नई दिल्लीः जादू-टोना,अंधविश्वास, प्रलोभन और वित्तीय लाभ के नाम पर धर्मांतरण को रोकने के लिए निर्देश देने की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खरिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कारण नहीं दिखता जिससे 18 साल से ऊपर की उम्र का कोई भी व्यक्ति अपना धर्म नहीं चुन सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की इजाज़त दी. साथ ही केंद्र सरकार के पास अपनी बात रखने को कहा. सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल की थी. याचिका में कहा गया कि जबरदस्ती से धर्मांतरण किया जाना ना केवल अनुच्छेद 14, 21, 25 का उल्लंघन है बल्कि यह संविधान के मूल ढांचे के अभिन्न अंग धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के भी खिलाफ है. याचिका में धर्म का दुरुपयोग रोकने के लिए एक कमेटी नियुक्त कर धर्म परिवर्तन कानून बनाने की संभावना का पता लगाने के लिए निर्देश देने की मांग की थी.
याचिका में कहा गया है कि अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि केंद्र और राज्य जादू-टोना, अंधविश्वास और छल से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने में नाकाम रहे हैं, जबकि अनुच्छेद 51 ए के तहत इस पर रोक लगाना उनका दायित्व है. याचिका में कहा गया है कि प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन करवाना समाज की कुरीतियों में से एक है दिसके के खिलाफ ठोस कार्रवाई होनी चाहिए. टाचिका में कहा गया है कि ऐसे मामलों को रोकने के लिए केंद्र एक कानून बना सकता है, जिसमें तीन साल की न्यूनतम सजा का प्रवधान हो, जिसे 10 साल की सजा तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है. वहीं याचिका में विधि आयोग को जादू-टोना, अंधविश्वास और धर्मांतरण पर तीन महीने के भीतर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है.
याचिका में कहा गया है कि जनसंख्या विस्फोट और छल तथा प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण कराना एक राष्ट्रीय समस्या है इसलिए केंद्र को एक कड़ा और प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून और धर्मांतरण रोधी कानून बनाना चाहिए. याचिका में कहा गया, ”जनसख्ंया विस्फोट और छल से धर्मांतरण के कारण नौ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं तथा दिनों-दिन स्थिति और खराब होती जा रही है.”