जमशेदपुर: राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि केंद्र सरकार ने तीन काले कानूनों के माध्यम से किसान, खेत-मजदूर, छोटे दुकानदार, मंडी मजदूर व कर्मचारियों की आजीविका पर एक क्रूर हमला बोला है. यह किसान, खेत और खलिहान के खिलाफ एक घिनौना षड्यंत्र है.
केंद्रीय भाजपा सरकार तीन काले कानूनों के माध्यम से देश की ‘हरित क्रांति’ को हराने की साजिश कर रही है. देश के अन्नदाता व भाग्यविधाता किसान तथा खेत मजदूर की मेहनत को चंद पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रखने का षडयंत्र किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि आज देश भर में 62 करोड़ किसान-मजदूर व 250 से अधिक किसान संगठन इन काले कानूनों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार सब ऐतराज दरकिनार कर देश को बरगला रहे हैं. अन्नदाता किसान की बात सुनना तो दूर, संसद में उनके नुमाईंदो की आवाज को दबाया जा रहा है और सड़कों पर किसान मजदूरों को लाठियों से पिटवाया जा रहा है.
बन्ना गुप्ता ने कहा कि संघीय ढ़ांचे का उल्लंघन कर, संविधान को रौंदकर, संसदीय प्रणाली को दरकिनार कर तथा बहुमत के आधार पर बाहुबली मोदी सरकार ने संसद के अंदर तीन काले कानूनों को जबरन तथा बगैर किसी चर्चा व राय मशवरे के पारित कर लिया है. यहां तक कि राज्यसभा में हर संसदीय प्रणाली व प्रजातंत्र को तार-तार कर ये काले कानून पारित किए गए.
कांग्रेस पार्टी सहित कई राजनैतिक दलों ने मतविभाजन की मांग की, जो हमारा संवैधानिक अधिकार है. 62 करोड़ लोगों की जिंदगी से जुड़े काले कानूनों को संसद के परिसर के अंदर सिक्योरिटी गार्ड लगाकर, सांसदों के साथ धक्का-मुक्की कर बगैर किसी मतविभाजन के पारित कर लिया गया.
उन्होंने कहा कि संसद में संविधान का गला घोंटा जा रहा है और खेत खलिहान में किसानों-मजदूरों की आजीविका का. जिन व्यक्तियों और ताकतों ने मोदी जी के निरंकुश राजतंत्र को स्थापित करने के लिए पूरे प्रजातंत्र को ही निलंबित कर रखा है, उनसे और कोई उम्मीद की भी नहीं जा सकती. संसद में ‘वोट डिवीजन’ के न्याय की आवाज, को दबाकर मुट्ठीभर पूंजीपतियों को खेती पर कब करने के ‘वॉईस वोट’ का अनैतिक वरदान दिया गया है.
बन्ना गुप्ता ने कहा कि अगर अनाज मंडी-सब्जीमंडी व्यवस्था पूरी तरह से खत्म हो जाएंगी, तो ‘कृषि उपज खरीद प्रणाली’ भी पूरी तरह नष्ट हो जाएगी. ऐसे में किसानों को न तो ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ कैसे मिलेगा, कहां मिलेगा और कौन देगा.
उन्होंने कहा कि क्या एफसीआई साढ़े पंद्रह करोड़ किसानों के खेत से एमएसपी पर उनकी फसल की खरीद कर सकती है? अगर बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा किसान की फसल को एमएसपी पर खरीदने की गारंटी कौन देगा? एमएसपी पर फसल न खरीदने की क्या सजा होगी? मोदी जी इनमें से किसी बात का जवाब नहीं दे रहे. इसका जीता जागता उदाहरण भाजपा शासित बिहार है.
उन्होंने कहा कि यह नई जमींदारी प्रथा नहीं तो क्या है? यही नहीं कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से विवाद के समय गरीब किसान को बड़ी मंपनियों के साथ अदालत व अफसरशाही के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है.
ऐसे में ताकतवर बड़ी कंपनियां स्वाभाविक तौर से अफसरशाही पर असर इस्तेमाल कर तथा कानूनी पेचीदगियों में किसान को उलझाकर उसकी रोजी रोटी पर आक्रमण करेंगी तथा मुनाफा कमाएंगी.