रांचीः राज्य गठन के 19 साल गुजर गए. कई सरकारें आई और गईं. सभी ने 24 घंटे बिजली देने का वादा किया. ऐसा हुआ नहीं. आज भी झारखंड बिजली के लिए दूसरे राज्यों पर ही निर्भर है. पूर्व की सरकार ने कई मौके पर झारखंड को पावर हब बनाने की घोषणा की. लेकिन हकीकत अब भी कोसों दूर है.
राज्य में तीन अल्ट्रामेगावाट पावर प्लांट के निर्माण में अब तक पेंच फंसा हुआ है. दो साल से एक ईंच भी गाड़ी आगे नहीं बढ़ी है. रिलायंस के पीछे हटने के बाद तिलैया अल्ट्रा मेगा पावर प्वांट की स्थिति वहीं की वहीं है. टीवीएनल के विस्तारीकरण को कैबिनेट से स्वीकृति लगभग दो साल पहले मिली. काम एक ईंच भी आगे नहीं बढ़ा.
देवघर अल्ट्रा मेगावाट पावर प्लांट के लिये जमीन अधिग्रहण ही नहीं हुआ. इन तीनों पावर प्लांट में लगभग 56 हजार करोड़ रुपये निवेश किया जाना है. लेकिन अब तक एक कौड़ी भी निवेश नहीं हो पाया है. फिलहाल पतरातू प्लांट का काम तो शउरू हो गया है, लेकिन इसमें भी 36 से 42 माह का समय लगेगा.
पतरातू पावर प्लांट की क्या है स्थिति
पतरातू में चार हजार मेगावाट पावर प्लांट बनाने की योजना राज्य सरकार ने 2015 में बनायी. योजना तहत पहले चरण में 2400 मेगावाट का पावर प्लांट पहले चरण में बनना था. दूसरे चरण में 1600 मेगावाट पावर प्लांट बनाया जाना था.
पहले चरण का उत्पादन साल 2019 में शुरू होना था, लेकिन अब पहले चरण का काम 2022 में पूरा किया जायेगा. पतरातू विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की ओर से पावर प्लांट लगाये जाने का कार्य होना था.
एकरारनामा होने के बाद गुजर गए पांच साल
वर्ष 2015 में झारखंड विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (जेबीवीएनएल) की ओर से एनटीपीसी के साथ समझौता किया गया था. 2018 के अंतिम माह में पावर प्लांट निर्माण का काम शुरू हुआ.
योजना अनुसार पहले चरण में 800 मेगावाट के तीन पावर प्लांट लगाये जाने है. इसके लिए पतरातु में भूमि चिन्हित की गयी.. पूरी योजना में जेबीवीएनएल 24 प्रतिशत स्टेक होल्डर है.
क्या है तिलैया अल्ट्रा मेगावाट की स्थिति
जब यह परियोजना रिलायंस को मिली थी तो पावर परचेज एग्रीमेंट के तहत 18 प्रोक्यूरर (बिजली के खरीदार) ने एग्रीमेंट में हस्ताक्षर किया था.
प्रावधान यह था कि पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन पावर प्लांट के लिये स्पेशल पर्पस व्हीकल (एसपीवी) बनायेगा. साथ ही शुरुआती खर्च पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन ही करेगा.
प्रावधान के मुताबिक पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन ने परियोजना की शुरुआत में राशि लगाई. इसके बाद स्पेशल पर्पस व्हीकल ने रिलायंस को हस्तांतरित कर दिया. तब पीएफसी द्वारा खर्च की गई राशि रिलायंस को देनी पड़ी.
रिलायंस के पीछे हटने के बाद राज्य सरकार ने ऊर्जा मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा. पहले विकल्प के रूप में कहा गया कि फिर से रिबिडिंग (पुन: टेंडर) किया जाये.
दूसरे प्रस्ताव के रूप में कहा गया कि प्लग एंड प्ले मोड (वर्तमान प्रक्रिया को बंद कर नई प्रक्रिया के तहत किसी को दिया जाये) में प्रक्रिया शुरू की जाये. पर स्थिति जस की तस है.
देवघर अल्ट्रा मेगावाट पावर प्लांट की गाड़ी भी नहीं बढ़ी
देवघर अल्ट्रा मेगावाट पावर प्लांट :
इसके लिये गोसाई पहाड़ी कोल ब्लॉक का आवंटन किया गया. 2432 एकड़ जमीन चिन्हित की गई. इसमें 1732 एकड़ निजी, 300 एकड़ सरकारी और 400 एकड़ वन भूमि थी. प्लांट के शेयर होल्डिंग की जिम्मेवारी पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन को दी गई थी. यह 4000 मेगावाट का पावर प्लांट होगा. स्थिति जस की तस बनी हुई है.
कैबिनेट से स्वीकृति के बाद की स्थिति जस की तस
तेनुघाट पावर प्लांट के विस्तारीकरण को लगभग दो साल पहले कैबिनेट से स्वीकृति मिली. अब तक काम आगे नहीं बढ़ा. विस्तारीकरण के तहत 660-660 मेगावाट की दो यूनिटें लगाई जानी थी.
प्लांट के लिये राजबार कोल ब्लॉक आबंटित भी किया गया. इसका माइनिंग प्लन भी कोल मंत्रालय को भेजा गया. डेढ़ साल से स्थिति जस की तस है.
झारखंड में 2500 मेगावाट बिजली की कमी
झारखंड में 2500 मेगावाट बिजली की कमी है. खुद ऊर्जा विभाग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 2019 में 5696 मेगावाट बिजली की जरूरत है. जबकि राज्य के पांचों लाइसेंसी लगभग 3255 मेगावाट ही बिजली की आपूर्ति करते है.
डीवीसी 946, जुस्को 43, टाटा स्टील 435, सेल बोकारो 21 और बिजली वितरण निगम 1200 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करते हैं. इसके अलावा अन्य स्त्रोतों से भी बिजली ली जाती है.