रांची: आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला ने कहा है कि कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी की रोकथाम के लिए देश में लागू 21 दिवसीय लॉकडाउन में आर्थिक गतिविधियां में जो ठहराव आया है, उससे केंद्र और राज्य की सरकार दोनों प्रभावित हुई है. राजस्व संग्रहण दोनों का कमजोर हुआ है.
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कोरोना संक्रमण की भयावहता को देखते हुए किसी भी सरकार की पहली प्राथमिकता तो बीमारी की रोकथाम करना ही होगा, परंतु उसके परिणाम स्वरुप आसन्न आर्थिक संकटों की अनदेखी भी तो नहीं की जा सकती है. उन्होंने कहा कि राज्य में वित्त विभाग का एक पत्र 4 अप्रैल को जारी है, उसके अनुसार कमजोर राजस्व संग्रहण के कारण कोषागार से निकासी के लिए विपत्रों को पारित करने की शर्तें है और यह आवश्यक विपत्र जिनकी कोटि का उल्लेख किया गया है, सिर्फ वही पारित किये जाएंगे. ऐसे खर्च को कंट्रोल करने के लिए कठोर कदम उठाना होगा.
इन्हीं संकटों के बीच सांसदों, मंत्रियों के एक साल तक 30 फीसदी तक वेतन में कटौती को लेकर अध्यादेश लाया गया है और सांसद निधि को दो साल के लिए स्थगित करने का फैसला हुआ है. इसी तरह से मध्य प्रदेश में अप्रैल में भुगतान किये जाने वाले महंगाई भत्ते पर रोक लगा दी है और यह कहते हुए कि वित्तीय स्थिति ठीक होने पर विचार किया जाएगा.
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सूर्यकांत शुक्ला ने बताया कि आर्थिक संकट के बीच ही सुप्रीम कोर्ट में सेंट्रल फॉर अकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टमैटिक चेंज (सीएएससी) ने 26 मार्च को एक याचिका दायर की है, जिसमें मांग की गयी है कि कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशभर में वित्तीय आपातकाल घोषित किया जाना चाहिए.
भारतीय संविधान में भाग 18 में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपात उपबंधों का उल्लेख किया गया है. अनुच्छेद 360 के प्रावधान राष्ट्रपति को वित्तीय आपात की घोषणा करने की शक्ति देता है, यदि राष्ट्रपति को यह लगे कि भारत या उसके किसी भाग में वित्तीय स्थायित्व या साख को संकट में पहुंचने का खतरा उत्पन्न हो गया है, तो वह मंत्री परिषद की सलाह पर वित्तीय आपात काल की घोषणा कर सकता है.
वित्तीय आपातकाल लागू हो जाने से केंद्र के किसी खास या सभी श्रेणी, कर्मचारियों, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, हाईकोर्ट कोर्ट के न्यायाधीश, राज्य सरकार के कर्मचारी, किसी एक या सभी श्रेणी के कर्मचारियों के वेतन में कटौती की जा सकती है.
वित्तीय आपातकाल की अवधि में राज्य के सभी वित्तीय मामलों में केंद्र सरकार का नियंत्रण हो जाता है और यह स्थिति राज्य की वित्तीय संप्रभुता के लिए खतरा जैसी होती है. आजादी के 73 वर्षों में अब तक इसे कभी लागू नहीं किया गया, जबकि अन्य दो आपात स्थितियों में राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन देश में पहले लागू हुए है.