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पारंपरिक पेशा को छोड़ आम का ठेला लगा रहे हैं मूर्तिकार सुजॉय पॉल
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नागाबाबा खटाल के पास था चाल, प्रशासन ने भी हटाया
रांची: इस कोरोना वायरस ने आज देश के लाखों वैसे लोग जो दिन भर मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का पेट पालते थे उनके पास कोई विकल्प नहीं रह गया है. यहां तक की लोग अपनी पारंपरिक पेशे से दूर होते जा रहे हैं.
कुछ इसी तरह की स्थिति राजधानी रांची के मूर्तिकार सुजॉय पॉल की है. इस लॉकडाउन ने इनका वर्षों पूराना मूर्ति बनाने का पेशा खत्म हो गया है, अब ये शहर में आम का ठेला लगा रहे हैं. आम बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं.
सुजॉय पॉल शहर के जाने-माने मूर्तिकार माखनपाल के बेटे हैं. ये वही माखन चंद्र पाल हैं जिन्हेंं राज्य सरकार ने वर्ष 2005-06 में राजकीय सांस्कृतिक सम्मारन से नवाजा था.
इसके अलावा इन्हेें और भी कई पुरस्कार मिले हैं. यह केवल एक कारिगर की बात नहीं बल्कि राजधानी में कई ऐसे कारिगर हैं अपने पेशे को छोड़ दूसरे रोजगार की तरफ जा रहे हैं.
लॉकाडाउन की वजह से मूर्ति बनाने का काम पूरी तरह से ठप है: माखन पाल
सुजॉय पॉल के पिता माखनचंद्र पॉल काफी आहत हैं वो कहते हैं कि मैं काफी बीमार रहता हूं. मेरे से अब काम नहीं होता है. बेटा ही मेरे इस पेशे को संभाल रहा है.
लेकिन, लॉकडाउन होने की वजह से रामनवमी महोत्सव में एक भी मूर्ति नहीं बन पाया. क्योंकि, श्रीरामनवमी महोत्सव का कार्यक्रम इस वर्ष स्थगित कर दिया गया. अब तो दुर्गा पूजा ही एक सहारा है अब उसमें क्यात होता है कुछ नहीं कहा जा सकता है.
कलाकारों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता: शंकर प्रसाद
महावीर मंडल के मंत्री शंकर प्रसाद ने बताया कि धार्मिक मर्यादा एवं परंपरा को जीवित रखने में इन कलाकारों की योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है एवं इस विपत्ति की घड़ी में प्रशासन सरकार एवं हम सब अपना नैतिक कर्तव्य उनके प्रति निभाने में पूरी तरह विफल रहे हैं.
प्रशासन एवं सरकार से विनती है कि इनकी आर्थिक स्थिति पर ध्यान दिया जाए एवं भारत सरकार द्वारा जो ऋण मुहैया कराने की घोषणा किया गया है. इन कलाकारों को ऋण भी दिलाने की दिशा में सार्थक प्रयास किया जाए. उन्होंने कहा कि समाज एवं देश के लिए घोर चिंता का विषय है.
बाबू! पुरस्कार लेकर क्या करेंगे, जब रोजगार ही नहीं रहेगा: सुजॉय
मूर्तिकार सुजॉय पॉल ने कहा कि रोजगार रहेगा ही नहीं तो पुरस्कार लेकर क्या करेंगे. सरकार कुछ ध्यान भी नहीं दे रही है. नागाबाबा खटाल के पास हमारा चाल था जहां मूर्तियां बनायी जाती थीं प्रशासन ने चाल को अतिक्रमण में हटा दिया.
अब हमारे सामने भूखों मरने वाली स्थिति हो गयी थी, जिस वजह हमने अपने कलाकार मित्र विकास वर्मा के साथ मिल कर आम बेच रहे हैं. मूर्ति नहीं बनेगा तो पूजा कैसे होगा. पूजा पाठ सब रूक जायेगा. हमने सभी लोगों को अपना दुखड़ा सुनाया लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. अगर, यही स्थिति रही तो मूर्ति बनाने का पेशा छोड़ देंगे:
सुजॉय काफी दुखी मन से कहते हैं कि अगर सरकार कुछ नहीं करेगी तो मजबूरी में इस पेशे को हमको छोड़ना होगा. कमाई के बारे में उन्होंने बताया कि आम बेचकर 100 से 150 रुपये कमा लेते हैं. डेली लाते हैं और बेचते हैं. कुछ दिन तो घाटा हुआ लेकिन, अब सारे लोग जान गये हैं.