रांची: इस वर्ष अक्षय तृतीया रविवार 26 अप्रैल को है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया मनाई जाती है. अक्षय तृतीया को अखा तीज भी कहा जाता है. अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है और शुभ मुहूर्त में सोना खरीदा जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से धन संपदा में अक्षय वृद्धि होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया को ही त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह दिन बेहद ही शुभ होता है. इस दिन किए गए कार्यों में सफलता अवश्य मिलती है. आइए, आज हम आपको बताते हैं इस दिन क्या करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
अक्षय तृतीया का प्रारंभ 26 अप्रैल को दोपहर 01:22 बजे से हो रहा है, जो 27 अप्रैल को दोपहर 02:29 बजे तक है. अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का समय 26 अप्रैल को दिन में 11 बजकर 51 मिनट से शाम को 05 बजकर 45 बजे तक है.
दान करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन किया गया दान बहुत ही शुभ होता है. धार्मिक ग्रंथों में दान के महत्व को बताया गया है. किए गए दान का कई गुना फल मिलता है. इस दिन अपनी क्षमता के अनुसार दान अवश्य करें और जरूरतमंदो लोगों की मदद करें.
माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करें
अक्षय तृतीया के पावन दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को खुश करने के लिए श्री लक्ष्मी सूक्त और विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें.
भगवान राम की पूजा करने से दूर होंगे दुख-दर्द
अक्षय तृतीया के दिन भगवान राम की पूजा भी करनी चाहिए. इस दिन रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से सभी दुख- दर्द दूर हो जाते हैं. जो लोग बीमारियों से परेशान हैं उन्हें इस पावन दिन विशेषकर रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. ऐसा करने से बीमारियों से निजात मिलता है.
श्री रामचरितमानस के अरण्य कांड का पाठ करना चाहिए
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के पावन दिन श्री रामचरितमानस के अरण्य कांड का पाठ करना चाहिए. अरण्य कांड का पाठ करने से भगवान राम की भक्ति मिलती है. श्री रामचरितमानस के अरण्य कांड में भगवान राम ऋषियों और महान संतों को दर्शन देकर, जन्म जन्मांतर के पुण्य का फल देते हैं. अगर संभव हो तो इस दिन श्री रामचरितमानस के अरण्य कांड का पाठ अवश्य करें.
अक्षय तृतीया का पौराणिक इतिहास
अक्षय तृतीया का पौराणिक इतिहास महाभारत काल में मिलता है. जब पाण्डवों को 13 वर्ष का वनवास हुआ था तो दुर्वासा ऋषि उनकी कुटिया में पधारे थे. तब द्रौपदी से जो भी बन पड़ा, जितना हुआ, उतना उनका श्रद्धा और प्रेमपूर्वक सत्कार किया, जिससे वे काफी प्रसन्न हुए. दुर्वासा ऋषि ने उस दिन द्रौपदी को एक अक्षय पात्र प्रदान किया.
साथ ही उनसे कहा कि आज अक्षय तृतीया है, अतः आज के दिन धरती पर जो भी श्रीहरि विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना करेगा. उनको चने का सत्तू, गुड़, मौसमी फल, वस्त्र, जल से भरा घड़ा तथा दक्षिणा के साथ श्री हरी विष्णु के निमित्त दान करेगा, उसके घर का भण्डार सदैव भरा रहेगा. उसके धन-धान्य का क्षय नहीं होगा, उसमें अक्षय वृद्धि होगी.