जमशेदपुर: झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय जमशेदपुर के रहने वाले मुरारी लाल अग्रवाल पिछले 40 सालों से न सिर्फ अनजान लोगों की अपनी आर्थिक स्थिति के अनुरूप छोटी-बड़ी मदद करते आ रहे है, वहीं लावारिश शवों का अंतिम संस्कार भी करना भी वे पुण्य मानते है. इस दौरान वे करीब 1500 शवों को अंतिम पड़ाव तक पहुंचाने में अपना योगदान दे सकते है.
जमशेदपुर के काशीडीह कुमारपारा चौक के निकट चाय और समोसे की छोटी सी दुकान चलाने वाले मुरारी लाल अग्रवाल 1979 में जब सिर्फ 18 वर्ष के थे, तो एक लावारिश पड़े शव को देखकर उसका अंतिम संस्कार किया और उसके पास से यह सिलसिला निरंतर चलता आ रहा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि मुरारी लाल अग्रवाल आसपास के इलाकों में यह पता करते थे कि कोई लावारिस व्यक्ति किसी कष्ट में तो नहीं है, कोई कष्ट में होता है, तो अपनी आर्थिक स्थिति के मुताबिक उसकी मदद भी करते है और यदि स्टेशन या अस्पताल में कोई लावारिस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी, तो मुरारी लाल अग्रवाल उस व्यक्ति का पूरा अंतिम संस्कार सनातन धर्म से करते थे. उनके इस कार्य की चर्चा धीरे-धीरे जब इलाके में फैल गयी, तो कहीं भी लावारिस लाश मिलने पर लोग दूर-दूर से उन्हें फोन करने लगे और मुरारी लाल अग्रवाल बिना समय गवाएं उस जगह पर पहुंच जाते थे और कानूनी प्रक्रिया होने के बाद उसके अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी खुद ले लेते थे.
मुरारी लाल अग्रवाल अपने पूरे परिवार के साथ रहते है और उनकी पत्नी मालती अग्रवाल और पुत्र मनीष अग्रवाल भी उन्हें कभी रोकते नहीं है. प्रारंभ में पुत्र मनीष अग्रवाल को यह कार्य थोड़ा अजीब सा लगा, लेकिन अब वे भी अपने पिता के कार्य में हाथ बंटाने लगे है.
मुरारी लाल अग्रवाल न सिर्फ सनातन धर्म के अनुसार शवों का अंतिम संस्कार ही करते है, बल्कि कई लोग आर्थिक और समय की कमी की वजह से अस्थि कलश को जमशेदपुर के स्वर्णरेखा नदी के मुक्तिधाम घाट पर छोड़ कर चले जाते है,ऐसे अस्थि कलश का विसर्जन का जिम्मा भी वे खुद ले लेते है.
4 मार्च 2013 को जमशदेपुर घाट से वे 420 अस्थि कलाश को लेकर बनारस लेकर गये और बनारस में उन सभी अस्थि कलश को गंगा नदी में प्रवाहित किया. वे अंतिम संस्कार के पहले मृतक व्यक्ति की मौत की तिथि को भी अपनी डायरी में लिख लेते है और इस डायरी को सहेज कर रखने के साथ ही लगातार इसे अपडेट भी करते है.
लावारिश शवों की अंतिम संस्कार करने की अपनी इच्छा को पूरा करने की उनकी इतनी चिंता रहती है कि पुत्र मनीष की शादी को भी छोड़ कर वे अस्पताल से लावारिस शव को लेकर अंतिम संस्कार चले गये और अंत्येष्टि के बाद ही पुत्र की शादी में शामिल हुए. उनके पास 40 सालों में तकरीबन 1,200 से अधिक लावारिस शवों के अंतिम संस्कार की तस्वीरें भी मौजूद हैं.