रांची: पूरे देश में लॉक डाउन होने से पहले ही झारखंड सरकार ने लॉक डाउन कर दिया था यह सराहनीय कदम रहा लेकिन लॉक डाउन के दौरान जो हालात सामने उभर कर आ रहे हैं उससे स्वास्थ्य विभाग और अस्पतालों की विश्वसनीयता पर लोगों में संदेश की स्थिति उत्पन्न होने लगा है.
राय ने कहा कि कोरोना मरीजों के ब्लड सैंपल जांच को लेकर गंभीरता नहीं बरती जा रही है जिस कारण आम लोगों में सरकार और स्वास्थ्य विभाग के प्रति निराशा का भाव उत्पन्न होने लगा है. उक्त बातें झारखंड झारखंड प्रदेश भाजपा के मीडिया पैनलिस्ट अजय राय ने कहीं.
उन्होंने कहा कि 29 मार्च तक सरकार के अनुसार 196 लोगों के ब्लड सैंपल की जांच की गई जिसकी जानकारी राज्य सरकार द्वारा दी गई जिसमें बताया गया कि इनमें 190 मरीज कोरोना नेगेटिव है अर्थात इन्हें कोरोना नहीं है. अब सरकार यह भी बता रही है कि राज्य में एक भी संक्रमित व्यक्ति नहीं है, ऐसे में वे पूर्व के शेष 6 सैंपल को सरकार प्रतीक्षारत मानती है अर्थात यह सैंपल संदेह के घेरे में है.
अजय राय ने कहा कि ध्यान देने वाली बात यह है कि 29 मार्च को मात्र 14 लोगों के ब्लड सैंपल लिए गए थे जिनमें 13 का कोरोना नेगेटिव बताएं गया और एक व्यक्ति के सैंपल की दोबारा जांच किए जाने की बात सामने आई है.
पूर्व के 6 ब्लड सैंपल प्रतीक्षारत की श्रेणी में रखा हुआ है अभी तक सरकार ने या रिम्स मेडिकल बोर्ड ने पब्लिक डोमेन में यह क्लियर नहीं किया है कि वह सैम्पल नेगेटिव है या संक्रमित लोगो का, यह स्पष्ट होना चाहिए. इससे रिम्स प्रबंधन की विश्वसनीयता कहीं ना कहीं संदेह के घेरे में आती है.
अजय राय ने कहा कि स्वास्थ विभाग पर एक संदेश यह भी जाता है कि रिम्स के माइक्रोबायोलॉजिकल विभाग में जांच की पूरी व्यवस्था है कि नहीं यह भी बड़ा प्रश्न है ? , चुकी अभी तक जो बाते उभर कर सामने आ रही है उससे यह साबित होता है कि पूर्व के प्रतीक्षारत सैंपलो की रिपोर्ट अब तक नहीं आई है आखिर वो कहां है यह सवाल सामने खड़ी है.
वहीं दूसरी ओर राज्य के स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर और उनकी नर्सिंग टीम भी आज सरकार की उदासीनता से या यू कहे स्वास्थ विभाग की लापरवाही से दहशत में मरीजों का इलाज कर रहे हैं खासकर वैसे चिकित्सक जो पहली बार इन मरीजों को देखते हैं और सैंपल लेते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित है या नहीं.
खबरें यह भी आ रही है कि चिकित्सकों के पास प्रोटक्शन इक्विपमेंट ( पीपीई) नहीं है और वो रेनकोट पहनकर मरीजों का इलाज कर रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग के इस व्यवस्था से साबित होता है कि सरकार विश्वव्यापी इस महामारी को लेकर कितनी गंभीर है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि झारखंड एक अति पिछड़ा राज्य है जहां के किसान मजदूर रोजी रोटी की तलाश में अन्य राज्यों में लाखों की संख्या में पलायन करते हैं और मौजूदा इस समय में वह वापस झारखंड आ रहे हैं अगर उनकी सही जांच नहीं हुई तो महामारी किस स्तर पर फैलेगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है.
अजय राय ने कहा कि राज्य के राजधानी में ही स्तरीय सुविधा का दावा खोखला साबित हो रहा है तो सूबे के जिले एवं तहसीलो की हालत क्या होगी. कई जिलों में इलाज को लेकर वैसे इक्विपमेंट नहीं है जो अब तक हर जिला से लेकर प्रखंड स्तर के चिकित्सालय में होना चाहिए था जिसकी खबरें मीडिया में रोज आ रही है.
अजय राय ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से प्रत्येक दिन एक मेडिकल बुलेटिन जारी होना चाहिए जो सभी जिलों के वर्तमान हालात के ऊपर में हो जिससे आमजन को यह मालूम हो सके कि हर जिला में कोरोना को लेकर क्या प्रयास सरकार की ओर से हो रहा है.