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बहाने तलाशने की जगह हितकारी सलाहों पर गौर करने की संस्कृति विकसित हो
रांची: 31 मार्च 2020 को समाप्त हुए वित्त वर्ष में सकल घरेलु उत्पादन, जिसे हम बोलचाल में विकास दर बोलते है. आधिकारिक आंकड़े कल 29 मई को केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने जारी कर दिया है.
पूरे वित्त वर्ष में विकास की दर 4.2 प्रतिशत रही, जबकि एक साल पहले 6.1 फीसदी विकास दर थी. सिर्फ मार्च तिमाही की बात करें, तो वृद्धि दर मात्र 3.1 फीसदी पर लुढ़क गयी, जबकि एक साल पहले मार्च तिमाही 2019 में वृद्धि दर 5.8 प्रतिशत थी. इस वर्ष मार्च तिमाही के 91 दिनों की अवधि में सिर्फ 7 दिन कोरोना महामारी जनित लॉकडाउन शामिल है.
सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि बजट की तैयारी के क्रम में जनवरी में पहले अग्रिम अनुमान और फरवरी में दूसरे अग्रिम अनुमान में सरकार ने विकास दर पांच फीसदी रहने का आकलन किया था, जबकि मैन्युफैक्चरिंग और निर्माण यानि कंस्ट्रक्शन में गिरावट पिछले तिमाहियों से ही देखी जा रही थी.
निवेश का सूचक सकल निश्चित पूंजी निर्माण 26.9 प्रतिशत रहा, जो कमजोर निवेश को दर्शाता है और यह एक बड़ा कारक रहा है. इसके साथ ही फिस्कल डेफिसिट जिसे वित्तमंत्री ने बजट पेश करते हुए 3.8 प्रतिशत तक सीमित रहना बताया था, वह बढ़कर 4.6 फीसदी पहुंच गया है.
घाटा बढ़ने का कारण खर्च में बढ़ोत्तरी नहीं, अपितु राजस्व आय में दर्ज की गयी गिरावट के कारण है. अर्थव्यवस्था की कमजोरी को दूर करने के लिए सरकार को न सिर्फ खर्च बढ़ाना होगा, बल्कि सुधार के नीतिगत ढ़ांचागत उपायों को लागू करना होगा.
उन्होंने कहा कि कमजोरी के बहानों को तलाशने के बजाय आर्थिक जानकारों के हितकारी सलाहों पर सरकार को गौर करने की संस्कृति विकसित करनी होगी.