रांची: ऐतिहासिक बड़ा तलाब (रांची झील) की सुदंरीकरण के नाम पर हुई बरबादीकरण, नियमविरुद्ध कार्य, 30 करोड़ सरकारी राशि की बंदरबाट एवं उत्पन्न जल संकट की जांच एवं दोषी अधिकारियों और नगर निगम के जनप्रतिनिधियों पर आपराधिक मामले दर्ज कर कार्रवाई करने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरने को झारखंड छात्र संघ के अध्यक्ष एस अली मांग पत्र भेजा है.
उन्होंने उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरने को बताया कि सन 1841 ई. रांची में पड़े भीषण गर्मी और पानी की किल्लत को देखते हुए, ब्रितटिश सरकार रांची के डिप्टी कमिश्नर रार्बट ओस्ले ने 1842 में 53 एकड़ भूमि पर बड़ा तालाब का निर्माण कराया था. निर्माण में रांची जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियों (आदिवासी मूलवासी) से मजदूरी करायी गई थी.
बड़ा तालाब रांची शहर की लाईफ लाईन मानी जाती है, जिसके कारण पुरानी रांची, किशोरगंज, अपर बजार, लेक रोड़, हिन्दपीढ़ी सहित आसपास की बस्तियों में पानी का स्त्रोत बना हुआ था.
तलाब के दक्षिण स्थिति सेवा सदन की तरफ बड़े पैमाने में तालाब की भूमि पर कब्जा है, जिसपर लोग गोदाम, व्ययामशाला, धर्मशाला, दुकान, सुलभ शौचालय, बिजली पावर हाउस, पार्क आदि निर्माण कर कुछ लोग करोड़ों कमा रहे है.
तालाब में अपर बाजार, सेवा सदन अस्पताल से निकलने वाली नाली का पानी गिरती है. तालाब के अंदर गंदगी और कचड़ा भरा हुआ है, जिसके कारण तालाब की पानी प्रदूषित हो गया है.
उच्च न्यायालय झारखंड ने वर्ष 2008 और 2011 में राज्य सरकार और नगर निगम से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि तालाबों की भूमि पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं हो, अतिक्रमण हटायें जाए.
तलाब के पानी के नीचे जमी गंदगी की सफाई और समुचित रखरखाव किया जाए, लेकिन नगर निगम या सरकार द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया.
नगर निगम और नगर विकास विभाग ने भूगर्भ जल संकट को नजर-अंदाज करते हुई बिना तकनीकी जांच और बिना प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति लिए नियम-परिनियम को ताक पर रखकर बेतरतीब तरीके से घटिया स्तर के मटेरियल का प्रयोग कर 30 करोड़ की लागत से जैसे-तैसे आधे अधूरे तालाब का सौंदर्यीकरण कर दिया.
जिसमें तलाब के चारों ओर 10 फीट के गड्ढे खोदकर पत्थर कि नींव और ईटों की दीवार दे दी गई, जिसके बीच सैकड़ों की संख्या में पिलर दिया गया.
तालाब के बीचों बीच बड़े-बड़े 12 पिलर खड़े कर उपर में साढ़े चार फीट चौड़ा पुल साथ ही 155 मीटर लम्बा स्टील ब्रिज और 33 फीट उंची स्वामी विवेकानंद की आदमकद प्रतिमा लगा दी गयी.
उस समय स्थानीय आदिवासी मूलवासी लोगों द्वारा विवेकानंद की प्रतिमा लगाने का विरोध व आपत्ति जताते हुए झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर विश्वआनाथ शाहदेव, शेख भिखारी, टिकैत उमराव सिंह, पाण्डे गणपत राय, बिरसा मुण्डा, वीर बुद्धु भगत आदि में से किसी की प्रतिमा लगाने की मांग की गयी थी, ताकि आने वाली पीढ़ी इन स्वतंत्रता सेनानी को याद रख सके लेकिन मांग को दरकिनार कर दिया गया.
तालाब के चारों ओर नींव, सैकड़ों छोटे पिलर, चारदिवारी बीच में बड़े-बड़े पिलर व पुल और प्रतिमा लगाने से पहले से ही छोटा हो चुके बड़ा तालाब और भी छोटा हो गया.
साथ ही तालाब में प्रकृति पानी जो रिस कर आता थी और पानी को जो ऑक्सीजन मिलता था, वो समाप्त हो गया, जिस कारण बेतहाशा जलकुम्भी में वृद्धि हुई. परिणामस्वरूप आस-पास के मुहल्ले में पानी की संकट उत्पन्न हो रहा है.