दीपक,
रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा की नजर पिछड़े वोटरों पर है. राज्य में आठ विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति की हैं. इनमें से लातेहार, चतरा, सिमरिया, छतरपुर, जुगसलाई, कांके, देवघर, जमुआ, चंदनकियारी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. झारखंड में इस बार 2.26 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे.
आपको बता दे कि झारखंड में कुल वोटरों की संख्या में से 12.6 फीसदी अनुसूचित जाति, 14 फीसदी मुस्लिम और 4.5 फीसदी ईसाई हैं. 27 फीसदी आदिवासी मतदाता हैं. ये वैसे मतदाता हैं, जो अलग-अलग कारणों से बीजेपी से बेहद नाराज हैं. आदिवासियों में सरना आदिवासी यानी गैर ईसाई आदिवासियों की संख्या ज्यादा है. बीजेपी इनके बीच पैठ बनाना चाह रही है. सोंची समझी रणनीति के तहत नंद किशोर यादव को बनाया गया सह प्रभारी.
भाजपा के केंद्रीय नेताओं ने इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए विधानसभा चुनाव प्रभारी के रूप में बिहार के मंत्री नंद किशोर यादव को जवाबदेही सौंपी गयी है. इसके अलावा भाजपा में बरही के विधायक मनोज यादव के शामिल होने से कोडरमा, गिरिडीह, चतरा सीटों पर यादव वोटरों को भी भाजपा समेटने में लगी है. भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2019 में अन्नपूर्णा यादव को भाजपा का टिकट देकर, एक नया गेम प्लान दिया था. अब भाजपा पिछड़ों को पटाने में लगी है, ताकि चुनाव में एकपक्षीय मत पार्टी के खाते में आ सके. भाजपा के नेताओं की तरफ से दूसरे दलों के अंतर्कलह पर भी नजर है.
इसमें संतुलन बनाने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन संतुलन इस बात से है कि बीजेपी में भी कलह कम नहीं है. दूसरी बात यह कि सत्ता विरोधी मतदाता चुनाव चर्चाओं से दूर जरूर हैं. लेकिन वोट खराब न होने पाए, इस बात को लेकर सतर्क भी है.
शहरी मतदाताओं पर ज्यादा ध्यान नहीं
पार्टी के शीर्ष नेताओं का मानना है कि भाजपा के खाते में शहरी मतदाता पहले से ही हैं. ऐसे में राष्ट्रीय जनता दल के बिखराव का फायदा उठाना चाह रही है. भाजपा ने इसी फारमुले पर बरही, कोडरमा, सिल्ली, तमाड़, गोमिया, बेरमो, मांडू, बरकट्ठा, जमुआ जैसी सीटों पर अपना फोकस केंद्रीत कर रखा है.