नीता शेखर,
रांची: जाड़े की सर्द रात थी. इतनी दूर इतनी रात में मुझे नींद नहीं आ रही थी. बार-बार ठंड से मन उचट हो जा रहा था, किसी तरह करवटें बदलते हुए सुबह के लगभग 4:00 रहे थे. अचानक दरवाजे की घंटी बजने की आवाज आई. इतनी रात में वह भी इतनी ठंड में कौन आया होगा, सोचती हुई मैं उठी. मैंने दरवाजे पर लगे आईबॉल से झांक कर देखा तकरीबन एक 40 साल की औरत खड़ी थी. वह बार-बार घंटी बजा रही थी और कह रही थी मुझे बचा लो, मुझे बचा लो.
मैं असमंजस में थी कि दरवाजा खोलूं या ना खोलूं. मैंने सोचा मैं भी तो एक औरत हूं. जरूर उसकी कोई मजबूरी होगी. फिर मैंने सोचा इतनी ठंड में इतनी रात में ही सहारा मांगने क्यों आती. मैंने दरवाजा खोला. वह ठंड से थरथर कांप रही थी. उसके बदन पर केवल एक साड़ी थी. मैंने उसको वहीं बरामदे में बैठने को कहा और अंदर जाकर एक कंबल ले आई. उसने झट से कंबल ओढ़ लिया. मेरी भी उत्सुकता बढ़ रही थी. आखिर कौन है, कहां से आई है, मैंने सही किया या गलत, कुछ समझ नहीं आ रहा था. फिर मैंने अपनी मेड को उठाया और उसे उसके लिए चाय बनाने को कहा. हमारे तो संस्कार है चाहे वह कोई भी हो सत्कार करने का.
चाय पीने के बाद उसे थोड़ी गर्माहट हुई. फिर वह थोड़ी देर में शांत हो गई. वह बैठे-बैठे सो गई. मैंने भी उसे सोने के लिए छोड़ दिया. फिर लगभग 7:00 बजे के आसपास उसकी नींद खुली. सुबह भी हो गई थी. मुझे कॉलेज भी जाना था इसलिए मैं ज्यादा समय बर्बाद नहीं करना चाहती थी. मैंने उससे पूछा कौन हो तुम ? कहां से आई हो ? इतनी रात में अचानक इतनी ठंड में फिर तो उसने जो कहानी सुनाई मैं सोचने पर मजबूर हो गई क्या हमारे समाज में ऐसा भी होता है!
रमा नाम था उसका. वह एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखती थी. काफी पढ़े लिखी. बीते 10 साल पहले उसकी शादी एक अच्छे परिवार में हुई थी. देखने में तो उसका ससुराल काफी धनी लगता था. पति भी किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था. शादी में तो उन्होंने कुछ भी नहीं मांगा था पर शादी के 2 साल बाद ही उसका पति नौकरी छोड़ कर आ गया और कहने लगा कि तुम अपने पिताजी को बोलो मुझे 50 लाख रुपया चाहिए मैं बिजनेस करना चाहता हूं. रमा ने कहा इतने पैसे कहां से लाएंगे पर उसका पति बिल्कुल सुनने को तैयार नहीं था. मगर वह यह भी जानती थी उसके पापा इतने पैसे नहीं दे सकते. कहां से लाएंगे. रमा भी पढ़ी लिखी थी वह कैसे बर्दाश्त करती उसके पापा उसे पैसे दें.
उसने कहा देखिए मैं भी नौकरी कर लेती हुं फिर आराम से हम जिंदगी खुशी-खुशी बीता लेंगे. उसका पति कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. अब जिस घर में खुशियां बरसती थी. वहां रोज ही मारपीट, लड़ाई झगड़ा होने लगा था. रमा को बाहर भी नहीं निकलने दिया जाता था. अब उसकी जिंदगी में किसी से भी नहीं मिलने दिया जाता था. उसे खाना भी नहीं दिया जाता था. धीरे-धीरे उसकी हालत खराब होती जा रही थी. फिर उसने सुना उसका पति दूसरी शादी करने जा रहे है. उसने बड़ी हिम्मत जुटाकर अपने पति से पूछा क्या दूसरी शादी करने जा रहे हो? उसके पति ने कहा बिल्कुल सही. तुम तो पैसे लाकर दे नहीं सकते. मुझे पैसे की जरूरत है. अपने पति को समझाने की काफी कोशिश की मगर उस पर लातों की बारिश हो गई.
अब बिल्कुल असहाय निर्बल महसूस कर रही थी. फिर उसे जलाकर मारने की प्लानिंग चल रही थी. अब पूरी तरह से डर गई, उसने मन ही मन प्लान बनाया, नहीं अब और नहीं सहन करना मुझे. आज रात किसी तरह से निकलना होगा फिर आधी रात को जब सब सो रहे थे वह चुपके से अपने घर से निकल गई. अब सवाल था कि इतनी रात को वह जाए तो जाए कहां. अभी कुछ ही दूर गई थी कि कुछ गुंडे उसके पीछे पड़ गए. फिर वह किसी तरह जान बचाते हुए मेरे घर के बरामदे में आ पहुंची थी. उसने कहा दीदी आप मुझे हजार रुपए दे दो मैं आभारी रहूंगी. मैं असमंजस में थी फिर सोचा चलो हजार रुपए की बात नहीं है बात है मान सम्मान की और एक नारी अगर दूसरी नारी का सम्मान ना करें तो इससे शर्मनाक बात क्या हो सकती. रमा को पैसे दे दिए, फिर उसने हाथ जोड़ते हुए कहा दीदी मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगी. इतना कह कर वह चली गई.
आज इस घटना को बीते हुए 10 साल हो गए. मैं तो इस घटना को भूल भी गई थी. अचानक दरवाजे की घंटी बजी. मैंने जाकर देखा तो एक महिला खड़ी थी. मैंने दरवाजा खोला तो उसने कहा दीदी, आपने मुझे पहचाना नहीं. मैं रमा हूं वही रमा जिसको आपने ठंड भरी रात में मदद की थी. तभी मुझे सारी घटना याद आ गई. आज की रमा में काफी अंतर दिख रहा था. आज वह बेहद खूबसूरत दिख रही थी. उसने बताया दीदी आपके पैसे से मैं मायके चली गई. फिर अपने पति के खिलाफ पुलिस में कंप्लेन कर दिया. मैंने अपनी नौकरी की तलाश की. नौकरी मिल गई. मैं अपने बच्चों को अपने पास ले आई. दिन रात मेहनत करके पढ़ाया. अगर आपने उस दिन मेरी मदद नहीं की होती तो ना जाने मैं कहां भटक रही होती पर मैंने कहा था ना मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगी. देखिए आप के हजार रुपए ने मुझे कहां पहुंचा दिया.
आज मैं दिल्ली आ रही थी. सोचा आपसे मिलती चलूं. मैंने देखा साथ में ढेर सारी मिठाईयां, फल, कपड़े सब कुछ लेकर वह मेरे पास आई थी. मुझे बहुत अच्छा लगा. एक लड़की थी आज उसके मुंह से विजय की आभा चमक रही थी. संघर्ष किया हिम्मत नहीं हारी. आज इस मुकाम तक पहुंच गई. उसके संघर्ष की दाद देनी होगी. वह अपने सम्मान और बच्चों की खातिर संघर्ष करते हुए इस मुकाम तक पहुंच गई थी.
सभी महिलाओं में भी अगर हिम्मत आ जाए तो आज रमा जैसे कितनी महिलाएं अपने घर से निकल कर समाज में अपना अस्तित्व बदल सकती हैं. यह केवल रमा की कहानी नहीं बल्कि उन सभी महिलाओं की कहानी है जो समाज के बनाए हुए इस दहेज प्रथा में फंस कर अपना जीवन गुजार देती हैं. जरूरत है सभी महिलाएं एक होकर इनके खिलाफ आवाज उठाये तो किसी भी महिला को अपनी बलि नहीं देने होगी. जरूरत है जोश और हिम्मत की.