चीन को जवाब देने की मुहिम शुरू करने वाले सोनम वांगचुक अपने इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए लोगों के सवालों का जवाब लेकर आये हैं. जिसमें उन्होंने बताया कि हमें किस तरह से चीनी उत्पादों को बॉयकॉट करना है, किस तरह से अपने वॉलेट के जरिये हमें चीन को मात देनी है. चीन का जवाब में लोगों द्वारा पूछे गये सवालों का जवाब सोनम वांगचुक ने बड़े ही बेबाक तरीके से दिया है. लोगों ने जो सवाल उनसे पूछे हैं और उन सवालों के जवाब हम हू-ब-हू आप तक पहुंचा रहे हैं.
पहला सवाल: चीन को हम क्यों बॉयकोट करें, क्या ये नफरत फैलाने का सामान नहीं है ?
जवाब(सोनम वांगचुक): जी नहीं, ये नफरत फैलाने की बात नहीं है जैसा कि मैनें पहले ही कहा है कि चीनी लोगों से हमें कोई समस्या नहीं है, अच्छे लोग होते हैं कई हमारे दोस्त भी हैं. समस्या है तो चीनी सरकार से, तंत्र से जो विस्तारवादी है जो शोषण करती है, उनसे समस्या है. चीन की हर बात पर दुनियां खामोश रहती है, तो एक वेकअप कॉल है. जो हमें मिल रही है. चीन के अंदर ही 140 करोड़ लोग बंधुआ मजदूर की तरह काम करते हैं. हुकुक-अधिकार नहीं है. कुछ बोले तो वे गायब हो जाते हैं. और दुनियां खामोश है. अंदर जायें तो तिब्बती बुद्धिस्ट 60 लाख में से 12 लाख मारे गये. लगभग 6000 मंदिर-मठ तोड़ दिये गये. दुनियां खामोश है हम बिजनेस करना चाहते हैं. बात करते हैं श्रृंगजैंग में युगुर मुसलमानों की करोड़ों की जनसंख्या है और 10 लाख युगुर मुसलमान इस वक्त जेल में बंद हैं. हजारों मस्जिदें तोड़े गये हैं. दुनियां खामोश है हम सौदा करना चाहते हैं. अब श्रीलंका को ही देखिए, चीन के कर्ज से दबा जा रही है. अमनतोत ये तो बिक चुका है चीन के कब्जे में है. पाकिस्तान भी इतने कर्ज में डूबा है कि शायद ये देश भी गुलाम सा हो गया है. ये तो दुनियां की बात हुई, मेरे लिए सबसे बड़ी बात है कि मेरे दरवाजे पर क्या हो रहा है? लदाख की धरती में चीन 1962 में जहां पर जंग खत्म हुई उतने किमी अंदर आ चुका है. हमारे यहां चरवाहा अपने चारागाह खो चुके हैं वे सब अपने भेंड़ बकरियों को कहां लेकर जायेंगे..
देखिए, बॉयकोट करना कोई नयी बात नहीं है आपने सुना होगा स्वदेशी मूवमेंट. बॉयकॉट मूवमेंट तिलक जी के नेतृत्व में 1905 से शुरू हुई थी. ब्रिटिश सरकार के साथ-साथ उनके द्वारा बनाये गये उत्पादों का भी बॉयकॉट किया गया, लेकिन तब तक हम ब्रिटिश के गुलाम हो चुके थे. अब हमें समझ आनी चाहिए कि ‘प्रीवेंसन इज बेटर देन क्योर….’ इसलिए हम अभी से करें. मैं तो कहता हूं कि अगर हम कुछ न करें देखते रहें तो वो गुनाह है. जुल्म करना गुनाह है तो जुल्म सहना भी गुनाह है.
सवाल: जनता क्यों करें चीनी उत्पादों को बैन या बॉयकॉट, हमारी सरकार क्यों नहीं बैन करती है चीनी सामानों को?
जवाब(वांगचुक): देखिये, सरकारों की बंदिशें होती है. प्रोटोकॉल्स होती है. व्यापार बहुतरफा होती है. तो इसलिए सरकार के लिए शुरू में मुश्किल हो सकता है. लेकिन जनता की अपनी मर्जी है वो किंग है तो दुनियां की कोई ताकत उनसे कुछ नहीं पूछ सकती है कि आप ये क्यों नहीं खरीद रहे हैं और वो क्यों नहीं खरीद रहे हैं. हम सरकार के लिए क्यों इंतजार करें. जब लोग कुछ करने लगते हैं तो सरकार भी वैसी ही नीति बनाती है, जो जनता के मूड का होती है. अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी ने कहा था कि ‘ask not what the country can do for you, ask what you can do for your country…..’ क्या ये व्यावहारिक और संभव है कि चीन जैसे बड़े देश के सामान को बॉयकॉट कर सकें. जब कोई देश या कोई तंत्र अत्याचार करे, ज्याददती करे और वो हद से ज्यादा बढ़ जाये तो मुमकिन क्यों नहीं अगर जनता में जज्बा् हो. अरब स्प्रींग में एक नहीं 5-6 तानाशाह सरकारें गिर गयीं वो भी एक माह के अंदर और वो शुरू हुआ था एक सब्जी वाले की पुकार से .तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं. हमारे दरवाजे पर इतना अत्याचार और इतनी जबरदस्ती कर रहा है. हमारे पास और कुछ नहीं तो हमारा बटुआ तो है ना. हमारा जवाब इसी से होगा.
कौन है सोनम वांगचुक:
सोनम वांगचुक (जन्म 1 सितंबर 1966) एक लद्दाखी अभियंता, आविष्कारक और शिक्षा सुधारवादी हैं. वह छात्रों के एक समूह द्वारा 1988 में स्थापित स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीओएमएल) के संस्थापक-निदेशक भी हैं. संस्थापक छात्रों के अनुसार वो एक ऐसी विदेशी शिक्षा प्रणाली के पीड़ित हैं जिसे लद्दाख पर थोपा गया है. सोनम को एसईसीएमओएल परिसर को डिजाइन करने के लिए भी जाना जाता है जो पूरी तरह से सौर-ऊर्जा पर चलता है, और खाना पकाने, प्रकाश या तापन (हीटिंग) के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग नहीं करता है.
सोनम वांगचुक को सरकारी स्कूल व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सरकार, ग्रामीण समुदायों और नागरिक समाज के सहयोग से 1994 में ऑपरेशन न्यू होप शुरु करने का श्रेय भी प्राप्त है. सोनम ने बर्फ-स्तूप तकनीक का आविष्कार किया है जो कृत्रिम हिमनदों (ग्लेशियरों) का निर्माण करता है, शंकु आकार के इन बर्फ के ढेरों को सर्दियों के पानी को संचय करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. फिल्म थ्री इडियट्स में आमिर खान का किरदार फुंगसुक वांगडू इन्हीं की जिंदगी से प्रेरित था.