रांची: बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि जैसी जानकारी प्राप्त हो रही है कि हिन्दपीढ़ी क्षेत्र में स्क्रीनिंग में सहयोग करने और लॉकडाउन के दौरान विधि-व्यवस्था को दुरूस्त रखने के लिए एक धर्म विशेष के पुलिस पदाधिकारियों की विशेष रूप से तैनाती की गई है. खबरें अपने-आप में बताने के लिए पर्याप्त है कि सरकार की यह सोच है कि वह धर्म विशेष लोगों के लिए धर्म विशेष के पदाधिकारियों को ही तैनात कर स्थिति को काबू में रख सकती है. मेरी समझ से यह परे है कि सरकार ऐसा सोच क्यों रखती है, पर इतना जरूर है कि सरकार का यह एक बेहद ही खतरनाक कदम है. इससे राज्य में एक गलत परंपरा की शुरूआत होगी. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शायद सरकार ने अपने इस कदम के बारे में दूरगामी परिणाम की चिंता कतई नहीं की है.
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किसी भी विधि-व्यवस्था में धार्मिक आधार पर विभाजन समाज में एक ऐसी विकृति को जन्म देगा जिसका असर लंबे समय तक रहेगा और इससे समाज में एक बड़ी खाई बनेगी. सरकार को यह सोचना चाहिए कि भविष्य में अगर ऐसी ही समस्या बहुसंख्यक इलाके में उत्पन्न हो गई और वहां से भी कुछ ऐसी ही मांगें उठनी प्रारंभ हो गई कि उन इलाकों से मुस्लिम या ईसाई अधिकारियों को हटाया जाय, तब सरकार क्या करेगी ? सरकार कैसे समझती और मानती है कि यह एक उचित कदम है ? सरकार ने ऐसा अगर किया है तो इस पर सरकार को पुनर्विचार करने की जरूरत है.
किसी भी सरकार को वोट की राजनीति से परे सामाजिक संतुलन को ध्यान में रखकर सर्व-धर्म, समभाव नीति के मूलमंत्र पर ही चलनी चाहिए और आपने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते वक्त इसी मार्ग पर चलने का वचन दिया है. मेरा सुझाव होगा कि सरकार अपने कदम को तत्काल पीछे हटाये. यही झारखंड, झारखंडी समाज और सभी धर्म के हित में होगा.
उन्होंने कहा कि इस सुझाव को अन्यथा नहीं लेंगे और इसे राज्य व झारखंडी समाज के लिए भविष्य का बड़ा खतरा समझते हुए एक गंभीर मुद्दा मानकर इस पर त्वरित कदम उठायेंगे. साथ ही समाज में विद्वेष फैलाने वाला इस प्रकार का भाव जिस किसी के भी मन में आया और इसे क्रियान्वित तक कर दिया गया, ऐसे तत्वों को चिन्हित कर कड़ी कार्रवाई करेंगे. राज्य में, समाज में संतुलन बना रहे, कोई कदम विद्वेष उत्पन्न या उसे रेखांकित नहीं करे, यह आपकी-हमारी सबकी जवाबदेही है.