चतरा:- नए वर्ष के आगमन में अब चंद घंटे ही शेष रह गए हैं. ऐसे में कोरोना काल मे अपने घरों में रहने को विवश लोग न सिर्फ अब घरों से बाहर निकल रहे हैं बल्कि वैश्विक काल व विसंगतियों से भरे साल की विदाई के साथ नए वर्ष के आगमन की तैयारियों में भी जुट गए हैं. लोग अब धीरे-धीरे पिकनिक स्पॉट में पहुंच रहे हैं. ऐसे में हजारीबाग और चतरा जिले को अलग करने वाला प्रशिद्ध चुंदरू बाबा धाम शैलानियों को बर्बस अपनी ओर आकर्षित कर रहा है.
दरअसल चतरा जिले के टंडवा प्रखंड में स्थित चुंदरू धाम दो नदियों का संगम स्थली भी है. इस धाम में नक्काशी दार बड़ी-बड़ी चट्टानों में कई रहस्य आज भी छिपे हैं. किम्वंदंती पर विश्वास करें तो चट्टानों के बीच एक गुफानुमा गड्ढा ऐसा भी है, जहां की गहराइयों का आकलन आज तक कोई नहीं कर पाया है. बुजुर्गां की मानें तो सात खटिया की डोर भी इसमें कम पड़ गयी थी. यह गुफानुमा पत्थर किस समय का है, किसी को जानकारी नहीं है. पत्थरों में हाथी और बाघों के पैर के निशान लोगों को लुभाते है. चुंदरू की विशालकाय गुफानुमा चट्टानें रहस्यों से भरी हैं.
औद्योगिक नगरी बनने के बाद बड़ी संख्या में पर्यटक इसे देखने के लिए आते हैं. धार्मिक स्थल के अलावा नक्कशीदार गुफानुमा पत्थर लोगों को रोमांचित करते है. चुंदरू और टंडवा नदी के संगम स्थल पर जो लोग आते हैं, फोटो लेना नहीं भुलते. यहां के विहंगम दृश्य फिल्मों की शूटिंग के लिए उपयुक्त माने जाते हैं. धार्मिक, भौगोलिक और पुरातात्विक दृष्टिकोण से भी यह स्थल काफी महत्वपूर्ण है. मान्यता है कि इन्हीं पत्थरों पर भगवान श्रीराम और सीता का विवाह संपन्न हुआ था. जिसके साक्ष्य आज भी मौजूद हैं. इसके अलावे शिव कुंड व जलकुंड भी मौजूद हैं. ऐसे में नए वराह के स्वागत में पहुंचने वाले विभिन्न राज्यों के शैलानी यहां गेरुआ नदियों के संगम स्थल पर स्नान कर सूर्य देवता की आराधना के साथ नए साल की खुशी-खुशी शुरुआत करते हैं. जिससे न सिर्फ उनके जीवन मे उत्पन्न संकट दूर होते हैं बल्कि पूरे साल सूर्य देवता की कृपा उनपर बनी रहती है. शैलानियों की बढ़ती संख्या से उत्साहित स्थानीय ग्रामीण व मंदिर के पुजारी अब ईलाके के विकास की मांग कर रहे हैं.