खास बातें:-
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जिन सीटों पर आजसू की है दावेदारी, उस पर नहीं दिख रहा बड़ा चेहरा
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सिल्ली सीट पर सस्पेंस बरकरार, सुदेश को भी दूसरी सेफ सीट की है तलाश
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मांडू में आजसू असमंजस में, तिवारी महतो का झुकाव जेएमएम की ओर
रांचीः आजसू को गठबंधन की गुत्थी जल्द सुलझानी होगी. जिन सीटों पर आजसू ने दावेदारी ठोंकी है, उस पर कोई बड़ा चेहरा नहीं दिख रहा. खुद पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो की सिल्ली सीट पर सस्पेंस बरकरार है. इसलिए वे भी सेफ सीट की तलाश में है. वे लगातार दो विधानसभा चुनाव हार चुके हैं. दोनों ही बार उनके सामने कोई बड़ा चेहरा नहीं था. एक बार झामुमो के अमित महतो ने उन्हें पटखनी दी, तो दूसरी बार अमित महतो की पत्नी सीमा महतो ने उन्हें लगभग 10 हजार वोट से हराया. सुदेश को खोया आत्मविश्वास भी वापस लाना होगा.
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आजसू के दावेदारी वाली सीटों की स्थिति
मांडूः मांडू सीट पर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है. पहले जेपी पटेल के आजसू में जाने की संभावना बनी थी, फिर वे भाजपा में शामिल हो गए. अब मांडू में तिवारी महतो को लेकर आजसू असमंजस की स्थिति में है. तिवारी महतो झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन से मिल चुके हैं. तिवारी महतो का जेएमएम से लड़ना तय माना जा रहा है. ऐसे में आजसू के पास कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आ रहा.
रामगढ़ः चंद्रप्रकाश चौधरी के सांसद बनने के बाद वे अपनी पत्नी को इस सीट से लड़ाना चाह रहे हैं. लेकिन बीजेपी ने भी इस सीट पर लड़ने की इच्छा जताई है. वजह यह है कि जब बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री बने थे, तब बाबूलाल मरांडी ने सीपीआई से यह सीट भाजपा के खाते में की थी. बाद में यह सीट भाजपा ने आजसू को दे दी.
टुंडीः टुंडी में आजसू के विधायक राजकिशोर महतो हैं, लेकिन ने उतने प्रभावशाली साबित नहीं हो पाए हैं. इस कारण इस सीट पर भी आजसू असमंजस की स्थिति में है.
तमाड़ः पिछले चुनाव में आजसू के विकास मुंडा ने यह सीट जीती थी, लेकिन विकास मुंडा ने अब झामुमो का दामन थाम लिया है. अब ऐसी स्थिति में आजसू के पास तामड़ से कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आ रहा है.
लोहरदगाः आजसू की परंपरागत सीट रही है, लेकिन कमल किशोर भगत चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हैं. उनकी पत्नी नीरू भगत पिछले चुनाव में सुखदेव भगत से हार गई थीं. अब सुखदेव भगत भाजपा के हो गए हैं. नीरू भगत जनता पर उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाई हैं. इधर बीजेपी ने इस सीट पर लड़ने की इच्छा जताई है.
बड़कागांवः पिछले विधानसभा चुनाव में बड़कागढ़ से चंद्रप्रकाश चौधरी के भाई रौशनलाल चौधरी ने किस्मत आजमाया था, लेकिन वे योगेंद्र साव से हार गए थे. हालांकि उनके हार का अंतर काफी कम रहा था. लेकिन जनता के बीच लीडर के रूप में उनकी छवि नहीं बन पाई है. इस सीट पर आजसू को पसीना बहाना होगा.
गोमियाः राज्य प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आए लंबोदर महतो ने गोमिया में जमीन तो तैयार की है, लेकिन एक राजनेता के रूप में छवि नहीं बन पाई है. पिछले विधानसभा उपचुनाव में झामुमो के पूर्व विधायक योगेंद्र महतो की पत्नी बबिता देवी ने लंबोदर महतो को पटखनी दी थी. इस सीट पर भी आजसू को पसीना बहाना होगा.
चंदनकियारी: चंदनकियारी में आजसू के उमाकांत रजक पिछले चुनाव में हार चुके हैं. उन्हें अमर बाउरी ने हराया था. फिलहाल अमर बाउरी भाजपा में हैं. राज्य सरकार में मंत्री भी. इस हिसाब से यह सीट फिलहाल भाजपा की सीटिंग सीट है.
हटिया: हटिया सीट का पेंच दूसरी तरह का है. इस पर सीट पर अगर बीजेपी वर्तमान विधायक नवीन जायसवाल को टिकट नहीं देती है, तो आजसू यह सीट छोड़ सकती है. चूंकी नवीन पहली बार आजसू के टिकट पर चुनाव जीते थे, लेकिन बाद में वे झाविमो से चुनाव जीत भाजपा में शामिल हो गए. चर्चा यह है कि नवीन जायसवाल ने सुदेश महतो के साथ रिश्तों को ताक में रखकर राजनीति को तरजीह दी. इस कारण हटिया से नवीन जायसवाल को टिकट मिलना स्वीकार नहीं करेगा.