नीता शेखर,
रांची: किसी कवियत्री ने कहा था “ना में तिल हूं ना मैं जो हूं क्यों करते हो मेरा दान बंद करो यह झूठी रस्में मत करो पापा कन्यादान” आज फिर एक लड़की विदा हो चली थी. दूर से गाने की आवाज आ रही थी “बाबुल की दुआएं लेती जा जा तुझको सुखी संसार मिले मायके कि कभी ना याद आए ससुराल में इतना प्यार मिले”.
लड़की आंखों में आंसू लिए यही सोच रही थी खेले थे जिस आंगन में वह आंगन आज पराया हो गया! बिताया था भाई बहन ने बचपन, जिस भाई ने बहन को उंगलियों पर चलना सिखाया था वह भाई-बहन आज पराए हो चले थे. बहनों ने किया था राखी पर इंतजार, नहीं भूली वह बहन अपने भाई के तोहफे को जब “जेब खर्च के पैसे से बचाकर लाया हुआ राखी का तोहफा भाई लाता था. जिस भाई की छत्र छाया में अपने आप को सुरक्षित महसूस किया और बड़े गर्व से कहती थी मेरा भैया आएगा तो सब ठीक कर देगा, आज वह बहन पराई हो चली थी.
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आंखों के काजल आंसू से धुल चले थे. लड़की सोच रही थी रिश्ते बदलने से क्या सब कुछ बदल जाता है. रिश्ते तो वहीं रहते हैं. बदल जाता है सबका नजरिया. मां बाप कहते हैं आज से यह नहीं तुम्हारा ससुराल ही तुम्हारा घर है. सही मायने में पूछे तो लड़कियों के “घर” होते हैं? जब तक लड़की मायके रहती है, वह बड़े प्यार से उस घर को सजाती है फिर जब विदाई होने लगती है तब यह कहने लगते हैं तुम्हें तो अब इस घर को छोड़कर दूसरे घर जाना है. उस समय लड़की के मन में क्या भावना उत्पन्न हो रही है ये कोई नहीं समझता.
उस घर से विदा होकर दूसरे घर आ जाती है. यहां भी वह बड़े प्यार से अपने घर को सजाती है. बड़े उत्साह और उल्लास से अपने रिश्ते में घुलमिल जाती है. यहां से उसका नया किरदार भी शुरू होता है. यहां पर उसे सब कुछ मिलता है पर नहीं मिलता तो वह घर जिसकी चाहत में वह मायके से ससुराल आ जाती है. काश मेरा भी कोई घर होता पर उसे बार-बार यह एहसास कराया जाता है यह तुम्हारे पति का घर है. उसे हर पल यहां भी यह एहसास सताता है. वो सोचती है कोई अपना स्थाई नहीं होता हैं पर लड़की बड़े प्यार से अपनी बेलों को सींचती है. वह अपनी जड़ों को सूखने नहीं देती. बड़े प्यार से हर एक सुख-दुख को अपने आंचल में छुपा लेती है. लड़की का सही मायने में उसका घर नहीं होता बस होता है मायका और ससुराल.
आज फिर आंख भर आई है. ना करो घर से बेघर. इन्हीं अपनों से विदा होकर बेगानी दुनिया को अपना बनाने अपने कांटों भरे पथ पर फूलों से सज कर पलके झुकाए चली आती हैं “पी” के घर.
बेघर मत करो पापा. यह दे दो मेरा भी अधिकार. कालचक्र के पहियों के साथ अपने सपनों को मैं भी हो जाऊं तैयार.
मत करो पापा कन्यादान, मत करो पापा कन्यादान.


