जब कभी भी रूमानी, बेफिक्र, अल्हड़ और रोमांटिक हीरो की बात चलेगी…सब सदाबहार अभिनेता देवानंद का नाम लेंगे…और ये नाम उन्होंने हिंदी सिनेमा के 100 सालों के इतिहास में लाजवाब अभिनय कर कमाया है. हिंदी सिनेमा के सदाबहार अभिनेता देव आनंद आज जन्मदिन है. हिंदी सिनेमा के बीते 100 सालों के इतिहास में वो एक ऐसे अभिनेता रहे, जिन्होंने अपनी ज्यादातर फिल्मों में बेफिक्र, अल्हड, विद्रोही और रूमानी युवा का चरित्र जिया है, खास बात यह है कि ये सारे ही रोल उन्हें भारतीय सिनेमा का एकदम नया चेहरा और अलग अंदाज़ देते हैं.
एवरग्रीन सुपरस्टार देव आनंद आज भले ही दुनिया में न हों, लेकिन अपनी बेहतरीन फिल्मों, अलग अंदाज और शानदार एक्टिंग के जरिए वो हमेशा लोगों के बीच जिंदा रहेंगे. आज ही के दिन 26 सितंबर 1923 को देव आनंद का जन्म पंजाब (ब्रिटिश भारत) के शंकरगढ़ में हुआ था. देव साहब ने अपने करियर में 116 फिल्मों में काम किया.
रूमानी अंदाज, बेफिक्रपन और शानदार अभिनय ने बनाया एवरग्रीन
दरअसल, हिंदी सिनेमा की पहली त्रिमूर्ति में जहां दिलीप कुमार प्रेम की गंभीरता के लिए और राज कपूर प्रेम के भोलेपन के लिए जाने जाते थे, देव आनंद के हिस्से में प्रेम का खिलंदड़ापन और शरारतें आई थीं. लोगों को उनका यह रूप इस क़दर पसंद आया कि वे अपने जीवन काल में ही किंवदंती बन गए. उनकी चाल, उनका पहनावा, उनके बालों का स्टाइल और उनका बेफ़िक्र अंदाज़ उस दौर के युवाओं के क्रेज बने.
1946 में फिल्म ‘हम एक हैं’ से अपनी अभिनय यात्रा शुरू करने वाले देव साहब का ने लगभग साठ साल लंबे कॅरियर में सौ से ज्यादा फिल्मों में अभिनय ही नहीं किया, अपने नवकेतन फिल्म्स के बैनर तले 35 फिल्मों का निर्माण और 19 फिल्मों का निर्देशन भी किया.
अभिनेता के रूप में उनकी प्रमुख फ़िल्में थीं – जिद्दी, निराला, विद्या, अफसर, जाल, पतिता, टैक्सी ड्राईवर, मुनीम जी, फंटूश, इंसानियत, सी.आई.डी , नौ दो ग्यारह, सोंलवा साल, काला पानी, काला बाज़ार, बम्बई का बाबू, माया, जब प्यार किसी से होता है, हम दोनों, बात एक रात की, असली नकली, तेरे घर के सामने, शराबी, तीन देवियां, ज्वेल थीफ, गाइड, प्रेम पुजारी, हरे राम हरे कृष्ण, जानी मेरा नाम और तेरे मेरे सपने. ‘गाइड’ देव साहब की अभिनय प्रतिभा का उत्कर्ष था.
आरके नारायण के उपन्यास पर बनी फिल्म गाइड आज भी दर्शकों को पसंद है। इस फिल्म के जरिए पहली बार लिव इन रिलेशनशिप को दिखाया गया था. यह देव आनंद की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला.
यूं ही नहीं लड़कियां देवानंद के लिए जान दे दिया करती थीं.
हमेशा फैशन आइकन रहे देव आनंद साहब के कई किस्से हैं. इनमें से एक किस्सा जो हर किसी को याद आता है, वो है उनके कपड़ों पर बैन. देव आनंद ने एक दौर में व्हाइट शर्ट और ब्लैक कोट को इतना पॉपुलर कर दिया था कि लोग उन्हें कॉपी करने लगे थे. फिर एक दौर वह भी आया जब उनके पब्लिक प्लेस में काला कोट पहनने पर बैन लगा दिया गया. ऐसी अफवाह थी कि देव आनंद को काले कपड़ों में देखने के लिए लड़कियां अपनी छतों से कूद जाया करती थीं.
बॉलीवुड का कोहिनूर कहे जाने वाले देव साहब को एक्टिंग और डायरेक्शन में महारत हासिल थी. उनकी सबसे खास बात यह थी कि उन्होंने हिंदी सिनेमा को मॉर्डन बनाने में कदम उठाया. हिंदी सिनेमा में नई-नई एक्ट्रेस लांच करने का चलन देव साहब से ही शुरू हुआ था. 3 दिसंबर 2011 को उन्होंने लंदन में अंतिम सांस ली.
सुरैया से देव का प्रेम
अपनी शुरूआती फिल्मों की नायिका सुरैया के साथ उनके असफल प्रेम का शुमार हिंदी सिनेमा की सबसे त्रासद प्रेम कहानियों में होता है. देव साहब ने तो अपनी अलग दुनिया बसा ली थी, लेकिन सुरैया आजीवन अविवाहित रही. अकेलेपन को जिया और गुमनामी में मरी. देव साहब ने सातवे दशक के बाद अपनी ढलती उम्र में भी दर्ज़नों फिल्मों में नायक की भूमिकाएं निभाईं, लेकिन कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए.
हालांकि उम्र के साथ उनका जादू शिथिल और मैनरिज्म पुराना पड़ गया. निर्देशन में भी उनकी पकड़ ढीली होती चली गई. जीवन के आखिरी दिनों तक फिल्मों के प्रति उनकी दीवानगी बनी रही, लेकिन तब तक वक़्त उनसे बहुत आगे निकल चुका था। भारतीय सिनेमा में लंबे और उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें 2002 में सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान ‘दादासाहब फाल्के एवॉर्ड’ से नवाज़ा गया.