रांची: पत्र सूचना कार्यालय और रीजनल आउटरीच ब्यूरो-रांची एवं फील्ड आउटरीच ब्यूरो दुमका के संयुक्त तत्वावधान में ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ विषय पर शनिवार को एक वेबिनार परिचर्चा का आयोजन किया गया. परिचर्चा में मत्स्य पालन विभाग, झारखंड सरकार एवं मत्स्य पालन उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों ने मत्स्य पालन उद्योग और इस योजना से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां सांझा की.
वेबिनार के अध्यक्ष और अपर महानिदेशक पीआईबी- आरओबी, रांची अरिमर्दन सिंह ने विषय प्रवेश संबोधन में कहा कि भारत ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ के उद्घाटन के साथ ही नीली क्रांति की ओर अग्रसर हो चला है.
देश में बीसवीं सदी में अन्न और दूध क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लेकर आई हरित क्रांति तथा श्वेत क्रांति के बाद नीली क्रांति को जोर शोर से आगे बढ़ाने की जरूरत थी, ताकि लोगों को सुगमता के साथ प्रोटीन युक्त सुपाच्य पौष्टिक आहार मिल सके.
झारखंड में काफी बच्चे जन्म से ही सामान्य से कम वजन के पैदा होते हैं. इनमें गर्भवती माताओं को उचित पोषण ना मिलना भी एक प्रमुख वजह है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना इसी दिशा में एक अहम पहल है.
सिंह ने कहा कि झारखंड में मत्स्य पालन की अच्छी संभावनाएं हैं. नीली क्रांति को सफल बनाने के लिए बीमा सुविधा सहित ग्रामीण स्तर पर प्रशिक्षण एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं अगर मत्स्य व्यापार से जुड़े लोगों को उपलब्ध करा दी जाए तो इस क्षेत्र में बड़े अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे.
वेबिनार को संबोधित करते हुए झारखंड मत्स्य निदेशालय के निदेशक एचएन द्विवेदी ने कहा कि अगर मत्स्य पालकों को उचित सुविधा प्रदान कर दी जाए तो वह बहुत अच्छा परिणाम दे सकते हैं. झारखंड में अच्छी बारिश होती है. करीब 1200 से 1400 मिली लीटर प्रति वर्ष. अच्छे मत्स्य उत्पादन की बुनियाद अच्छे बीज पर निर्भर है.
मछली पालन के क्षेत्र में इतनी संभावनाएं हैं कि अगर इस पर पूरा ध्यान दिया जाए तो हमारा देश एक बड़ा मछली निर्यातक बन सकता है. आम जनों को पौष्टिक आहार और मत्स्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से ही प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की शुरुआत की गई है.
इस योजना के अंतर्गत आगामी 5 सालों के अंदर इस क्षेत्र में 50,000 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना है. साथ ही अगले 5 वर्षों में मछली उत्पादन को देश में दुगना करने का भी लक्ष्य है. झारखंड में 2019-20 में 2.23 लाख मैट्रिक टन मछली उत्पादन हुआ था, जिसे अगले 5 वर्षों में डेढ़ लाख मैट्रिक टन और बढ़ाने की योजना है. इसके लिए राज्य सरकार पूरा प्रयास कर रही है.
वेबिनार को संबोधित करते हुए मनोज कुमार, संयुक्त निदेशक मत्स्य निदेशालय झारखंड ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना को 20,050 करोड़ रुपए की केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्वकांक्षी योजना बताया.
उन्होंने कहा कि झारखंड में इस योजना की अपार संभावनाएं मौजूद है. शर्त है कि मछली पालकों को आवश्यक सुविधाएं, चिकित्सीय परामर्श तथा प्रयोगशाला और रिसर्च आदि की सुविधा आसानी से मिले.
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना मछली उत्पादकों की इन्हीं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शुरू की गयी है. ई-प्लेटफार्म तथा इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी की तकनीक का सही उपयोग इस उद्योग को विकसित करने में अहम भूमिका अदा कर सकता है.
कुमार ने इस बात पर हर्ष व्यक्त किया कि इस योजना के लिए भारत सरकार में सरकार ने अलग से एक सचिव स्तर के अधिकारी को नियुक्त किया है. सरकार के इस कदम से पता चलता है कि वह इस योजना को सफल बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने को तैयार है.
