नीता शेखर,
ममता का कोई मोल नहीं होता… अनमोल होता है
खुशियां देती है दुख ले लेती है मां की ममता का मोल ना कोई... नानी अम्मा हां हम सब उन्हें नानी अम्मा ही बुलाते थे नाना जी की बड़े भाई की पत्नी. सब अम्मा कहते थे. हम सब की पुरे घर की जिम्मेवारी उन्हीं पर थी. बड़े नानाजी की पहले ही मृत्यु हो गई थी उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी. इसलिए उन्होंने नाना जी के घर को अपने प्यार और व्यवहार से अपना बना लिया था.
मेरी नानी तो मरते दम तक बहू ही बनी रह गई. एक बार छुट्टियों में हम सब नाना जी के घर गए हुए थे, नानी अम्मा सबके आदर सत्कार में लगी हुई थी नाना जी का आम का बगीचा था, जिसमें करीब हजार पेड़ लगे हुए थे. कहते हैं कभी-कभी उसमें डाकू भी हुआ करते थे. गर्मी की छुट्टियों में लगभग सभी नाना जी के यहां जाते थे एक बार हम सब ने आम खाने की जिद की, फिर क्या था नानी अम्मा ने तुरंत नौकरों को बुलाकर आम लाने को कह दिया. लगभग चार बोरी आम टूट कर आ गया. हम सब बच्चे आम देखकर उछल गए थे.
नानी अम्मा की एक आदत थी वह किसी भी चीज को बिना धोए हुए खाने नहीं देती थी. खुद से अपने सामने आम निकाल कर डलवा रही थी. नाना जी के कुल मिलाकर नौ बच्चे थे, जिसमें दो घर पर बाकी सब बाहर रहते थे मगर इनका एक नियम था कि गर्मी छुट्टियों में सबको घर आना ही है. नानी अम्मा ने सबको आम बांट दिया. खुद जाकर सो गई थी. सुबह में नानी अम्मा उठी नहीं सब ने सोचा कि हो सकता है थक गई होंगी इसलिए सो रही होंगी पर जब काफी देर हुआ तो लोगों को लगा कि कोई तो बात है क्योंकि किसी भी हालत में वह सवेरे उठ जाया करती थी.
फिर बड़े मामा जी उनके कमरे में गए तो देखा नानी अम्मा सो रही थी उन्होंने काफी आवाज लगाई कोई जवाब नहीं दिया फिर थोड़ी शंका हुई उन्होंने नजदीक जाकर देखा तो उनका शरीर नीला था और वह चिर निद्रा में सो गई थी. आनन-फानन में डॉक्टर को बुलाया गया, डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. कहा कि उनकी मौत सांप काटने से हुई है. किसी ने सांप को देखा भी नहीं था. तभी याद आया जो आया उनके साथ मदद कर रही थी उससे पूछा जाए फिर उसको बुलाया गया उसने आते ही रोना शुरू कर दिया
मैंने उनको कहा था उन्होंने बात नहीं मानी और मुझ को चुप करा दिया और कहा देखो सब बच्चों की खुशी में अपनी खुशी है. जब नानी अम्मा आम धुलवा रही थी उसी तभी एक बोरी में से सांप निकल आया था जिसे नानी अम्मा ने पकड़ना चाहा था पर उसने उनको काट लिया था, मगर फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी सांप को पकड़कर बाहर फेकवा दिया था. ताकि बच्चों को कोई नुकसान ना हो.
और खुद किसी से कुछ नहीं कहा और जाकर सो गई जिससे कि सांप का जहर उनके पूरे शरीर में फैल चुका था धन्य थी वह नानी अम्मा जिन्होंने दूसरों की खुशियों के लिए अपनी जान गवा दी थी, मगर अपनी तकलीफ छुपा लिया था. धन्य थी वह नानी हमेशा दूसरों की खुशी के लिए जीती रही, और जाते जाते भी अपना फर्ज निभा गई थी.
आज भी नाना जी के यहां नानी अम्मा की प्रतिमा लगी हुई है. आज भी जब हम नाना जी के यहां जाते हैं तो उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं जिन्होंने हम सब बच्चों के खातिर अपनी जान गवा दी थी.