भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक की सोलह तिथियां श्राद्ध कहलाती है, हमारे धर्मग्रथों में यह मान्यता है कि एक पीढ़ी पहले के पूर्वजों अर्थात जो भी हमसे बड़े हैं, जो भी हमारे पूर्वज है उनके प्रति हम श्रद्धावनत हों, उन्हें स्मरण करें और उनके प्रति कृतज्ञ बनें. इसलिए यदि दादा-दादी, नाना-नानी, मां-पिता, बड़ा भाई या अन्य हमारे स्वजन जिनसे हमारा बहुत प्रेम रहा है और उनका देहान्त हो गया है, उनका श्राद्ध करना मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है.जिस भी तिथि को उनका देहान्त हुआ है, श्राद्ध पक्ष की उसी तिथि को उनका श्राद्ध किया जाता है.श्राद्ध पक्ष में आपके पूर्वज, बन्धु-बांधव धरती पर आकर तर्पण-समर्पण प्राप्त कर पुनः उच्चलोक की यात्रा करते हैं.यदि पितरों को श्रद्धा पूर्वक पूजा, ध्यान एवं आहवान किया जाए तो वे मनुष्य के प्रत्येक कार्य में ऐसे अच्छे सहयोगी बनते हैं कि चिंताएं एवं समस्याएं जीवन से दूर हो जाती है. “श्राद्ध पक्ष एक अवसर है हम सब को अपने पितरों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने का.”
★★ “पितृ नमन” ★★
पितर चरण में नमन करें,ध्यान धरें दिन रात।
कृपा दृष्टि हम पर करें, सिर पर धर दें हाथ॥
ये कुटुम्ब है आपका, आपका है परिवार।
आपके आशिर्वाद से, फले – फूले संसार॥
भूल -चूक सब क्षमा करें, करें मेहर भरपूर।
सुख सम्पति से घर भरें, कष्ट करें सब दूर॥
आप हमारे हृदय में, आपकी हम संतान।
आपके नाम से हैं जुड़ी, मेरी हर पहचान॥
आपका ऋण भारी सदा, नहीं चुकाया जाय।
सात जनम भी कम पड़े, वेद पुराण बताय॥
हर दिन हर पल आपसे, मांगे ये वरदान।
वंश बेलि बढ़ती रहे, बढ़े मान सम्मान॥