धनबाद से तीन बार सांसद रहने के साथ ही एके राय सिंदरी विधानसभा क्षेत्र से भी तीन बार विधायक रह चुके थे.तेज बुखार हाेने के बाद राय 8 जुलाई से केंद्रीय अस्पताल में भर्ती थे लेकिन, तबीयत बिगड़ती ही चली गई और आखिरकार जीवन की डोर टूट ही गयी. उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो उनकी छ्वी में सादगी और ईमानदारी ही उनकी विशेष पहचान रही और अंत काल तक उनके व्यक्तित्व पर दाग नहीं लगा और उनकी यह छ्वी भारत भर में सुप्रसिद्ध थी . देशभर में मार्क्सवादी चिंतक के रूप में राय को लोग जानते है.राय के निधन के बाद कोयलांचल में शोक की लहर व्याप्त है.
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दादा एके राय का राजनीतिक जीवन
एके राय को दादा के नाम से ही लोगों ने प्यार दिया.राय पूर्व में केंद्रीय खाद कारखाना में केमिकल इंजीनियर रहे . राय राजनीति में आने से पहले खाद कारखाना में हड़ताल होने औऱ 1966-67 हड़ताल का समर्थन करने पर प्रबंधन ने उन्हें बर्खास्त कर दिया और इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के बैनर
से राजनीतिक मैदान में कूद गये. 1966-71 तक CPIM में रहे. इसके बाद अलग होकर MCC पार्टी बनाई.
3 बार सांसद और 3 बार विधायक
सिंदरी विधानसभा क्षेत्र से बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ना शुरू किया .चुनाव जीतते रहे .तीन बार सिंदरी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने.
आपातकाल में राय को भी जेल जाना पड़ा. वे जेल से भी पहली बार 1977 में निर्दलीय ही चुनाव में उतर कर धनबाद से सांसद बन गए.उस दौरान जनता पार्टी ने समर्थन किया था. वे 1980 और 1989 में भी चुनाव जीत गए और धनबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद बनते रहे.
झारखंड अलग राज्य आंदोलन के भी प्रणेता रहे
बिहार को विभाजित कर अलग झारखंड राज्य बनाने के आंदोलन के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा का 4 फरवरी 1972 में धनबाद में गठन में इनकी भी बड़ी भूमिका रही .झामुमो गठन में शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो के साथ ही एके राय का नाम लिया जाता है.बाद में पटरी ना बैठने से वे झामुमो से अलग हो गए हैं लेकिन आंदोलन का समर्थन करते रहे .उस दौरान इनके राजनीतिक सफर में ठहराव आ गया.
पेंशन को नहीं दिया महत्व
राय ने विवाह नहीं किया और उनकी खास बात यह भी रही पूर्व सांसद का पेंशन कभी नहीं लिया. तीन बार के सांसद एके राय की पेंशन राष्ट्रपति कोष में जमा होती रही. हुआं यूं कि 1989-91 के दाैरान लोकसभा में सांसदों का वेतन और पेंशन बढ़ाने का भी राय ने विरोध किया था. संसद के अंदर राय को समर्थन नहीं मिल पाया .वे राजनीति को सेवा कार्य मानकर टेंशन लेना उचित नहीं समझते .1991 में लोकसभा का चुनाव राय हार गए।