देश में मत्स्य उत्पादों का बड़ा बाजार है जरूरत इस बात की है कि इस उद्योग को सही सहायता मिले और जो लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं वह सरकारी योजनाओं का समुचित लाभ उठाएं. सजावटी मछलियों का भी एक बड़ा बाजार है और इसमें महिलाओं को 3 लाख की योजना पर ₹1,80,000 की सहायता सरकार की ओर से दिए जाने का प्रावधान है.
झारखंड में पर्ल कल्चर और झींगा कल्चर आदि की भी शुरुआत की गई है. उन्होंने यह भी बताया कि मत्स्य उद्योग में फिलहाल पोस्ट हार्वेस्ट वेस्टेज करीब 25% है जिसे आगामी 5 वर्षों में 10% तक लाने की योजना है. साथ ही इस योजना के अंतर्गत देश में मछली उत्पादन में 40% की बढ़ोतरी का भी लक्ष्य रखा गया है.
वर्ष 2020-21 के बारे में उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने 100 करोड़ रुपए से अधिक का बजट तैयार किया है, जिसमें केंद्र की तरफ से 34 करोड़ रुपए तथा राज्य सरकार की ओर से 22 करोड़ रुपए से अधिक सहयोग राशि मुहैया कराया जाएगी बाकी राशि मछली उत्पादक लगाएंगे.
मुकेश कुमार सारंग, उपनिदेशक मत्स्य, विंध्याचल मंडल, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश ने अपने संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, इससे जुड़े लोगों को कई प्रकार से लाभान्वित करेगी. योजना के तहत मत्स्य उत्पादकों को लैब की सुविधा तथा चिकित्सीय परामर्श के अलावा 2000 से अधिक मत्स्य मित्रों का भी साथ मिलेगा, जो उन्हें उनके स्थान पर ही उनकी समस्याओं का निदान करने का प्रयास करेंगे.
उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा आवंटित फंड में से करीब 40% फिशरीज के लिए मूलभूत सुविधाएं तैयार करने पर खर्च किया जाएगा. उन्होंने बताया कि सरकार का उद्देश्य है कि 55 लाख लोगों को मत्स्य उद्योग के रोजगार से जोड़ा जा सके.
सारंग ने बताया कि कम लागत उत्पादन में इंटीग्रेटेड फार्मिंग की भी अपार संभावनाएं मौजूद हैं. मछली के तालाब का जल खेती के लिए बहुत उपयुक्त जल स्रोत होता है. तालाब के चारों ओर पेड़ लगाकर किसान उन पेड़ों से फायदा ले सकते हैं, साथ ही तालाब के ऊपर वाली खुली जगह पर मचान पर मुर्गी पालन कर मछलियों के लिए मुर्गी के बीट आदि से मछलियों को भोजन दिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि किसान अपने तालाब के किनारे सब्जियां, पेड़-पौधे लगाकर या फिर पशुपालन करके भी अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं.
पाकुड़ जिला अंतर्गत महेशपुर प्रखंड के सोनारपाड़ा गांव के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बिट्टु कुमार दास ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ा रहे थे. कोरोना लॉकडाउन के कारण कॉलेज बंद हो गया और सैलरी मिलनी भी बंद हो गयी, तब उन्होंने लगभग 10 कट्ठा जमीन पर इंटीग्रेटेड फॉर्म लगाया.
करीब 2 लाख रुपये की राशि से चार बायो फ्लॉक टैंक का निर्माण कराने के बाद मछली पालन का काम कर रहे हैं और उन्हें आर्थिक रूप से फायदा भी हो रहा है. बिट्टू दास का मानना है कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना युवाओं के लिए लाभकारी होगी और इससे रोजगार सृजन में भी सहायता मिलेगी.
वेबिनार में पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी- कर्मचारियों के अलावा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया. गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकारों एवं सदस्यों, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर तथा मीडिया से संपादक और पत्रकार भी शामिल हुए.
इस वेबिनार का समन्वय एवं धन्यवाद क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी शाहिद रहमान ने किया. वही वेबिनार परिचर्चा का संचालन क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी मेहविश रहमान द्वारा किया गया.