बिहार: पश्चिम बंगाल से जुड़े सीमांचल में युवाओं का एक बड़ा वर्ग शराब तस्करी के धंधे से जुड़ गया है. जो होम डिलीवरी भी करता है. सिर्फ जेब में पैसे होने चाहिए तो होम डिलीवरी की भी सुविधा मिलेगी. बस कीमत बाजार मूल्य से तीन से चार गुना ज्यादा चुकानी होगी. साल 2016 में शराब बंदी के बाद बिहार और खासतौर से सीमांचल में यही स्थिति है. आपको बस एक फोन करने की जरूरत है. कुछ ही मिनटों में शराब आपके घर तक पहुंचा दी जाएगी.
पांच वर्ष पूर्व 5 अप्रैल 2016 को पूर्ण शराब बंदी के बाद कुछ महीने तक इसका व्यापक असर देखा गया. महिलाओं के खिलाफ अपराध में चार फीसदी की कमी आई, मगर इसके बाद धीरे-धीरे स्थिति पहले की तरह हो गई. अंतर बस इतना आया कि शराब की सरकारी दुकानें तो बंद हो गईं, मगर शराब की खपत और बिक्री में कोई कमी नहीं आई. सीमांचल में उसी की शराब तक पहुंच नहीं हैं, जिनकी जेब में पैसे नहीं हैं. जिनकी जेब में पैसे हैं, उनके लिए शराब हासिल करना पहले की तुलना में ज्यादा आसान है.
कहने भर को है शराबबंदी
कटिहार जिले के तेलता रेलवे स्टेशन पर दवा की दुकान चलाने वाले मोहम्मद इश्तियाक कहते हैं शराबबंदी बस कहने भर के लिए है. हकीकत यह है कि शराब हासिल करना पहले से ज्यादा आसान है. सभी को पता है कि शराब कहां मिलेगा.
हां, अंतर बस इतना आया है कि पहले लोग शराब पी कर हंगामा करते थे, अब ऐसी घटनाओं में कमी आई है. पूर्णिया जिले के चटांगी पंचायत के पूर्व मुखिया तौकीर हसन कहते हैं शराब बंदी बस दिखावा है. सरकार हर साल चार हजार करोड़ के राजस्व का नुकसान झेलती है.
बढ़ते मामले भी बता रहे हैं हकीकत
पूर्ण शराब बंदी के लिए बिहार सरकार ने कठोर कानून बनाए हैं. इसके तहत शराब निर्माण, तस्करी और सेवन के लिए 50000 रुपये जुर्माना और दस साल तक की सजा का प्रावधान है. शराब सेवन से मौत के मामले में तस्करी से जुड़े लोगों को फांसी की सजा का भी प्रावधान है.
इसके बावजूद राज्य में इससे जुड़े दो लाख से अधिक मामले अदालत में लंबित हैं. बीते पांच साल में तीन लाख लोग शराब सेवन, तस्करी जैसे मामले में गिरफ्तार हुए हैं.