बच्चे किसी प्रकार की आवाज या ध्वनि होने पर अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं तो सतर्क हो जाइए. क्योंकि नवजात को कान से सुनाई नहीं दे रहा है. तत्काल कान के डॉक्टर से परामर्श लेकर उसका इलाज करवाएं. पीजीआई में चल रहे 37वें यूपीएओआईकॉन में डॉक्टरों ने बताया कि एक से तीन साल तक के बच्चों में कान की दिक्कतों का पता नहीं चल पाता है. अमूमन परिजन बच्चों को छोटा समझ कर अनसुना कर देते हैं. जबकि कम उम्र में बीमारी का पता चल जाए तो इलाज संभव है.
डॉ. अमित केसरी ने बताया कि पीजीआई की ओपीडी में कई बच्चे एवं वयस्क मरीज आते हैं कि उन्हें अचानक सुनाई देना बंद हो गया है. मरीजों को लगता है कि उनके कान का पर्दा खराब हो गया है. जबकि यह समस्या कान की एक हड्डी की गतिविधि के अचानक बंद होने सुनने की क्षमता खत्म हो जाती है. इस दिक्क्त को दूर करने के लिए दूरबीन विधि द्वारा 0.5 एमएम के छेद से पिस्टन इम्प्लांट किया जाता है. यह कान के पीछले हिस्से से एक एमएम का चीरा लगाकर किया जाता था.
सचिव डॉ. अमित केसरी ने बताया कि जन्म के बाद जिन बच्चों में सुनने और बोलने में दिक्कत होती है. कॉकलिया पूर्णतया विकसित न होने की वजह से इन बच्चों में आवाज दिमाग तक नहीं पहुंच पाती है. जिसकी वजह से बच्चों को सुनाई नहीं देता है. यह समस्या एक हजार बच्चों में छह बच्चों को होती है. उन्होंने बताया कि कान के तीन अहम हिस्से होते हैं. एक बाहरी आवरण होता है. जिसे हम देख सकते हैं. दूसरे हिस्से में कान के पर्दा और हड्डी होते हैं. कान के तीसरे अहम हिस्से को कॉकलिया कहते हैं. यह दिमाग और कान के बीच में होता है. यह हिस्सा भ्रूण के गर्भावस्था में 18 से 20 सप्ताह के बीच विकसित हो जाता है.