नई दिल्ली:-किसान संगठनों के प्रस्ताव का है इंतजारगणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर परेड में हुई हिंसा के बाद राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन और भारतीय किसान यूनियन (भानु) ने खुद को आंदोलन से अलग कर लिया है. वहीं संगठनों के अलग होने और हिंसा की वजह किसान संगठनों के दबाव में आने के बाद सरकार को अपनी राह आसान होती नजर आ रही है.
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अमर उजाला से कहा, हम लोग पहले भी किसानों से वार्ता के लिए तैयार थे और आगे भी तैयार रहेंगे. सरकार ने किसान संगठनों की मांगों पर ही प्रस्ताव दिया था, जिसे किसान संगठन के लोगों ने ही अस्वीकार कर दिया.हम आज भी किसानों के साथ चर्चा के लिए इंतजार कर रहे हैं. जिस दिन किसान संगठन कहेंगे हम चर्चा के लिए तैयार हो जाएंगे.
वहीं किसान नेता हनान मौला ने अमर उजाला से कहा, कुछ लोगों के आंदोलन छोड़ने से किसान आंदोलन को कोई फर्क नहीं पड़ता. यह लोग पहले भी हुए कुछ आंदोलनों में शामिल हुए थे और उसे छोड़ गए थे. इनके जाने से न किसी की जीत हुई है न हार. हमारा आंदोलन पहले की तरह जारी रहेगा. जहां तक सरकार से चर्चा का सवाल है किसान संगठन के लोग मिलकर एक बैठक करेंगे जिसके बाद ही आगे की रूपरेखा तय होगी.
बुधवार को केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी कहा, सरकार ने कभी नहीं कहा कि बातचीत के दरवाजे बंद हुए हैं. दिल्ली में हुई हिंसा और किसानों संग चर्चा के सवाल पर उन्होंने कहा, आपने कभी सुना बातचीत के दरवाजे बंद हो गए हैं. जब भी ऐसा कुछ होगा आपको बताएंगे. दिल्ली में हुई हिंसा को लेकर जावड़ेकर की ओर से बयान दिया कि गणतंत्र दिवस के मौके पर जो हुआ उसे लेकर दिल्ली पुलिस की ओर से ही मामले की जानकारी दी जाएगी.
कृषि कानून के मसले पर किसान संगठनों और भारत सरकार के बीच करीब एक दर्जन से ज्यादा बार विज्ञान भवन में चर्चा हो चुकी है. पिछली दफा हुई बैठक में केंद्र ने किसान संगठनों से कहा था कि सरकार के प्रस्ताव को मान लिया जाए. सरकार ने किसानों से कृषि कानूनों को कुछ समय तक टालने की बात कही थी, लेकिन किसान संगठन उस पर भी राजी नहीं हुए थे.
इसके बाद से ही दोनों पक्षों की तरफ से सख्त रुख अपनाया गया. हालांकि ये तय नहीं हुआ था कि अगली बैठक कब होगी, तभी से चर्चा को लेकर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. वहीं सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के फैसले का भी इंतजार कर सकती है.