नई दिल्ली: अस्पताल का बिल ना भरने पर एक मरीज को बिस्तर से बांधने का मामला सामने आया है. यह मामला मध्य प्रदेश के शाहापुर का है. अस्पताल वालों ने एक 60 वर्षीय व्यस्क को बिस्तर से बांध दिया क्योंकि उसका परिवार 11,200 रुपये का मेडिकल बिल का भुगतान करने में असमर्थ था.
मीडिया में रिपोर्ट छपने के बाद स्थानीय प्रशासम ने उस निजी अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया और अस्पताल के मैनेजर को गलत तरीके से किसी को कैद करने पर हिरासत में ले लिया है. हालांकि कानून इस मुद्दे पर बहुत कुछ नहीं कहता है.
साल 2018 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय मरीजों के अधिकारों का एक चार्टर लेकर आया, जिसे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बनाया था. इस चार्टर में किसी मरीज के मूलभूत अधिकारों का उल्लेख किया गया है. इस ड्राफ्ट में साफ-साफ लिखा गया है कि अस्पताल के बिल ना भर पाने या इससे संबंधी किसी भी कार्यवाही पर अस्पताल प्रशासन मरीज को कैद या पकड़कर नहीं रख सकता, मरीज के शव को नहीं रख सकता.
हर राज्य में स्वास्थ्य विभाग मुख्यमंत्री पद के तहत आता है, इसलिए इन प्रावधानों को राज्य सरकारों के जरिए लागू कराने की योजना थी. पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने एक ड्राफ्ट नियम जारी किए थे जो पहले से मौजूद नर्सिंग होम रजिस्ट्रेशन रूल्स में संशोधन के लिए बनाए गए थे.
नर्सिंग होम रजिस्ट्रेशन के मुताबिक अस्पतालों में बिल ना भर पाने की स्थिति में किसी मरीज को कैद करके नहीं रखा जा सकता, यही नहीं किसी भी स्थिति या कारण की वजह से मरीज के शव को डिस्चार्ज ना करने का फैसला नहीं लिया जा सकता है.
इन प्रावधानों को लेकर सबसे बड़ी परेशानी यह सामने आती है कि ये नियम और गाइडलाइंस अभी भी ड्राफ्ट बने हुए हैं, इन्हें कानून की शक्ल नहीं दी गई है. न्यायालयों ने कई बार अस्पताल के बिल ना भरने पर मरीज को ना रोकने का फैसला सुनाया है लेकिन ये फैसले अलग-अलग केस पर आधारित है. कोर्ट ने इसको लेकर सामान्य दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं.
साल 2018 में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने मरीज के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि कैसे कोई अस्पताल किसी मरीज को स्वस्थ घोषित करने के बाद बिल का भुगतान ना करने की स्थिति में अस्पताल में रोक सकता है. इस तरह से अस्पताल मरीज के निजी अधिकारों को काट नहीं सकता है. लोगों को इस बात से जागरुक किया जाए कि अस्पताल की ओर से ऐसा रवैया गैर-कानूनी हो सकता है.
हालांकि कोर्ट ने इस मुद्दे पर कोई विशेष दिशा-निर्देश जारी करने से मना कर दिया था और कहा कि ये सरकार का काम है. एक साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने मरीज को पकड़कर रखने वाले मामले में कहा था कि अगर बिल का भुगतान नहीं भी किया है, तब भी मरीज को कैद करके नहीं रखा जा सकता. कोर्ट ने कहा कि वो इस तरह की कार्यवाही की निंदा करते हैं.
हालांकि ऐसे मामलों में मरीज के परिवार वालों पर निर्भर करता है कि उसका मामला अस्पताल के अधिकारी देखें या न्यायालय में इसे घसीटा जाए.