ज्योत्सना,
खूंटी: लगातार झारखंड सरकार पर केंद्र द्वारा भेजे गए पैसे नहीं ख़र्च कर पाने की बातें उछलती रही है. इस मसले पर झारखंड के कृषि सह सहकारिता मंत्री ने बेबाकी से कहा कि केंद्र ने अब तक केवल सूखा राहत का ही पैसा भेजा है.
केंद्र सरकार से पैसे मिले कहां, केंद्र में जो योजनाएं बनाई जाती हैं उसे इम्पलीमेंट करने के लिए केंद्र का सहयोग कितना है, बैंक राष्ट्रीयकृत हैं क्या बैंक कर्ज देने के लिए तैयार है. केंद्र सरकार कितने की बैंक गारंटी दी है. रेलवे आपके अधीन है. तब मजदूरों को लाने में सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है.
केंद्रीय रेलमंत्री पीयूष गोयल देश के सभी मुख्यमंत्रियों को आपदा में चलाये जा रहे राहत कार्य के लिए धन्यवाद देते हैं जबकि झारखंड में भाजपा के सांसदों को धन्यवाद दे रहे हैं. इस तरह का केंद्र का पक्षपातपूर्ण रवैया कहीं से भी उचित नहीं है.
राज्य के कृषि मंत्री ने कहा कि भारतीय होने के नाते लॉकडाउन के दौरान कैसे देश और राज्यों की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जाए. यह महत्वपूर्ण सवाल है. केंद्र के भेदभावपूर्व रवैये के बावजूद दिल्ली में हमारे सांसदों ने धरना नहीं दिया, थालियां नहीं बजायी. जब राज्य विपदा की घड़ी में लगातार बेहतर तरीके से राहत कार्य चला रहा है तो राज्य में विपक्ष के लोग अलग से अपने नाम का पैकेट बंटवाकर लोगों को भटकाने का काम कर रहे हैं. जबकि केंद्र के निर्देश का पालन करते हुए यहां की जनता ने अपनी धैर्य का परिचय दिया है. लेकिन जब लंबे समय तक देश के संबोधन में प्रधानमंत्री ने कुछ स्पष्ट नहीं किया तो आम नागरिकों का धैर्य टूट गया और लोग लॉकडाउन के बावजूद सड़कों पर निकलने लगे.
केंद्र सरकार यदि झारखंड के 55 जिलों में सुखाड़ से निपटने के लिए आर्थिक मदद करती तो इससे झारखंड के 10 लाख किसानों को फायदा पहुंचता. झारखंड के जीएसटी के बकाए का भुगतान यदि केंद्र करे तो इससे किसानों के लिए हितकारी कदम बढ़ाए जा सकते थे लेकिन दिन प्रतिदिन केंद्र के इशारे पर भाजपा अपने हिडन एजेंडा के तहत झारखंडियों को भड़काने का काम कर रही है.
मंत्री ने कहा कि किसानों तक 2-2 हजार पीएम किसान सम्मान निधि की राशि पहुंचने की बात पर जब वस्तुस्थिति का जायजा लेने गांव पहुंचे तो हालात विपरीत साबित हुई, 200 ग्रामीण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पूछने पर कहने लगे कि सिर्फ 8 किसानों को पीएम किसान सम्मान योजना की राशि मिली है. वर्त्तमान विकट परिस्थिति में मनरेगा जैसे कार्यों में शिथिलता लाते हुए 60-40 के अनुपात में कृषि से जुड़े कार्यों को आगे बढ़ाने की जरूरत है. लेकिन केंद्र के ऑटो-पायलेट-मोड में चलने के रवैये से रचनात्मक कार्य लंबित है, इससे देश और पीछे जाएगा. केंद्र इस समय भेदभावपूर्ण रवैया छोड़कर देशहित में समान विचारधारा के साथ राज्यों के विकास में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें.