यह दौर था 1994 का जब दलित समाज के कुछ लोगों ने विकास के पिता राजकुमार से बदसलूकी करने के साथ उनकी पिटाई कर दी. ऐसा आरोप लगाया कि समाज के लोगों ने विकास के पिता को बुरी तरह मारा था. इस घटना की जानकारी मिलते ही विकास अपने पिता का बदला लेने के लिए घर में रखे असलहे को उठाकर उस वर्ग के लोगों के पास पहुंच गया. इस विवाद के दौरान विकास के साथ उसके कई दोस्त भी मौजूद थे. यहीं से विकास की एंट्री अपराध की दुनिया में हो गई.
फिल्म “अर्जुन पंडित” से प्रभावित था विकास दुबे
विकाश दुबे को पंडित कहलाना बहुत पसंद था और यह शौक उसे 1999 में आई बॉलीवुड फिल्म अर्जुन पंडित से हुआ. विकाश दुबे इस फिल्म से बेहद प्रभावित था. और अपने जीवन में 100 बार इस फिल्म को देख भी चुका था.
बॉलीवुड फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे अर्जुन पंडित यानि कि सनी देओल सत्ताधारी और शक्तिशाली लोगों की कठपुतली बना हुआ था, जिसकी वजह से आंखों देखें अपराधों को लेकर उसे चुप रहना पड़ता था. अर्जुन पंडित उर्फ सनी देओल को निशा से प्यार होता, जिसके धोखा देने के बाद वो क्रूर अपराधी बन जाता है.
विकास दुबे पीड़ित व्यक्तियों को बुलाता और खुद को पंडित कहकर खुद का परिचय देता था.
हालांकि कानपुर टोल प्लाजा से 25 किलोमीटर पहले ही विकास दुबे का एक मुठभेड़ में एनकाउंटर कर दिया गया है. उत्तर प्रदेश एसटीएफ की टीम विकास दुबे को लेकर कानपुर आ रही थी कि रास्ते में गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई और विकास दुबे ने भागने की कोशिश. इसके बाद एसटीएफ की टीम और विकास दुबे की मुठभेड़ हुई, जिसमें विकास दुबे मारा गया