रांचीः झारखंड की राजनीति में फिर एक नया प्रयोग देखने को मिल सकता है. वजह साफ है कि झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी हेमंत सोरेन के नेतृत्व को मानने में असहज महसूस कर रहे हैं.
इससे एक नये गठबंधन का आसार भी नजर आने लगा है. इसको लेकर झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी हवा का रूख भांप रहे हैं.
इस नये गठबंधन में कांग्रेस, वामदल और राजद को एक मंच पर लाने की कोशिश भी शुरू हो गई है. इसमें झामुमो के लिए कोई जगह नहीं रखी गई है.
कारण साफ है कि इस नए गठबंधन में शामिल दलों को शीट शेयरिंग में भी कोई परेशानी नहीं होगी. राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि इन नए महागठबंधन का नेतृत्व बाबूलाल मरांडी करेंगे.
कैसे ले सकता है नया महागठबंधन आकार
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव भी हेमंत के नेतृत्व को लेकर असहज महसूस कर रहे हैं. कांग्रेस कम से कम 32 से 35 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है.
झाविमो भी 20 से 22 सीटों पर दावा ठोंक सकता है. बाकी सीटों में राजद और वामदलों को जगह दी जा सकती है.
जिससे सीट शेयरिंग में कोई परेशानी नहीं होगी. ऐसे में झामुमो के पास अकेले चुनाव लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा.
बहरहाल झारखंड में जो राजनीतिक परिस्थितियां हैं, उसमें नये महागठबंधन का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह बताना मुश्किल है, पर इतना तो तय है कि नया महागठबंधन झामुमो और भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
लोकसभा में हुए महागठबंधन से सबक
लोकसभा चुनाव में महागठबंधन का रिजल्ट नहीं के बराबर रहा था. इसमें सिर्फ एक सीट झामुमो और एक सीट कांग्रेस को मिली थी.
शेष 12 सीटें एनडीए के खाते में गई थीं. इसको लेकर भी सभी दल हवा का रुख भांप रहे हैं.
विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों के महागठबंधन में शीट शेयरिंग सबसे बड़ी बाधा है. जिसके कारण नए गठबंधन के आसार दिख रहे हैं.
वजह यह है कि झामुमो कम के कम 40 सीट , कांग्रेस 32 से 35 सीट चाहती है. ऐसे में झाविमो, राजद और वाम दलों को परेशानी हो सकती है.
वाम दलों ने भी साफ कर दिया है कि अगर गठबंधन नहीं हुआ तो 51 सीटों पर चुनाव लड़ा जाएगा.